इस आंख को 'रतौंधी' है
जिस तीसरी आंख के सहारे बरेली पुलिस बरेलियंस को सुरक्षा की गारंटी देती है वह तीसरी आंख भी गंभीर बीमारी की शिकार है। असल में इस तीसरी आंख को रात में कुछ दिखाई ही नहीं देता है। हां अगर किसी वाहन की लाइट जल जाए तो बस यह तीसरी आंख उस छोटी सी रोशनी में चौंधिया जरूर जाती है। वहीं सिटी में अपराधी अधिकांश बड़ी वारदातों को रात के अंधेरे का फायदा उठाकर ही अंजाम देते हैं। अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि इस अंधी, चौंधियाने वाली तीसरी आंख से आपकी सुरक्षा किस तरह से हो सकती है।
एक चौराहा, एक सीसीटीवी
गौरतलब है कि देश के अन्य सिटी की तर्ज पर बरेली पुलिस ने भी हाईटेक होने का पूरा प्रयास किया। सभी थानों को एक दूसरे को इंटरनेट के माध्यम से जोडऩे की योजना भी बनायी। इसके अलावा क्रिमिनल्स पर लगाम कसने के लिए सीसीटीवी कैमरे का सहारा लेना चाहा। काफी जद्दोजेहद के बाद लाखों बरेलियंस की सिक्योरिटी के लिए सिर्फ एक सीसीटीवी कैमरा लगाया गया। वर्तमान समय में बरेली के नावेल्टी चौराहा पर एक सीसीटीवी कैमरा लगा है। इस सीसीटीवी कैमरे का कंट्रोल रूम सिटी कंट्रोल रूम में है। बरेली सिटी का क्षेत्रफल करीब सात किलोमीटर है, लेकिन इस सीसीटीवी कैमरे से सिर्फ सिटी के एक चौराहा के चारों और 200 मीटर तक ही देखा जा सकता है। इसके अलावा इस तीसरी आंख से सिर्फ दिन में ही देखा जा सकता है, क्योंकि रात में देखने के लिए यह सक्षम नहीं है। यह नाइट विजन कैमरा नहीं है। रात होते ही इस तीसरी आंख को रतौंधी आने लगती है। इस कैमरे से कुछ भी नहीं दिखायी देता है। हां इतना जरूर है कि अगर चौराहा पर किसी वाहन की रोशनी होती है तो उसे यह कैमरा जरूर देख लेता है।
यह तो और भी बुरा है
वर्तमान समय में हालात तो और भी बदतर हैं। आजकल इस कैमरे पर धूल बैठ गई है, जिससे इसे काफी कम दिखाई देता है। इस बीमारी के कारण कैमरे की रिकार्डिंग कुछ धुंधली दिखायी देती है। अगर इस कैमरे से जूम करके किसी वाहन का नंबर देखना है तो वो भी इससे साफ नहीं दिखायी देता है।
कितना इस्तेमाल में आया सीसीटीवी कैमरा
बरेली की इकलौती तीसरी आंख की कार्यप्रणाली के बाद अब हम आपको बतातें है कि ये कैमरा पुलिस के कितने काम आया है। इसकी सच्चाई जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे। सीसीटीवी कैमरा का इस्तेमाल वैसे तो अपराधियों की पकड़ व पब्लिक की सिक्योरिटी के लिए होता है, लेकिन यह कैमरा न तो आज तक पुलिस और न पब्लिक के किसी काम आया। न तो आज तक इसकी मदद से किसी अपराधी को पकड़ा जा सका है, न ही किसी ओवर लोड वाहन या बेतरतीब तरीके से वाहन चालने वालों को पकड़ा जा सका है। हां इतना जरूर है कि एक बार कोतवाली पुलिस ने कंट्रोल रूम से एक कार का नंबर देखने के लिए इस सीसीटीवी कैमरा की मदद लेते हुए इसकी फुटेज को खंगाला था। हां इतना जरूर है कि पुलिस इस कैमरा से इलाके में निकलने वाले जुलूस, मोर्चा, रैली व अन्य मामलों में पब्लिक की संख्या जानने के लिए जरूर करती है।
क्या है सीसीटीवी कैमरा
