Case1-सिटी के एक फेमस इंजीनियरिंग कॉलेज के स्टूडेंट रितेश पाठक कैंपस प्लेसमेंट के जरिए नई दिल्ली स्थित प्रमुख आईटी कंपनी के ऑफिस में 3 लाख सालाना के पैकेज पर प्लेस हुए लेकिन जितना बताया गया कंपनी ने उतनी सैलरी नहीं दी। यही नहीं 6 महीने के अंदर शॉर्टलिस्ट भी कर दिया गया। कंपनी का तर्क था वह ट्रेनिंग में खरे नहीं उतर सके।
Case2-सिटी के एक एमबीए कॉलेज की स्टूडेंट शिखा श्रीवास्तव को कंपनी ने सेल्स डिपार्टमेंट में सेलेक्ट किया। बाकायदा लेटर भी दिया लेकिन ज्वॉइनिंग लेटर यह कहकर नहीं दिया कि एक महीने बाद उसे कंपनी के मेन हेड के साथ फाइनल इंटरव्यू के लिए बुलाया जाएगा जो महज फॉर्मेलिटी होगी। दो महीने के बाद कॉल किया गया लेकिन ज्वॉइनिंग नहीं दी गई।
Case3-एक इंजीनियरिंग कॉलेज के रोहित सिंह को कैंपस प्लेसमेंट के जरिए आईटी कंपनी ने दिल्ली स्थित एक सेंटर पर 2.5 लाख रुपए के ईयरली पैकेज पर प्लेस किया लेकिन रोहित को पैकेज नहीं मिला जो तय था। उनसे एजुकेशन और फील्ड ऑफ इंट्रेस्ट से इतर काम लिया जा रहा था। जिससे रोहित को मजबूरी में 9 महीने के भीतर जॉब छोडऩी पड़ी।
प्लेसमेंट के नाम पर स्टूडेंट्स से खिलवाड़
मोटी सैलरी पैकेज पर सौ फीसदी जॉब गारंटी के लालच में आकर सैकड़ों स्टूडेंट्स का सुनहरा सपना उस वक्त दम तोड़ देता है जब वे कैंपस प्लेसमेंट के नाम पर चल रहे खेल में पार्टिसिपेट करते हैं। इसके बाद न जाने कितने रूल्स बताकर उन्हें डिसक्वालीफाई कर आउट कर दिया जाता है। तब उन्हें यह अहसास होता है कि वो दावे जो एडमीशन के वक्त किए गए थे वह महज मोटी फीस वसूलने का छलावा था। उन्हें सिर्फ फंसाया गया था।
Counselling से ही पड़ती है नींव
पड़ताल में खुलासा हुआ कि जॉब गारंटी के नाम पर स्टूडेंट्स को फांसने का खेल काउंसलिंग के समय ही स्टार्ट हो जाता है। इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेजेज के रिप्रेजेंटेटिव्स एडमीशन के समय स्टूडेंट्स के सामने हवाई प्लेसमेंट रिकॉर्ड पेश करते हैं। अपने यहां नेशनल मल्टीनेशनल कंपनी के विजिट की डिटेल्स भी देते हैं। सेमिनार में पार्टिसिपेट करने वाले कंपनीज के रिप्रेजेंटेटिव्ज की फोटो दिखाकर स्टूडेंट्स को अट्रैक्ट करते हैं। इसके बाद पैरेंट्स के साथ स्टूडेंट्स भी इनके झांसे में आ जाते हैं।
Placement agencies से setting
जो कॉलेज कैंपस प्लेसमेट के लिए कंपनीज को मोटी फीस देने के लिए तैयार हो जाते हैं वे प्लेसमेंट ऐजेंसीज द्वारा इसकी सेटिंग कर लेते हैं। कंपनीज, प्लेसमेंट एजेंसीज और कॉलेज के बीच सेटिंग तय हो जाती है। मल्टीनेशनल और नेशनल लेवल की बड़ी कंपनियों को बुलाने का खर्च 5 से 10 लाख रुपये तक बैठता है। वहीं लोकल कंपनियों के साथ सौदा 25 हजार से 1 लाख के बीच ही तय हो जाता है।
यूं होती है deal
कुछ कॉलेज तो वर्कशॉप और सेमिनार के दौरान ही कंपनीज के बड़े अधिकारियों के साथ डील कर लेते हैं। दरअसल सेमिनार और वर्कशॉप में भी उन्हें गेस्ट लेक्चर देने के लिए मोटा पैकेज दिया जाता है। आने-जाने और ठहरने का फाइव स्टार ट्रीटमेंट दिया जाता है। इससे अभिभूत कंपनीज के बड़े अधिकारी कैंपस प्लेसमेंट ऑर्गनाइज करने की डील सेट कर लेते हैं।
