इबादतों के महीने में शादी करने से लोग करते हैं परहेज
शरई तौर पर मना नहीं है शादी करना, लेकिन लोग इबादत में रहना चाहते हैं मसरूफ
BAREILLY : अल्लाह से गुनाहों की मगफिरत (माफी) मांगने का महीना और खूब इबादत करने का महीना रमजान थर्सडे से शुरू हो गया। बस अब हर दिन लोग सहरी के वक्त से लेकर देर रात तक अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त इबादत करते हुए ही गुजारेंगे। कोई कुरान की तिलावत तो कोई मस्जिदों में नमाज अदा करेगा। चूंकि अल्लाह इस मुकद्दस महीने में लोगों की सारी गुनाहें माफ कर देता है। हर कोई इस माह में इबादत ही करना चाहता है। इसलिए इस महीने में अधिकतर लोग शादी जैसे जरूरी काम को भी दरकिनार कर देते हैं और इस महीने में शादी करने से पहरेज करते हैं।
सिर्फ और सिर्फ इबादत
मुस्लिम उलमाओं के मुताबिक शादी करने के लिए माह-ए-रमजान में शरीयत ने कोई पाबंदी नहीं लगाई है, लेकिन इस महीने में लोग इबादत को ज्यादा तरजीह देना पसंद करते हैं।
पड़ जाता है इबादत में खलल
दरअसल, रमजान में लोग सहरी करते हैं। इसके बाद न तो पानी पीते और न ही कुछ खाते हैं। दिनभर भूखे-प्यासे रहकर अल्लाह के लिए लोग रोजा रखते हैं। ऐसे में यदि लोग शादी जैसे बडे़ काम को करने में दिक्कत होना लाजिमी है। मसलन जब भी किसी की शादी होती है। तो उसके रिश्तेदार भी उसमें शरीक होने आते हैं। जबकि रमजान के दौरान यदि आपने शादी का प्रोग्राम रखा तो फिर लोग आने से कतराएंगे। हालांकि, वह आना तो चाहेंगे लेकिन सिर्फ इसलिए नहीं आ पाएंगे कि उनके लिए रोजा रखकर सफर करना थोड़ा मुश्किल होगा और उनकी इबादत में भी खलल पड़ेगा।
सफर भी नहीं करते
शिया समुदाय से जुडे़ लोग तो माह-ए-रमजान में सफर करने से भी कतराते हैं। शिया उलमाओं के मुताबिक 44 किलो मीटर से ज्यादा सफर करने में रोजा कस्र (खराब) हो जाता है। यह एक तरह से लोगों की सहूलियत के लिए ही बना है। दरअसल रोजा में भूखे-प्यासे सफर करना आसान नहीं होता है। इसलिए ऐसा किया गया है। हालांकि, जिन लोगों का पेशा है। मसलन, ड्राइवर हैं और सफर करते हैं तो उनका रोजा क्रस (खराब) नहीं होगा।
रमजान के दिनों में शादी करने मना नहीं है। हालांकि, यह महीना इबादत के लिए मखसूस है। इसलिए लोग शादी करने से बचते हैं। लोग सिर्फ और सिर्फ इबादत ही करना चाहते हैं।
डॉ एसई हुदा, संयोजक हुदैबिय कमेटी
शादी के लिए रमजान में कोई मनाही नहीं है। रमजान इबादत का महीना है। शादी तो बाकी के महीनों में भी की जा सकती है। इसलिए हम लोग रमजान में इबादत को ज्यादा तरजीह देते हैं।
कमर अली जैदी, शिया वक्फ बोर्ड मेंबर