- फर्जीवाड़ों और घोटालों में स्वास्थ्य विभाग बन रहा अव्वल
- फ्यूल फ्रॉड, फर्जी नौकरी, फर्जी प्रमोशन और मानदेय के फर्जीवाड़े
- किसी भी जांच में अब तक कोई रिपोर्ट नहीं, न ही किसी पर कार्रवाई
BAREILLY: पब्लिक की निगाहों में डेवलेपमेंट से ज्यादा अपने घोटालों को लेकर नगर निगम सुर्खियों में रहा है। इन घोटालों और गड़बडि़यों में निगम के निर्माण से लेकर टैक्स विभाग भी चर्चाओं में रहे, लेकिन निगम का स्वास्थ्य विभाग फर्जीवाड़े और घोटाले में अलग ही रिकॉर्ड कायम करते जा रहे हैं। नगर निगम में जितने घोटाले या फर्जीवाड़े पिछले म् महीने में पकड़ में आए हैं, उनमें आधे तो अकेले स्वास्थ्य विभाग से ही निकले हैं। निगम का स्वास्थ्य विभाग फर्जीवाड़े की खान बनता जा रहा है। इन घोटालों पर हंगामा हुआ और आरोप लगे तो कमेटी बिठाकर जांच शुरू करा दी, लेकिन रिजल्ट ढाक के वही तीन पात साबित हुआ। किसी मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई। बीते मंडे को विभाग से एक और घोटाला पकड़ में आया, जिसकी जांच की कागजी कार्रवाई शुरू कर दी गई है।
स्वास्थ्य विभाग से ही आगाज
साल की शुरुआत में ही निगम में घोटालों व फर्जीवाड़ों के खुलासे का जो सिलसिला शुरू हुआ था, उसका आगाज स्वास्थ्य विभाग से ही हुआ। ख्फ् जनवरी को नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने ही विभाग से चल रहे निगम के डीजल घोटाले का पर्दाफाश किया था। कई साल से चल रहे डीजल घोटाले में निगम को हर महीने लाखों की चपत लग रही थी। इस खुलासे के बाद से निगम में एक ओर जहां हड़कंप मच गया। वहीं दूसरी ओर फर्जीवाड़े के कई और परतें भी धीरे-धीरे उजागर होने लगी।
तेल के खेल में जांच फेल
ख्फ् जनवरी को निगम में चल रहे तेल के खेल का खुलासा तो हुआ पर उसके बाद दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। पूर्व नगर आयुक्त उमेश प्रताप सिंह ने डीजल घोटाले की जांच के लिए फ्क् जनवरी तक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया। साथ ही कमेटी के अगुवा अपर नगर आयुक्त को जल्द से जल्द मामले की रिपोर्ट पेश करने को कहा, लेकिन न तो जिम्मेदारों ने मामले में गंभीरता दिखाई और न ही चार महीने बाद भी इतने बड़े घोटाले की जांच रिपोर्ट ही सामने आ पाई।
फर्जी एफिडेविट पर पक्की नौकरी
डीजल घोटाले के खुलासे के सवा महीने बाद ही स्वास्थ्य विभाग में एक और बड़ा फर्जीवाड़ा पकड़ में आया। नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने फ् मार्च को विभाग में चल रहे पक्की नौकरी दिलाने के फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ किया। विभाग के दो बाबुओं की मिलीभगत से एक युवक ने मृतक कोटे में स्थाई नौकरी पा ली, जबकि उसकी मां मृतक कोटे में ही सफाई कर्मचारी के पद पर तैनात थी और युवक ने फर्जी एफिडेविट का सहारा लिया था। मामले का खुलासा होने पर नौकरी रद्द हुई और जांच शुरू हुई, लेकिन आरोपी बाबुओं के खिलाफ कोई एक्शन नहीं हुआ।
प्रमोशन में फर्जीवाड़ा
निगम के स्वास्थ्य विभाग में ही साल की शुरुआत में सफाई कर्मचारियों को कार्यवाहक सफाई नायक बनाए जाने का मुद्दा भी चर्चा में रहा। बिना शासनादेश और नियमावली के क्7 से ज्यादा सफाई कर्मचारियों को कार्यवाहक बनाए जाने पर पार्षदों ने काफी विरोध किया। यहां तक कि अधिकारियों पर पैसे वसूल कर कर्मचारियों को प्रमोशन देने के आरोप लगे। इस बवाल ने जनवरी में बोर्ड बैठक में भी हंगामे का रूप लिया और इसके बाद ही पूर्व नगर स्वास्थ्य अधिकारी को अपनी कुर्सी तक गंवानी पड़ी।
मानदेय देने में भी गड़बड़ी
निगम का लेटेस्ट घोटाला भी स्वास्थ्य विभाग से ही निकलकर आया है। 9 जून को नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने अपने पदनाम की जगह जेडएसओ के फर्जी साइन पर संविदा कर्मचारियों को मानदेय बांटे जाने का फर्जीवाड़ा पकड़ा। निगम के दस्तावेजों में दर्ज संविदा कर्मचारियों की तादाद करीब 700 है, जिन्हें ब्ख्ख्0 रुपए हर महीने मानदेय दिया जाता है। पिछले काफी समय से बिना नगर स्वास्थ्य अधिकारी के संज्ञान में लाए इन कर्मचारियों को भुगतान किया जा रहा था, जिसमें से कइयों के सिर्फ कागजों में ही होने के बात सामने आ रही है।
स्वास्थ्य विभाग में उजागर हुए घोटालों की पूरी जांच होगी। भले ही जांच सुस्त रही हो पर अंजाम तक पहुंचेगी। विभाग में गड़बडि़यों को रोकने के लिए जवाबदेही तय की जा रही है।
-डॉ। एसपीएस सिंधु, नगर स्वास्थ्य अधिकारी