टीचर्स की जगह शॉपकीपर्स
एसबी इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ। संदीप ने बताया कि हाईस्कूल की 2 साल की पढ़ाई में 4 से 6 प्रोजेक्ट वर्क और मंथली एग्जाम होते हैं। इसी तरह इंटरमीडिएट में प्रैक्टिकल सब्जेक्ट्स में 8 से लेकर एक दर्जन तक प्रैक्टिकल वर्क करने होते हैं। इन्हें कंप्लीट करने में स्टूडेंट्स टीचर्स की हेल्प लेते हैं। अब अगर रियलिटी की बात करें तो ये जिम्मेदारी टीचर्स नहीं शॉपकीपर्स निभा रहे हैं। जितना अच्छा पैसा, उतना बेहतर मॉडल, जितना बेहतर मॉडल उतने बढिय़ा नंबर। अच्छे नंबर हासिल करने का ये लेटेस्ट फॉर्मूला काफी पॉपुलर हो चला है।


एग्जाम में होती है मार्किंग
यूपी बोर्ड की हाई स्कूल परीक्षा में कम्प्रेहेंसिव इवैल्युएशन टेस्ट 30 माक्र्स का होता है। इसमें स्टूडेंट का क्लास वर्क, उसका प्रोजेक्ट और सेल्फ एसेसमेंट किया जाता है। कुछ ऐसा ही प्रोसीजर इंटरमीडिएट में भी फॉलो किया जाता है। आर्ट, जिओग्राफी, बॉटनी, कैमिस्ट्री, फिजिक्स, सिलाई और होम साइंस सब्जेक्ट्स के प्रैक्टिकल एग्जाम होते हैं। ये फाइल और मॉडल वर्क स्टूडेंट्स के लिए पूरे सेशन में किया गया प्रैक्टिकल वर्क समझा जाता है और इसके 30 माक्र्स होते हैं।


कॉलेज में नहीं होते प्रैक्टिकल्स
ज्यादातर कॉलेज में प्रैक्टिकल वर्क होता ही नहीं है। इससे स्टूडेंट्स को सब्जेक्ट की पूरी जानकारी नहीं होती है। रिजल्ट ये होता है कि स्टूडेंट्स एग्जाम टाइम में बाजार से फाइलें, चार्ट व अन्य मॉडल खरीदकर एग्जामनर के सामने रख देते हैं। एग्जामनर्स भी अच्छा मॉडल देखकर माक्र्स दे देता और बाद में ये मॉउल स्टूडेंट्स के घर की शोभा बढ़ाते हैं।

100 से 2500 रुपए तक के मॉडल
मार्केट में सभी सब्जेक्ट्स के प्रैक्टिकल्स से रिलेटेड ढेरों मॉडल मौजूद रहते हैं। बस ऑर्डर करने की देर है। सिटी के बड़ा बाजार, बिहारीपुर ढाल, सौदागरान वो मार्केट हैं जहां ये मॉडल्स बनाए जाते हैं। इनके रेट भी क्वालिटी के हिसाब से तय होते हैं। पेंसिल से बने हुए व्हाइट पोस्टर 40 से 60 रुपए में मिल जाते हैं। वहीं थर्माकोल शीट पर बने मॉडल की कीमत 100 रुपए से स्टार्ट होकर 300 रुपए तक जाती है। स्वचालित मॉडल की कीमत 500 से शुरू होकर 2,500 रुपए तक होती है।

खुद नहीं पढ़ पाए तो क्या दूसरों को जरूर कराते हैं पास
कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश रखने वाले सुदेश खुद तो साइंटिस्ट नहीं बन सके पर उनके बनाए हुए स्वचालित मॉडल्स स्टूडेंट्स का काम आसान जरूर कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं बिहारीपुर निवासी सुदेश की। तीन भाइयों की इस फैमिली में सुदेश और उनके भाई रंजीत का दिमाग साइंस की केमिस्ट्री समझने और प्रोजेक्ट्स बनाने में खूब चलता था। स्पेशली उनमें, जहां अच्छे-अच्छे स्टूडेंट्स उलझे रहते थे। साइंस प्रोजेक्ट बनाना उनके बाएं हाथ का खेल सरीखा था।


पिता की मौत से छूटी पढ़ाई
सुदेश के पिता की अचानक डेथ हो जाने से घर की स्थिति बिगड़ गई। आर्थिक तंगी के कारण उनकी पढ़ाई पर ब्रेक लग गया। सुदेश तब तक सिर्फ इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई पूरी कर सके थे। पीसीएम ग्रुप से इंटर पास करने के बाद उन्हें पढ़ाई   छोडऩी पड़ी। वहीं उनके छोटे भाई रंजीत को हाई स्कूल पास करने के बाद ही पढ़ाई छोडऩी पड़ी।


Earning के साथ शौक पूरा
मगर साइंस में मास्टर माइंड सुदेश ने अपने टैलेंट को जाया नहीं होने दिया। आजीविका के साथ शौक भी पूरा हो, इसलिए दोनों भाइयों ने स्टार्टिंग में घर से साइंस प्रोजेक्ट बनाने का काम शुरू किया। चूंकि प्रोजेक्ट बेहद सफाई और सलीके से बने होते थे, इसलिए धीरे-धीरे डिमांड ने जोर पकड़ लिया। आज उनके बनाए हुए प्रोजेक्ट की अच्छी खासी डिमांड है मार्केट में।

तो देश के लिए project बनाते
भूकम्परोधी इमारतों का मॉडल, डैम का मॉडल, एटीएम का मॉडल। ये वो स्वचालित मॉडल हैं, जिनकी मार्केट में खासी डिमांड है। वह बताते हैं कि ये काम सिर्फ इसलिए शुरू किया क्योंकि इन प्रोजेक्ट को बनाने में दिली सुकून मिलता था। मॉडल जितना मुश्किल होता था, उसे बनाने में उतना ही मजा आता था। आज बिहारीपुर रोड पर उनकी शॉप है। हालांकि सुदेश को इस बात का मलाल आज भी है कि अगर सही मौका मिला होता, तो दूसरों के लिए साइंस प्रोजेक्ट न बनाकर देश के लिए प्रोजेक्ट बनाते।


Report by: Abhishek Mishra