हिमांशु अग्निहोत्री (बरेली). वियांश अत्र आगच्छ कुत्र गच्छसि। यह बोल सुनाई दे रहे थे श्वेत केतु शर्मा के घर से, जब दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम उनके घर पहुंची। वह अपने पौने दो वर्ष के पोते से संस्कृत में बात कर रहे थे। पूछने पर उन्होंने बताया कि घर में संस्कृत ही बोलचाल की भाषा है। यह उनकी मां की देन है। पीढ़ी दर पीढ़ी सभी संस्कृत बोलते गए, अब पोते को भी सिखा रहे हैैं।

मां थीं वेदाचार्या
शहर के गुलाब नगर में रहने वाले श्वेत केतु शर्मा पेशे से आयुर्वेदिक चिकित्सक हैैैं। उनके घर में आज भी अधिकांश बातें संस्कृत में ही की जाती हैैं। डॉ। श्वेत बताते हैैं कि मां डॉ। सवित्री देवी शर्मा, वेदाचार्या थीं। वह संस्कृत की लेक्चरर रहीं, अपने जीवनकाल में उन्होंने सैैंकड़ों कार्यक्रम में व्याख्यान दिए। हिंदी और इंग्लिश की जानकार होने के बाद भी वह स्कूल और घर में संस्कृत में ही बात किया करती थीं। घर में संस्कृत का वातावरण रहा, भाई और पिता भी माता से संस्कृत में बात करते थे। इस कारण घर में सभी का संस्कृत में इंट्रेस्ट बढ़ा।

बेटे हैं इंजीनियर
श्वेत केतु के दोनों बेटों की शादी हो चुकी है। दोनों इंजीनियर हैैं और सिटी से बाहर रहते हंै। ऐसे में जब भी परिवार को एकत्रित होने का मौका मिलता है तो साथ में बैठकर संस्कृत में बात करते हैैं। वह बताते हैं कि बेटे भी संस्कृत बोल और समझ लेते हैैं, लेकिन उतनी फ्लुएंसी नहीं है। क्योंकि वह बचपन से ही बाहर रहकर पढ़े हैैं, लेकिन घर के माहौल के कारण वह संस्कृत को अच्छे से समझते हैैं। छुट्टïी पर बेटा घर आया है तो पोते को संस्कृत सीखा रहे हैैं।

नाम भी है यूनीक
श्वेत केतु के घर में सभी के नाम वेदों, उपनिषद से जुड़े हुए हैैं। वह बताते हैैं कि उनका नाम श्वेत केतु उपनिषद से लिया गया है। दोनों भाईयों कविकृतु और शतककृतु का नाम वेद मंत्रों से लिया गया है। श्वेत के दोनों बेटों ज्योतिर्वसु, वेदवसु और पोते वियांश का नाम भी वेदों और उपनिषद से लिए गए है। पोते को छोड़कर सभी नाम उनकी मां ने ही रखे हैं।

ऑनलाइन कर रहे प्रसार
श्वेत बताते हैैं कि संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए वह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का सहारा भी ले रहे हैैं। वह वेदों, संस्कृत, संस्कृति, शिक्षा आदि ïिवषय पर ऑनलाइन मीटिंग करते हैैं। इसका प्रसार-प्रसार करते हंै। वह बताते हैैं कि इसमें देश-विदेश से भी लोग शामिल होते हैैं। संस्कृत पर श्वेत केतु अब तक कई कार्यक्रमों में ïव्याख्यान दे चुके हैैं।

देवताओं की भाषा
विश्व संस्कृत दिवस को हर वर्ष श्रावण पूर्णिमा के अवसर पर मनाया जाता है। संस्कृत को विश्व की प्राचीन भाषाओं में से एक होने का गौरव प्राप्त है। इसे देवताओं की भाषा भी कहा जाता है। लोगों को अवेयर करने, संस्कृत भाषा के पुनरुत्थान और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए विश्व संस्कृत दिवस मनाया जाता है। इस दिन संस्कृत भाषा पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्रोग्राम, सेमिनार, गोष्ठी आदि आयोजित की जाती हैैं।

धर्म में संस्कृत का महत्व
श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन पडऩे वाले रक्षा बंधन त्योहार के साथ ही विश्व संस्कृत दिवस मनाया जाता है। देश में हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों और प्रथाओं में संस्कृत भाषा का प्रमुख स्थान है। घरों में पूजा-पाठ और मंत्रोच्चारण संस्कृत भाषा में ही किया जाता है। संस्कृत में अनेकों धर्मिक पुस्तकें लिखी गई हैैं।

प्रथम वाक्य भी संस्कृत में
श्वेत केतु बताते हैैं कि भारतीय गणराज्य का प्रथम वाक्य 'सत्यमेव जयतेÓ विश्व को यह संदेश दे रहा है कि प्राचीनतम भारतीय संस्कृति का मूल बिंदु देवभाषा संस्कृत है। यह सभी भाषाओं की जननी है। इसलिए कहा गया है, 'सर्वाषां भाषानां जननीÓ।