- दो साल बाद भी नहीं हो रहा वाहन स्टॉफ का वेरीफिकेशन
- निर्भया कांड के बाद परिवहन आयुक्त ने आरटीओ विभाग को दिए थे निर्देश
- मैक्सिमम वाहनों के स्टॉफ का नहीं हुआ है पुलिस वेरीफिकेशन
BAREILLY :
क्म् दिसम्बर ख्0क्ख् को दिल्ली में निर्भया कांड के बाद देश भर के पैसेंजर व्हीकल्स के लिए सरकार ने नये नियम-कायदे बनाये थे। स्पष्ट निर्देश था कि सभी पैसेंजर व्हीकल्स के पुलिस वेरिफिकेशन के बाद ही ओनर ड्राइवर-कंडक्टर रखें। साथ ही, उन्हें आइडेंटी कार्ड भी दिये जाने का प्रावधान बनाया गया था। अफसोस की बात है कि बरेली में आदेश का अनुपालन परिवहन विभाग के अधिकारी नहीं करा सके और तो और पुलिस-प्रशासन भी नियम के अनुपालन को गम्भीर नहीं हो सका। यही वजह है कि डिस्ट्रिक्ट के कमोबेश सभी वाहनों के ड्राइवर-कंडक्टर का पुलिस वेरिफिकेशन नहीं हुआ है। न ही, इन ड्राइवर-कंडक्टर को आइडेंटी कार्ड भी दिये गये हैं। ऐसे में, बरेली में कभी दिल्ली जैसी घटना से इनकार नहीं किया जा सकता है। दिल्ली में उबेर ट्रवेल्स एजेंसी का ताजातरीन मामला इस लापरवाही से सचेत होने को आगाह भी कर रहा है।
बाद बरेली सहित पूरे देश में कई नियम कानून बने। लेकिन इस घटना के दो साल बाद भी समाज में कोई बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है। जबकि इस घटना के मद्दे नजर परिवहन आयुक्त
दो साल बाद भी
उस समय के तत्कालीन परिवहन आयुक्त आलोक कुमार ने स्पष्ट निर्देश दिा था कि सभी पैसेंजर्स व्हीकल के स्टॉफ को क्भ् दिन के भीतर व्हीकल ओनर विद फोटो आइडेंटी कार्ड मुहैया करायें। आइडेंटी कार्ड देने के साथ ही, स्टॉफ का पुलिस वेरिफिकेशन कराकर उसकी एक प्रति आरटीओ कार्यालय में जमा करायें। क्भ् दिन के बाद आदेश क ा अनुपालन सुनिश्चित कराने के लिए आरटीओ प्रवर्तन को वाहनों की चेकिंग करनी थी। टीसी फरमान जारी कर खामोश हो गये तो आरटीओ आदेश की तामील ही कराना भूल गये, जिसक ा नतीजा यह हुआ कि आरटीओ के प्रवर्तन दस्ते ने आइडेंटी कार्ड से रिलेटेड मामले में कार्रवाई नहीं किया। इसी के साथ ही पैसेंजर्स की सेफ्टी के लिए बनाया गया कानून भी बेमतलब हो गया।
वाहन पर पूरी डिटेल
वाहन स्टॉफ की डिटेल होने के साथ ही ओनर को बस के विंड स्क्रीन पर परमिट संख्या, वाहन की वैधता, ओनर का नाम और मोबाइन नंबर सहित अन्य डिटेल भी बस पर मेंटेन करना था। जिससे किसी भी प्रकार की अनहोनी की स्थिति में जानकारी हासिल हो सके। आरटीओ विभाग की फाइलों में दर्ज आंकड़ों की बात करे तो, बरेली, बदायूं, पीलीभीत और शाहजहांपुर सहित पूरे बरेली रीजन में 78म् प्राइवेट बसों का संचालन हो रहा है। सिर्फ बरेली में चल रही प्राइवेट बसों की संख्या फ्8क् है। इन सभी बसों पर करीब फ्000 हजार से ज्यादा स्टॉफ काम कर रहे है। लेकिन बस ओनर्स ने अपने स्तर पर वेरिफिकेशन करके आरटीओ विभाग को जो रिपोर्ट सौंपी है उसके मुताबिक अभी तक क्फ्8ब् स्टॉफ के ही वेरिफिकेशन हुए है। इनमें से 78म् ड्राइवर और भ्98 कंडक्टर शामिल है।
ट्रवेल्स एजेंसियों ने नहीं कराया वेरिफिकेशन
सिविल लाइन, राजेंद्र नगर, पीलीभीत बाईपास, संजय नगर और चौपुला सहित अन्य एरिया में ब्0 से अधिक ट्रवेल्स एजेंसिया वर्क कर रही है। इनके पास छोटी-बड़ी भ्00 से अधिक वाहन और करीब इतने स्टॉफ भी हैं। जबकि आरटीओ विभाग में टैक्सी के तौर पर ब्भ्ख् वाहनों का रजिस्ट्रेशन है। इनमें इनोवा और इंडिगो जैसे वाहन शामिल है।
