- जरूरत से ज्यादा पहुंचता है थानों में सामान, लाखों की डेथ किट्स, प्लास्टि वैटन, टॉर्च, हेल्मेट व अन्य सामान हो रहा बर्बाद
- कुछ चीजें इस्तेमाल नहीं होती तो ज्यादातार इस्तेमाल करने लायक ही नहीं, सिर्फ रजिस्टरों में दाखिल होकर बढ़ाती हैं मालखाने की शोभा
बरेली। वैसे तो सरकारी महकमों में रजिस्टर व नोट पैड जैसी जरूरत की चीजें भी खत्म होने पर इन्हें दोबारा इशू कराने के लिए क्लर्क को सैकड़ों पापड़ बेलने पड़ते हैं। लेकिन लाखों की कीमत का जो सामान गोदामों में पड़े-पड़े सड़ रहा होता है, उनकी तरफ कोई गौर नहीं करता। ऐसा ही कुछ हाल जिले के थानों में मालखानों का भी है। शासन से आने वाली लाखों की कीमत की यूटिलिटी किट्स जरूरत से ज्यादा होने पर मालखानों में ही पड़ी रहती हैं। इस तरह इस्तेमाल न होने से आखिरकार यह किट्स ऐसे ही पड़े-पड़े कंडम हो जाती हैं। इन किट्स में डेथ किट, हैल्मेट व अन्य चीजें इस्तेमाल ही नहीं होती, तो टॉर्च व अन्य कुछ चीजें इस्तेमाल करने लायक ही नहीं होती।
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कट्टों में भरी पड़ीं डेथ किट्स
क्षेत्रों में होने वाली मौतों व मिलने वाले अज्ञात शवों के संबंध में कार्रवाई करने के लिए पुलिस को शासन डेथ किट उपलब्ध कराता है। इनमें बॉडी रैपर से लेकर पंचायतनामा का प्रारूप, पेन, इंक, मार्कर व अन्य कुछ चीजें भी होती हैं। लेकिन असल में किसी थाने की पुलिस इनका इस्तेमाल नहीं करती। इसके कारण यह किट्स मालखानों में पड़े-पड़े ही बर्बाद हो जाती हैं। इनकी अनुमानित कीमत पांच सौ रुपये प्रति किट है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले के 29 थानों में कितनी किट्स बर्बाद हो रही होंगी।
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बुलेट प्रूफ जैकेट तो है पर पहने कैंसे
जिले के सभी थानों में आपात्काल स्थिति में इस्तेमाल करने के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट भी हैं। ज्यादा घनत्व वाले व संवेदनशील थानों में लगभग 13 तो अन्य छोटे थाने में 4-5 बुलेट प्रूफ जैकेट्स हैं। जिले में करीब 500 बुलेट प्रूफ जैकेट्स हैं। लेकिन दुविधा की बात यह है कि हर जैकेट का वजन लगभग 20 किलो है। जिस वजह से उसे पहनने में काफी समस्या होती है। पुलिसकर्मी बताते हैं कि इतना भारी जैकेट पहनने के बाद चलना भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे में स्थिति पर नियंत्रण बनाने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन अब नौकरी करनी है तो यह वजन भी उठाना पड़ता है।
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टॉर्च है पर सेल नहीं, डाक तिजोरी व हैल्मेट भी बेकार
थानों के मालखानों में कुछ ऐसी चीजें भी हैं, जोकि थाने पहुंचने के बाद सिर्फ मालखाने की शोभा ही बढ़ाती हैं। ऐसे ही हाल कुछ यहां होने वाली टॉचरें का भी है। शासन से टॉर्च तो पहुंचती हैं, लेकिन उनमें सेल न होने के कारण वह ऐसी ही पड़ी रहती हैं, कभी इस्तेमाल ही नहीं हो पातीं। पुलिसकर्मी बताते हैं कि नए चलन के प्लास्टिक वैटन भी इतना हल्के हैं कि जोर से मारने ही चटक जाते हैं। इससे खुद को चोट लगने का खतरा भी बना रहता है। वहीं पुलिस के लिए आने वाले हैल्मेट भी ऐसे ही पड़े रहते हैं। पुलिसकर्मी अपने हैल्मेट इस्तेमाल करना ही पसंद करते हैं। कुछ समय पहले तक थाने पहुंचने वाली जुर्माने की रकम थाने में ही मालखाना या डाक तिजोरी में रखी जाती थी। लेकिन अब वह व्यवस्था भी खत्म होने के कारण यह तिजोरियां भी जंग खाती रहती हैं। ज्यादातर थानों की तिजोरियां तो गल भी चुकी हैं।