बदला हाल
यह वही आलू है, जिसके लिए दो महीने पहले खरीदार ढूंढने से भी नहीं मिल रहे थे। दुकानदारों मजबूरी में आलू फेंक रहे थे। पर वक्त की करवट ऐसी हुई कि अब उसी आलू के दाम आसमान छूने की तैयारी में हैं। ट्यूजडे को सिटी की सब्जी मंडियों में आलू 15-20 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिका है। थोक मंडी में आलू की कीमत 8-10 रुपए प्रति किलो है।
प्याज ने दी सहूलियत
पिछले कई वर्षों से आंखों में आंसू लाने वाला इस बार नहीं रुलाएगा। प्याज की बहुतायत के चलते इसके दाम 8-10 रुपए प्रति किलो के हिसाब से हैं। पर आलू के दाम बढऩा सभी को नागवार गुजर रहा है।
75 परसेंट कम हुई पैदावार
मंडी के आलू आढ़ती शाहिद ने बताया वास्तव में इस बार आलू की आमद काफी कम है। यहां आलू की एक दिन की औसतन खपत तकरीबन चार ट्रक होती है। एक ट्रक में 50-50 किलो के 500 बोरे आ जाते हैं। इस वक्त इसकी आधी सप्लाई भी नहीं हो रही। दरअसल आलू की पैदावार गत वर्षों की तुलना में 25 परसेंट ही हुई है। वहीं पहाड़ से आने वाला आलू भी अभी बहुत कम मात्रा में आ रहा है। ऐसे में स्टोर वाला आलू सप्लाई हो रहा है लेकिन इसका माइनस प्वाइंट यह है कि यह आलू गर्मी में जल्दी खराब हो जाता है। इसलिए दुकानदार भी कम-कम ही खरीदते हैं।
मार्केट में खत्म हो रहा आलू
मंडी के आलू आढ़ती नावेद ने बताया आलू के दाम तो इस बार 50 रुपए तक भी जा सकते हैं। नया वाला आलू मार्के ट में आने की बजाय मुनाफा कमाने के लिए स्टोर किया जा रहा है। ऐसे में धीरे-धीरे आलू मार्केट में खत्म होता जा रहा है। इसकी वजह से दामों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। स्टोर वाला आलू तो पहले मंडी में आने के बाद छांटा जाता है। उसके बाद ही उसे दुकानदार खरीदते हैं। गर्मी ज्यादा होने की वजह से कोल्ड स्टोर से निकल कर आया यह आलू, ज्यादा दिन ठीक भी नहीं रहता है।
व्यापारी मालामाल, किसान कंगाल
किसान की खेत से चलकर आपके किचन तक पहुंचने वाली सब्जियां कई पड़ाव से होकर गुजरती हैं। हर पड़ाव पर कीमत बढ़ती जाती है और घर तक पहुंचते-पहुंचते आपका बजट जवाब दे देता है। कीमत कई गुना हो जाती है। किसान जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी कंगाल रहता है और व्यापारी मालामाल होता जाता है।
खेत तक खरीद लेते हैं
बरेली और इसके आसपास के एरियाज में सब्जियों की अच्छी पैदावार होती है। फरीदपुर, भुता, बहेड़ी, नवाबगंज, आंवला रामगंगा, मीरगंज ,सतीपुर, जगतपुर, भोजीपुरा, बाकरगंज ऐसे एरियाज हैं जहां सभी तरह की सब्जियों की भरपूर खेती होती है। कई किसान पैदावार करने के बाद खुद अपने खर्चे पर थोक मंडी में फसल बेचने आते हैं। जबकि अधिकांश किसानों को मंडी तक पहुंचने की नौबत ही नहीं आती है। खेत में फसल लगने के साथ ही कई थोक व्यापारी किसानों को एक मुश्त पूरी कीमत अदा कर देते हैं। इसके बाद ट्रांसपोटिंग से लेकर मजदूरी तक की कीमत खुद देते हैं। मंडी तक पहुंचने के बाद अपनी शर्तों और कीमत पर सब्जियों को बेचते हैं।
मंडी में टैक्स भी लगता है
अगर सिर्फ आलू की बात की जाए तो इस वक्त मंडी में आने वाले किसान आढ़तियों को आलू की क्वालिटी के हिसाब से 8-10 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं। इसके बाद आढ़ती पांच प्रतिशत दाम बढ़ाकर रिटेल दुकानदारों को बेचते हैं। इस पांच प्रतिशत की बढ़ोत्तरी में ढाई प्रतिशत मंडी का टैक्स और ढाई प्रतिशत आढ़ती का कमीशन होता है। इसके बाद रिटेल दुकानदार इसमें खराब माल, ढुलाई और मुनाफा जोड़कर कीमत निर्धारित करते हैं। इस हिसाब से आलू की कीमत 15-20 रुपये तक हो जाती है। कई पॉश एरियाज में इसकी कीमत और बढ़ जाती है।