रोशन है चाहत के दीये हम सबकी आंखों में बुझाने के लिए पागल हवाएं रोज आती हैं

ये शेखो बरहमन हमको अच्छे नहीं लगते, हम जितने भी हैं वे उतने भी सच्चे नहीं लगते, कोई हिंदु है कोई मुसलमान है कोई इसाई है, सबने इंसान न बनने की कसम खाई है

आई-नेक्स्ट से बातचीत में शायर निदा फाजली कहते हैंक्या हो गया है लोगों को। नफरतों से कोसों दूर बरेली शहर को ये किसकी नजर लग गई है। न्यूज देखकर पता चला कि यहां के अमन और चैन पर संगीनों का पहरा लग गया है। यह अफसोसजनक है। सांप्रदायिक तनाव सिर्फ और सिर्फ इसलिए होता है क्योंकि इसका राजनीतिक फायदा उठाया जा सके। हम आम बाशिंदों को इस बात को समझने की जरूरत है कि दंगे कभी अच्छे नहीं होते। यह चंद नाफरमान लोगों की करतूत होती है जिसका खमियाजा सभी को भुगतना पड़ता है। अंग्रेजों का पॉलिसी थी डिवाइड एंड रूल। इस पॉलिसी को अब सियासत के ठेकेदारों ने अपना लिया है। अमन चैन कौन नहीं चाहता है। सभी इस मुल्क के बाशिंदें हैं। हमें समझदार बनना होगा। दंगा यह थोड़े ही देखता है कि किसका घर जला। इस दर्द की टीस सालों साल तक हमें सालती रहती है। मैं हूं तो बरेली से काफी दूर, लेकिन यहां के अमन पसंद बाशिंदों से गुजारिश करूंगा कि वे हालात को समझें कि कौन उन्हें यूज करना चाह रहा है। शांति बनाएं रखें। दंगों से किसी आम आदमी का भला नहीं हुआ है।

रोशन है चाहत के दीये हम सबकी आंखों में बुझाने के लिए पागल हवाएं रोज आती हैं

राहत इंदौरी कहते हैंबरेली से खबर आई तो चौंक गया कि अमन पसंद इस शहर में यह क्या हो गया? दंगे हमारे मुल्क की पेशानी पर दाग हैं। बेरेली जैसे शहर में जिसका रुतबा पूरे मुल्क में एक सौहाद्र के प्रतीक के रूम में है वहां इस तरह का संप्रदायिक तनाव अफसोस जनक है। जिनके साथ हमरा वर्षों पुराना नाता होता है उन्हें ही हम नफरतों से निगाह से जब देखने लगते हैं तो यह परेशानी में डालने वाली बात है। हमें अपनी नजरों से इतना भी नहीं गिर जाना चाहिए कि आना वाला वक्त हम पर शर्मिंदा हो। मेरे अजीज दोस्त बशीर बद्र ने एक मुशायरे में कुछ इन्हीं हालातों पर अर्ज करते हुए कहा था

नफरतों का सफर बस कदम दो कदम

तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएंगे.

नफरत हमें एक दूसरे की नजरों से गिरा देती है। हमें रिश्तों की अहमियत को समझने की जरूरत है। मुल्क में जो रिश्ते वर्षों से चले आ रहे हैं उन्हें पल भर में यूं तोड़ देना कहां की शराफत है। बरेली के अमनपसंद लोगों से मैं कहना चाहूंगा कि वे बचपना छोड़ कर तरक्की की राह अपनाएं। ऊपर वाले से दिल से दुआ करता हूं कि बरेली में दंगे की आग को और न भड़कने दे।

रोशन है चाहत के दीये हम सबकी आंखों में बुझाने के लिए पागल हवाएं रोज आती हैं

जावेद अख्तर ने आई-नेक्स्ट से बातचीत में कहा। जिंदगी दो दिन की है, हमें हंस खेल कर गुजारनी चाहिए। जिंदगी में अगर आपने नफरतों की जगह दे दी तो फिर सबकुछ खराब ही होता रहता है। मैं तो बाहर था, आपकी ही फोन से पता चल रहा है कि बरेली जैसा रवायतों के शहर में नफरतों के बीज पनप गए हैं। नफरत के इस बीज को उगने से पहले ही खत्म करने की जरूरत है। अब सवाल यह है कि नफरतों के ये बीज खत्म कैसे होंगे। इसे खत्म करने की जिम्मेदारी हमारी ही है।

बेवफा तुम नहीं बेवफा हम नहीं, फिर वो जज्बात क्यों सो गए

प्यार तुमको भी है, प्यार हमको भी है

फासले फिर ये क्यों हो गए

मैं आपके माध्यम से बरेली की जनता को कहना चाहता हूं कि वे समझदारी दिखाएं। तनाव हमें तरक्की से दो कदम पीछे धकेल देता है।

रोशन है चाहत के दीये हम सबकी आंखों में बुझाने के लिए पागल हवाएं रोज आती हैं

शायर मुनव्वर राना ने कहा.अफसोसजनक है बरेली में सांप्रदायिक तनाव। हमने तो उस हिन्दुस्तान में जन्म लिया है जहां सभी एक दूसरे से मिलजुलकर रहते थे। मुल्क को न जाने किसकी नजर लगती जा रही है। बहुत पहले की बात है मैं जब पाकिस्तान एक मुशायरे के सिलसिले में गया था। एक बड़े अखबार के पत्रकार ने मुझसे यह सवाल किया कि आप हिन्दुस्तान में रहते हैं आपको डर नहीं लगता। पहले तो मुझे उसके प्रश्न पर हंसी आई कि यह कैसा सवाल है। फिर मैंने उससे कहा डर कैसा हम तो 85 करोड़ हिन्दुस्तानियों की निगरानी में रहते हैं। इसके बाद उसकी बोलती बंद हो गई। उस पत्रकार को ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी। बरेली की समझदार और परिपक्व जनता को समझना होगा कि राजनीति कहां से हो रही है। मैंने एक मुशायरे में कहा भी था कि

मुहब्बत करने वालों में यह झगड़ा डाल देती है

सियासत दोस्ती की जड़ में मठ्ठा डाल देती है

तवायफ की तरह अपने गलत कामों के चेहरे पर

हुकूमत मंदिर-ओ-मस्जिद का पर्दा डाल देती है

मेरे दोस्तों बरेली तो मोहब्बतों का शहर कहलाता है। यहां नफरत की जगह कहां है। अमन का पैगाम देता यह शहर क्यों दंगाग्रस्त हो गया है यह गौर करने वाली बात है। मैं आई-नेक्स्ट के माध्यम से बरेली की जनता से कहना चाहता हूं कि धर्म की भाषा छोड़ कर इंसानियत की बात करें।

गले मिलने को आपस में दुआएं रोज आती हैं

अभी मस्जिद के दरवाजे पे मांएं रोज आती हैं

अभी रोशन है चाहत के दीये हम सबकी आंखों में

बुझाने के लिए पागल हवाएं रोज आती हैं

कोई मरता नहीं है हां मगर सब टूट जाते हैं

हमारे शहर में ऐसी बबाएं रोज आती हैं

ये सच है नफरतों की आग ने सब कुछ जला डाला

मगर उम्मीद की ठंडी हवाएं रोज आती हैं.

Report by: Kunal