सीसीटीवी कैमरा को क्लोज सर्किट टेलीवीजन के नाम से जाना जाता है। इसका मुख्य काम सर्विलांस परपज के लिए होता है। इस कैमरा का निमार्ण 1942 में जर्मन इंजीनियर वाल्टर ब्रूच ने किया था। इसका इस्तेमाल जर्मनी द्वारा वल्र्ड वार सेंकेंड के टाइम रॉकेट लांचिंग के दौरान किया गया था। 1960 से इसका इस्तेमाल पुलिस द्वारा क्राइम रोकने में मदद के लिए किया जाने लगा। भारत में 1980 में दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ने इसका सबसे पहले इस्तेमाल किया था। वर्ष 2004 में दिल्ली पुलिस द्वारा बैंक में लगे सीसीटीवी कैमरा द्वारा अपराधियों की पकड़ में हेल्प के बाद इसे देश के अन्य थानों में इस्तेमाल के लिए कहा गया था। मौजूदा समय में बैंक, मॉल, व अन्य प्राइवेट फर्म इसका इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन बरेली की पुलिस इसकी अहमियत को अभी तक नहीं समझ सकी है और सिर्फ एक सीसीटीवी कैमरे के सहारे ही चल रही है।
और कितने कैमरे
पुलिस सूत्र बतातें हैं कि बरेली सिटी की सिक्योरिटी के लिए करीब पांच और सीसीटीवी कैमरा पुलिस डिपार्टमेंट में है, लेकिन इन कैमरों का इस्तेमाल जरूरत पडऩे पर ही किया जाता है। इन कैमरों का इस्तेमाल सिटी में कफ्र्यू, बड़े हंगामे व अन्य सेंसेटिव टाइम व प्लेस पर किया जाता है। अगर इन्हीं कैमरों का इस्तेमाल रोजाना किया जाए तो जरूर ये कैमरे पुलिस की अपराधियों को पकडऩे व पब्लिक की सिक्योरिटी करने में मदद कर सकते हैं।
सीसीटीवी कैमरा की रात में वीजन ठीक नहीं है इसको चेक करेंगे। अगर प्रॉब्लम है तो उसे ठीक करवाया जाएगा ।
- शिव सागर सिंह,एसपी सिटी बरेली
महिला हॉस्पिटल का हाल सबसे जुदा
बच्चा चोरी घटनाओं के बाद बेरली के महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन की नींद टूटी जरूर थी, लेकिन इस नींद टूटने की भी अजीब दास्तां है। आपराधिक घटनाओं की रोकथाम के लिए आनन-फानन में महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में तीन स्पॉट पर सीसीटीवी कैमरे जरूर लगा दिए गए हैं। एडमिनिस्ट्रेशन का दावा है कि इसके बाद महिला हॉस्पिटल में घटने वाली हर घटना पर उनकी पैनी निगाह रहेगी। एडमिनिस्ट्रेशनके दावों की असली हकीकत से हम आपको रूबरू करवाते है। दरअसल महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की तीसरी आंख की मॉनिटरिंग रूम की कुर्सियां ज्यादातर खाली पड़ी रहती है। कैमरों की प्रोपर मॉनिटरिंग नहीं हो पा रही है।
मॉनिटरिंग के लिए डॉक्टर नहीं
महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की सीएमएस मंजरी नारायण कहती हैं कि कंट्रोल रूम में मॉनिटरिंग के लिए एक डॉक्टर और एक नर्स की ड्यूटी रोटेशन में लगाई गई है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक कंट्रोल रूम में कोई मौजूद नहीं रहता है। कई डॉक्टर खुद भी एक्सेप्ट करते हैं कि पहले से ही डाक्टर्स की कमी है। कंट्रोल रूम में मॉनिटरिंग कैसे हो पाएगी।
आधे हॉस्पिटल की सुरक्षा
हॉस्पिटल की मैटरनिटी वार्ड, ओल्ड मैटरनिटी वार्ड और रजिस्ट्रेशन पर भले कैमरे नाम के लिए लगा दिए गए हों, लेकिन हालात बहुत बेहतर नहीं है। पहली बात तो यह है कि यह मॉनिटरिंग अधूरी है, दूसरी यह कि अधूरी मॉनिटरिंग सिर्फ आधे डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में हो रही है। जबकि बच्चा चोरी की पहली घटना तो ओपीडी में हुई थी।