- इस साल दस गुना ज्यादा, 55.95 क्विंटल हुई अफीम की पैदावार
- सरकारी खजाने के साथ ही तस्करों की भी जेबें भरती है अफीम, अरबों रुपये का है तस्करी का कारोबार
बरेली। अक्सर झमाझम बारिश माहौल खुशनुमा बनाकर लोगों का दिल खुश कर देती हैं। वहीं ओलावृष्टि भी बहुत संतुष्ट करती है। लेकिन समय से पहले मौसम में यह अनापेक्षित बदलाव किसानों को नुकसान पहुंचा जाते हैं। ऐसा ही कुछ पिछले साल लॉकडाउन के दौरान हुआ था, जब पॉल्यूशन दर कम होने से लगातार बारिश और ओलावृष्टि हुई थी। लेकिन इस साल अनुकूल रहे मौसम ने किसानों को ही नहीं बल्कि सरकारी खजाने को भी बहुत फायदा पहुंचा। ऐसी ही कुछ विडंबना इन दो सालों में जिले में अफीम की खेती में भी देखने को मिली। इस साल मौसम अनुकूल होने के चलते अफीम की पैदावार दस गुना से भी ज्यादा बढ़ गई। वहीं इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता ही जितनी अफीम सरकार तक पहुंचती है, उससे कहीं ज्यादा का अवैध धंधा भी किया जाता है। अब ऐसे में सरकार लगातार तस्करी रोकने के लिए भी प्रयासरत है।
दस गुना ज्यादा हुई पैदावार
पिछले साल मौसम में बदलाव होने के चलते अफीम की खेती को बड़ा नुकासान पहुंचा था। स्थानीय नारकोटिक्स कार्यालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल 1,516 लाइसेंस धारक किसानों ने अफीम की खेती की थी। लेकिन मौसम खराब होने के चलते सिर्फ 118 ही फसल में चीरा लगा सके थे। इन कारणों से महज सवा पांच क्विंटल अफीम ही सरकार को भेजी जा सकी थी। वहीं बाकी फसल को विभाग और प्रशासन की एक टीम बनाकर खेत में ही नष्ट करा दिया जाता है। लेकिन इस साल मौसम अच्छा रहा। इस साल 1,673 लाइसेंस धारकों ने 84 हेक्टेयर जमीन पर अफीम की खेती की थी। जिनमें सभी ने फसल में चीरा भी लगाया। ऐसे में अफीम की पैदावार दस गुना ज्यादा बढ़ गई और सरकार तक 55.95 क्विंटल फसल पहुंचाई गई।
मॉरफीन के मुताबिक तय होते हैं मानक
नॉरकोटिक्स ब्यूरो की जानकारी के मुताबिक कुछ समय पहले अफीम की क्वालिटी तय करने के मानक अलग थे। लेकिन अब नए मानकों के मुताबिक मॉरफीन के बेस पर इसके मानक तय किए जाते हैं। बताया कि मॉरफीन सरकारी अस्पतालों में सिजेरियन ऑपरेशन करने में इस्तेमाल होता है। वहीं फसल की औसतन कीमत क्वालिटी के मुताबिक 17 सौ रुपये से साढ़े तीन हजार रुपये प्रति किलोग्राम तक तय की जाती है। वहीं सरकार एक हेक्टेयर इलाके से 80 किलो अफीम की पैदावार की उम्मीद करती है।
अरबों का तस्करी का कारोबार
सरकार की निगरानी में होने वाली अफीम की पैदावार का होना ना होना तो मौसम पर निर्भर करता है, लेकिन अवैध रूप से होने वाला अफीम व उसके अन्य प्रोडक्ट्स का धंधा दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। जिले में हर महीने अरबों रुपये का अफीम का अवैध कारोबार किया जाता है। कहते हैं अफीम के पेड़ का फल ही नहीं उसकी पत्तियां तक कीमती होती हैं। ऐसा ही हाल कुछ अफीम के अवैध कारोबार का भी है। शहर में अफीम के साथ उससे बनने वाले डोडा पाउडर, क्रूड व अन्य प्रोडक्ट्स हैं। इनमें सबसे महंगा क्रूड बिकता है, जोकि स्मैक के प्रोडक्शन में काम आता है। हर एक किलो स्मैक में दो सौ ग्राम क्रूड का इस्तेमाल किया जाता है। सिर्फ बरेली ही नहीं झारखंड, उत्तराखंड, पंजाब व अन्य राज्यों से भी अफीम तस्करी कर जिले में लाई जाती है।
हाल की कीमतें (प्रति किलो)
अफीम - 80 हजार से सवा लाख रुपये
डोडा पाउडर -
क्रूड - 18 लाख रुपये
ठंडे पड़े हैं विभाग
हाल ही में जिले में अफीम व उसके प्रोडक्ट्स के अवैध कारोबार को लेकर कोई खास कार्रवाई नहीं की गई है। नारकोटिक्स विभाग ने भी पिछले कई सालों में कोई कार्रवाई नहीं की और ना ही पुलिस सक्रिय है। वहीं नारकोटिक्स विभाग का कहना है कि उनके पास स्टाफ की कमी है। वहीं अन्य विभागों का सहयोग भी कम ही मिल पाता है। ऐसे में वर्क लोड ज्यादा होने के चलते काम करना मुश्किल हो रहा है।
इस साल मौसम अनुकूल होने के चलते अफीम की पैदावार अच्छी हुई है। पिछले साल के मुताबिक दस गुना से भी ज्यादा पैदावार हुई है। वहीं नशीले पदार्थों का अवैध कारोबार रोकने को लेकर विभाग लगातार प्रयासरत है। कुछ लोगों को ट्रेस किया जा रहा है। जल्द ही कार्रवाई की जाएगी।
- इंस्पेक्टर महेश सिंह, नॉरकोटिक्स विभाग
मादक पदार्थो के अवैध कारोबार को लेकर लगातार पुलिस सतर्क है। लगातार तस्करों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। इनमें कुछ बड़े नाम भी शामिल हैं जिन्हें ट्रेस किया जा रहा है। जल्द ही कार्रवाई की जाएगी।
- रोहित सिंह सजवाण, एसएसपी