'क्या कर रहे थे zoo keeper
कैप्टिव सिचुएशन में किसी भी एनिमल के  बिहेवियर की रिपोर्ट अफसरों तक पहुंचाने की पहली जिम्मेदारी जू कीपर की होती है। लेकिन क्या जू कीपर ने अपनी जिम्मेदारी सही ढंग से निभाई है। इस बारे में हमने इंटरनेशनल टाइगर एक्सपर्ट और पन्ना में सबसे पहले 35 बाघों की मौजूदगी के सरकारी दावे को नकार कर पन्ना में बाघों के शिकार की खबर देने वाले डॉ। रघु चुण्डावत से बात की।

बाघों के संरक्षण पर गंभीर नहीं
सोशल एक्टिविस्ट अजय दुबे के अनुसार, बाघों के संरक्षण पर सरकारी संस्थाएं गंभीर नही हैं। उनका मकसद बाघों का कत्ल करना यकीनन नहीं हैं। लेकिन लापरवाही होने के बाद सबूत मिटाने की कोशिश करने वाला भी उतना ही बड़ा गुनाहगार है। अजय जानेमाने व्यक्ति हैं जिन्होंने बाघों के संरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़कर मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व में कोर एरिया टूरिज्म के 450 करोड़ के कारोबार पर बैन लगवाया था। उन्हें आरटीआई अवार्ड 2010 के सिटीजन क्लास में दूसरा स्थान मिला था। अजय बताते हैं कि देश में 1,411 बाघ बचे हैं। अगर वह कैप्टिव सिचुएशन में भी सेफ नहीं रहेंगे तो बाघ कैसे बचेंगे? कानपुर के जू एडमिनिस्ट्रेशन की कमी इस मामले में पूरी तरह नजर आती है।

  • क्या बाघ शावक डाक्टरों की निगरानी में नहीं थे? और अगर थे तो मौत से दो हफ्ते पहले बीमारी ट्रेस क्यों नहीं की जा सकी?
  • बाघ की मौत के बाद स्पॉट पोस्टमार्टम करने के बाद रिपोर्ट ना आने तक अंगों को फ्रोजन कंडीशन में सेफ रखा जाता है। क्या कानपुर जू प्रशासन ने यह कदम उठाया है?


नहीं मिला proper treatment
क्या कानपुर के बाघों को मौत के बाद पोस्टमार्टम में प्रॉपर ट्रीटमेंट मिला है। इस बारे में टाइगर स्टेट कहे जाने वाले मध्य प्रदेश के सबसे बड़े पशु अस्पताल जबलपुर वेटेरिनरी हॉस्पिटल के डॉ। एबी श्रीवास्तव ने फोन पर बातचीत में कई जानकारियां दीं। डॉ। श्रीवास्तव पूरी दुनिया में बाघों की एनॉटामी के विशेषज्ञ माने जाते हैं और विदेशों के कई विश्वविद्यालयों में एनिमल एनॉटॉमी पढ़ाने के लिए भी जा चुके हैं। इन्होंने जू की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े किए, जिनसे जू एडमिनिस्ट्रेशन की लापरवाही साफ तौर पर उजागर होती है। आइए आपसे भी शेयर करते हैं यह बातें, जो लापरवाही को सामने लेकर आती हैं-

  • डॉ। श्रीवास्तव बताते हैं कि बाघों की मौत में किसी भी बाहरी एलिमेंट के शामिल होने की शंका होने पर डेडबॉडी के परीक्षण से ही नतीजे निकाले जा सकते हैं। अगर बाघ की मौत सांप काटने से होने का शक था, तो बॉडी सुरक्षित क्यों नही रखी गई?
  • क्या बॉडी का ब्लड सैंपल सुरक्षित रखने के इंतजाम किए गए? अगर  आईवीआरआई तक आया ब्लड सैंपल  खराब हो चुका था तो क्या अब कानपुर जू एडमिन के पास और ब्लड सैंपल बचे हैं?
  • बाघ की तबियत में खराबी आने पर बाघिन लगातार उसे चाटना शुरू कर देती है। क्या इस तरह की सिचुएशन में जू एडमिन ने बाघ के बदले व्यवहार को ट्रेस करने का प्रयास किया था?
  • बाघिन अपने बच्चे की तबियत खराब होने पर बार बार उसकी बीट और यूरीन को टेस्ट करती है। क्या इस तरह का कोई व्यवहार बाघिन ने किया था?


डॉ। चुण्डावत के कानपुर जू से सवाल

Question-1

  • बाघ को कोई भी प्राब्लम होती है तो सबसे पहले वह अपना खाना छोड़ देता है। इसके अलावा यूरीन करने की मात्रा बढ़ जाती है और खाल ढीली पडऩे लगती है। क्या इन सारी हरकतों की खबर जू कीपर ने वन अधिकारियों को दी थी? और अगर दी गई थी तो उन्होनें क्या एक्शन लिया? 

Question-2

  • एक वयस्क बाघ को 24 घंटे में करीब 12 किलो रेड मीट दिया जाता है। लेकिन अगर बाघ खाना छोडऩे लगता है तो रेड मीट के ऑप्शन में उसे बोन लेस चॉप्ड चिकन मीट, दूध और अंडे के साथ दिया जाता है। क्या कानपुर में बाघ के शावक को ये ट्रीटमेंट दिए गए?

Question-3

  • बाड़े में किसी भी बाघ की तबियत खराब होने लगती है तो तुरंत सभी को सेपरेट बाड़े में शिफ्ट कर दिया जाता है, ताकि दूसरों तक ये इंफेक्शन ना फैल सके। लेकिन कानपुर प्राणी उद्यान ने क्या ऐसा किया था? अगर बाघों को दूसरे बाड़े में शिफ्ट किया गया होता तो शायद दूसरे शावकों में इंफैक्शन ना गया होता.

Question-4

  • बाघों के पोस्टमार्टम के लिए पूरा शव भेजा जाना चाहिए। इसके अलावा अगर बिसरा भी भेजा जाता है तो इसे फ्रोजन कंडीशन में भेजा जाना चाहिए। अगर ये सही कंडीशन में नहीं पहुंचता है तो इसकी जिम्मेदार भेजने वाली अथॉरिटी होती है.

Question-5

  • बाघों के बाड़े में एंट्री करने से पहले पैर या जूते को पोटैशियम परमैंगनेट के पानी से ट्रीट किया जाना चाहिए। कानपुर जू एडमिनिस्ट्रेशन ने क्या इस तरह के इंतजाम किए हैं?
    Report by Ashu Pragya Mishra