पचास फीसदी स्कूलों में नही है शौचालय
BAREILLY:
प्राइमरी स्कूलों में आज कल बच्चों को स्वच्छता से जुड़ी बातें पढ़ाई सिखायी जा रही है। लेकिन इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की हेल्थ से पूरी तरह से खिलवाड़ किया जा रहा है। अर्बन एरिया के क्फ्ब् स्कूलों में से आधे स्कूलों में टायलेट है ही नही। एक तरफ स्वच्छता और सुरक्षा को लेकर तमाम सर्वे बता रहे है कि शौचालय का न होना बच्चों के साथ हो रही घटनाओं का सबसे बड़ा कारण है। ऐसे में बेसिक शिक्षा विभाग ने इन शौचालय विहीन स्कूलों की ओर क्यों नही सोचा। क्या है शहर के प्राइमरी स्कू लों के स्कूलों की असल स्थिति, आइये जानते है
प्राइमरी स्कूल के क्या है पैरामीटर
बेसिक शिक्षा विभाग में शहरी एरिया के प्राइमरी स्कूलों की बिल्डिंग में कम से कम दो क्लास रुम, एक प्रिंसिपल रुम, दो टायलेट लड़का लड़की, एक हैड पंप और एक ख्00 मी। की बाउंड्री बाल होनी चाहिए। जिसके लिए विभाग की ओर से ग्रांट दिया जाता है।
भ्0 फीसदी स्कूलों नही है टायलेट
इस समय अर्बन एरिया में प्राइमरी स्कूलों की कुछ संख्या क्फ्ब् है, जिसमें से म्ख् स्कूलों में टायलेट हैं ही नही। इन म्ख् स्कूलों में ब्8 स्कूल किराये की बिल्डिंगों में संचालित है। जबकि क्ब् स्कूल ऐसे है जिन्हे चार साल पहले कम्यूनिटी सेंटर्स में शिफ्ट किया गया । लिखित रुप से विभाग की जानकारी में है कि उनके आधे स्कूल ही बच्चों के लिए शौचालय जैसी सबसे जरूरी आवश्यकता को पूरा कर रहे है।
किराए से शिफ्ट हुए स्कूलों में भी नही शौचालय
किराए की बिल्डिंग में चल रहे क्ब् स्कूलों को सन ख्0क्0 में कम्यूनिटी सेंटर में शिफ्ट किया गया। जर्जर भवनों से नई बिल्डिंग में शिफ्ट हुए स्कूलों के बच्चों कोई राहत नही मिल सकी। क्योकि डूडा द्वारा बनाए गए कम्यूनिटी सेंटर्स में सिर्फ एक रुम और एक हाल की व्यवस्था है।
किराए के ब्8 टायलेट लेस स्कूलों की स्थिति के बारे में आईनेक्स्ट पहले ही बता चुका है कि इन किराये की बिल्डिंगों की हालत गिरताऊ है, इनमें से ज्यादातर स्कूल एक टूटे-फूटे कमरे या फिर टूट चुके कमरे के बाहर बने आंगन में चल रहे है। इनके बारे में अधिकारी ये कहके पल्ला झाड़ लेते है कि कम किराया होने के चलते भवन स्वामी शौचालय या फिर दूसरी टूट-फूट की मरम्मत नही कराता, और विभागीय बिल्डिंग न होने के चलते यहां शौचालय निर्माण का उन्हे हक नही।
टायलेट होने पर भी भटक रहे है बच्चे
विभागीय बिल्डिंग में चल रहे स्कूलों की बात करें तो इनमें शौचालय तो बने है, लेकिन इनमे सफाई न होने से बच्चे इन्हे इस्तेमाल ही नही कर पाते। दूसरी ओर कई स्कूलों के शौचालयों में गेट न होने से लड़कियों व महिला टीचर इन्हे इस्तेमाल नही कर पाती।
इस बात पर विभाग सीधे तौर पर इंचार्ज शिक्षकों को दोषी मानते हुए कहता है कि मेनटेनेंस के लिए मिलने वाली ग्रांट का टीचर ठीक ढंग से इस्तेमाल नही करते।
कही हैंड पंप तो कही बाउंड्रीवाल नही
शौचालय के साथ ही प्राइमरी स्कूलों की दूसरी बड़ी समस्या पीने के पानी और बाउंड्री बाल न होने की है। कागजों में स्कूलों में ये दोनो ही चीजें है लेकिन असल में किसी स्कूल की बाउंड्री बाल टूट चुकी है। जिससे स्कूल में असामाजिक तत्वों का जमा-बाड़ा लगा रहता है। इसके अलावा कई स्कूलों में हैंड पंप खराब हो चुके है जिन्हे सालों से सही नही कराया गया।
क्या कहती है लेडीज टीचर्स
मैं एकल स्कूल में दो साल से पढ़ा रही हूं, किराये पर चल रहे इस स्कूल में टायलेट नही है। एक कमरा था, जो टूट चुका है बच्चों को बरामदे में पढ़ाती हूं। टायलेट जाने के लिए मैं स्कूल के पास ही रहती एक स्टूडेंट के घर पर जाती हूं। स्कूल में ब्0 लड़कियां पढ़ती हैं जिन्हे टायलेट के लिए अपने घर तक जाना पड़ता है। विभाग तक कई बार शिकायत पहुंचाई, लेकिन अभी तक कुछ नही हुआ।
- शिवानी, इंचार्ज टीचर, प्राइमरी स्कूल गंगापुर-दो
एकल स्कूल में पिछले साल से पढ़ा रही हूं, जो चार साल पहले जोगी नवादा के कम्यूनिटी सेंटर में शिफ्ट हो चुका है। कम्यूनिटी सेंटर में सिर्फ एक कमरा और एक हाल की व्यवस्था है। शौचालय न होने से परेशानी तो होती ही है। आस-पास जाना भी सुरक्षित नही लगता इसलिए कभी एमरजेंसी मे सीधे घर ही जाती हूं। स्कूल घर से एक घंटे की दूरी पर है। स्कूल की क्म् बच्चियों को भी शौच के लिए सुरक्षा को देखते हुए घर पर ही भेजना पड़ता है।
- पूजा सक्सेना, इंचार्ज, प्राइमरी स्कूल बाग ब्रिगटान