सब कुछ पहले से fixed
कंपनीज, प्लेसमेंट एजेंसीज और कॉलेज के बीच सबकुछ पहले से तय हो जाता है। मैक्सिमम कितने तक सैलरी पैकेज का ऑफर देना है यह अमूमन तय कर लिया जाता है। स्टूडेंट्स को सेलेक्शन के लिए किन-किन प्रक्रियाओं से गुजरना होता है वह भी क्लियर हो जाता है। कंपनीज कंफर्मेशन लेटर देने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले लेती हैं। बस डील यहीं तक ही रहती है। इसके बाद न तो कंपनीज और न ही कॉलेज मैनेजमेंट एक दूसरे के बीच दखल देते हैं।
अधिकांश को दोयम दर्जे की job
एक-दो स्टूडेंट्स ही कंपनीज का ज्वॉइनिंग लेटर हासिल करने में सफल होते हैं। अधिकांश सेलेक्टेड स्टूडेंट्स को दोयम दर्जे की जॉब मिलती है। उन्हें केवल 8 से 12 हजार पर मंथ के पैकेज पर ही रखा जाता है। पूरा पैकेज यह कहकर नहीं देते कि एक साल तक उन्हें ट्रेनी रखा गया है। बाद में पूरा पैकेज दिया जाएगा।
पल्ला झाड़ लेता है college management
ज्वाइनिंग लेटर न मिलने और कंपनीज द्वारा स्टूडेंट्स को महज कुछ ही महीनों में बाहर कर दिए जाने के मुद्दे पर कॉलेज मैनेजमेंट पल्ला झाड़ लेता है। स्टूडेंट्स की कंपलेन पर मैनेजमेंट का यही जवाब रहता है कि उन्होंने प्लेसमेंट ऑर्गनाइज कराया। परफॉरमेंस के बल पर कंपनीज ने जिनको नहीं लिया उसकी जिम्मेदारी कॉलेज पर नहीं है। वहीं जिनको ज्वाइनिंग लेटर नहीं दिया जाता या फिर निकाल दिया जाता है उस पर कॉलेज मैनेजमेंट का तर्क रहता है कि कंपनी द्वारा सेलेक्शन तक हमारी जिम्मेदारी थी उसके बाद निकाल दिया जाए या फिर ज्वाइनिंग लेटर न देना, यह कंपनीज के इंटरनल मैटर्स है। जिसमें हम दखल नहीं दे सकते।
बकायदा भूमिका बनाते हैं college
कैंपस प्लेसमेंट के नाम पर कॉलेज मैनेजमेंट स्टूडेंट्स के समक्ष कई तरह की भूमिका बनाता है। सेमिनार और इंडस्ट्रियल टूर ऑर्गनाइज कर स्टूडेंट्स को पार्टिसिपेट करने के लिए अलग से चार्ज वसूलता है। यही नहीं कॉलेज में बकायदा इंटरव्यू फेस करने के लिए वर्कशॉप भी ऑर्गनाइज कराते हैं। कॉलेज हर स्टूडेंट्स का प्लेसमेंट ब्रॉशर तैयार कराता है। जिसके लिए स्टूडेंट्स से 1,000 से 2,000 रुपए तक चार्ज करते हैं। प्लेसमेंट ब्राशर में स्टूडेंट्स की क्वालीफिकेशन, सेमिनार, वर्कशॉप और इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग के पार्टिसिपेशन के साथ संसाधनों का जिक्र भी करते हैं। जिन्हें कंपनीज के समक्ष पेश करते हैं।
झूठे हैं placement record
अधिकांश मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग कॉलेजेज स्टूडेंट्स और पेरेंट्स को जो प्लेसमेंट रिकॉर्ड शो करते हैं वे फेक होते हैं। जीबीटीयू ने सभी कॉलेजों के लिए वेबसाइट पर 5 वर्षों का प्लेसमेंट रिकॉर्ड पब्लिश करने के निर्देश दिए हैं लेकिन पोल न खुल जाए इसलिए रिकॉर्ड वेबसाइट पर नहीं डाले। एजुकेशन लोन के लिए भी आरबीआई ने यही गाइडलाइंस जारी की हैं क्योंकि इन कॉलेजों का प्लेसमेंट रिकॉर्ड बेहतर नहीं है। इसलिए बैंक्स भी स्टूडेंट्स को लोन देने से कतराते हैं।
भाई भतीजावाद भी हावी
पड़ताल में एक्सपट्र्स और फैकल्टी से खुलासा हुआ कि कैंपस प्लेसमेंट में भाई भतीजावाद भी चलता है। कंपनीज और कॉलेज के जानने वालों के बच्चों के नाम पर पहले ही मुहर लग जाती है। फॉर्मेलिटी के लिए प्रक्रिया निभाई जाती है। फिर जोर-शोर से मोटी सैलरी पैकेज के साथ प्रचार-प्रसार भी किया जाता है।
बड़ी कंपनियां कतराती हैं
इन सब के पीछे का कारण जब जानने की कोशिश की गई तो मालूम चला कि नेशनल और मल्टी नेशनल कंपनीज इस एरियाज के कॉलेजेज में विजिट करने में इंट्रेस्ट नहीं दिखाती। इसी वजह उन्हें बुलाने के लिए डील साइन करना पड़ता है। कंपनीज अपने निचले रिप्रेंजेटिव्स को सेलेक्शन के लिए भेज देती हैं। सेलेक्शन के बाद कुछ अधिकारी स्टूडेंट्स को रिजेक्ट कर देते हैं।
Skilled students की करें help
कॉलेज को अपना रेपुटेशन बनाने के लिए कम से कम स्किल्ड स्टूडेंट्स को कैंपस प्लेसमेंट के जरिए जॉब दिलाने के लिए हर कोशिश करनी चाहिए। उन्हें अपने कॉलेज का प्रोफाइल हाई कर बड़ी कंपनीज को कैंपस में इनवाइट करनी चाहिए। उन्हें ज्यादा से ज्यादा स्टूडेंट्स को बेहतर से बेहतर से प्लेसमेंट दिलाना चाहिए। यह तभी होगा जब वे क्वालिटी पर ज्यादा फोकस करेंगे। क्वालिटी निखरेगी तो स्टूडेंट्स में स्किल्स डेवलप होंगे और कॉलेज को अपने स्टूडेंट्स को जॉब दिलाना आसान हो जाएगा।
-विशेष कुमार, मैनेजमेंट प्रोफेशनल
Quality से गिरने बढ़ रहा fraud
हाल के कुछ वर्षों में कैंपस प्लेसमेंट के दौरान जमकर खेल देखने को मिला है। कॉलेजों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने क्वालिटी को भुला दिया और क्वांटिटी जोर पकडऩे लगी है। कैंपस प्लेसमेंट में ज्यादा से ज्यादा कंपनीज बुलाकर और स्टूडेंट्स की संख्या ज्यादा शो कर कॉलेज क्रेडिट लेता है और स्टूडेंट्स को लुभाने का काम करते हैं। प्लेसमेंट के दौरान जो सैलरी और नेचर ऑफ जॉब बताया जाता है, हकीकत में वह नहीं होता। जिसके बाद स्टूडेंट्स अपने आप को ठगा सा महसूस करते हैं। क्वालिटी गिरने से ही फ्रॉड बढ़ता जा रहा है।
- अजय यादव, फैकल्टी इलेक्ट्रिकल एंड इंस्ट्रूमेंटल, आरयू
शुरू से ही manipulation
इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेजेज एडमीशन के समय से ही मैनूपुलेशन स्टार्ट कर देते हैं। ब्राइट स्टूडेंट्स इनके यहां एडमीशन नहीं लेते। छंटे हुए स्टूडेंट्स को अपने यहां एडमीशन देने के लिए तमाम तरह के हथकंडे व लुभावने वादे देकर उन्हें मैनूपुलेट करते हैं। पर्सनैलिटी डेवलपमेंट समेत कई चार्ज लगाकर मोटी रकम भी वसूलते हैं। क्वालिटी एजुकेशन और फैकल्टी की पॉलीशिंग पर ध्यान नहीं देते। जिस वजह से स्टूडेंट्स में वो स्किल्स डेवलप नहीं हो पाता जिसकी मार्केट में डिमांड है।
- आदित्य प्रकाश, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, आरयू