लेकिन ट्रवेल्स एजेंसियों ने पुलिस वेरिफिकेशन एक भी शख्स का नहीं कराया है। इस संबंध में ट्रवेल्स एजेंसी ओनर्स का कहना है कि, वे खुद अपने लेवल पर जांच कर ड्राइवर और अन्य स्टॉफ रखते है। यहीं नहीं पैसे बचाने के चक्कर में वाहन ओनर्स ड्राइवर, कंडक्टर और अन्य स्टॉफ डेली वेजेज पर ही रखे जाते है। न तो, इनका कोई पुलिस वेरिफिकेशन होता है, और नहीं किसी प्रकार का आईडेंटी कार्ड जारी किए जाते है।
बीच में ही लटक गया वेरीफिकेशन
कुछ ऐसा ही हाल ऑटो चालकों के साथ भी रहा। परिवहन आयुक्त के निर्देश के तुरंत बाद आरटीओ विभाग और पुलिस प्रशासन की ओर से ऑटो चालकों के वेरीफिकेशन की शुरूआत ख्0क्ख् में ही हुई थी। इसके लिए बकायदा सैटेलाइट सीएनजी पंप पर कैंप भी आयोजित किए गए थे। लेकिन अधिकारियों की यह पहल अधर में ही लटक कर रह गई। तब से दोबारा अधिकारियों द्वारा इस संबंध में कोई प्रयास नहीं किया गया। जबकि शहर में चलने वाले ऑटो चालकों की संख्या ब्000 से अधिक है। वेरीफिकेशन के शुरूआती दौर में डॉक्यूमेंट और एड्रेस वेरीफिकेशन के दौरान कई के साक्ष्य गलत पाए गए थे।
अभी तक क्रास चेकिंग ही नहीं
जिन प्राइवेट बस ओनर्स ने आरटीओ विभाग को अपने लेबल पर वेरीफिकेशन कर रिपोर्ट सौंपी हैं। विभाग उसकी भी क्रास चेकिंग नहीं कर सका है। जबकि वेरिफिकेशन रिपोर्ट को क्रास चेक कर प्राइवेट वाहनों पर चल रहे सारे स्टॉफ के रिकॉर्ड परिवहन आयुक्त को भेजनी थी। लेकिन दो साल बाद भी मामला सिफर है। जिसकी वजह से वाहनों पर वर्क कर रहे स्टॉफ द्वारा किसी भी घटना को अंजाम देने के हौसले को बल मिल रहा है। महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार की घटना बड़े शहरों में ही नहीं छोटे शहरों तक पैर फैला चुकी हैं। बरेली में ऑटो चालकों द्वारा किए गए छेड़खानी के कई मामले सामने आ चुके है। इसके बाद भी अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से भागते ही नजर आ रहे हैं।
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नौकर, चालक, परिचालक के वेरीफिकेशन फार्म सभी पुलिस चौकी और थाने में उपलब्ध है। लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि, वह इस संबंध में आगे आए। वाहन स्टॉफ के वेरिफिकेशन हो सके इसके लिए सीओ ट्रैफिक को कहकर वाहन ओनर्स के साथ मीटिंग करवाएंगे।
राजीव मल्होत्रा, एसपी सिटी
जिन वाहन ओनर्स ने वेरीफिकेशन रिपोर्ट सौंपी है उसकी क्रास चेकिंग करनी बाकी है। जांच के दौरान अगर कोई गलत पाया जाता है तो, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
उमाशंकर यादव, एआरटीओ, इंफोर्समेंट
रोडवेज में म्0 अनुबंधित बसें है। इन सभी का वेरिफिकेशन हुआ है। जो भी अनुबंधित बसें रोडवेज में शामिल की जाती है बस ओनर्स को यह निर्देश दिए जाते है कि, वे स्टॉफ का वेरिफिकेशन कराए।
एसके शर्मा, आरएम, रोडवेज
हम लोग अपने स्तर पर ही वाहन स्टॉफ की जांच करते है। कोई वेरीफिकेशन रिपोर्ट आरटीओ विभाग को नहीं सौंपी गयी है।
लोकेश चंदानी, ओनर, ट्रवेल्स एजेंसी
शहर में ब्0 से अधिक ट्रवेल्स एजेंसियां वर्क कर रही है। सब लोग अपने परिचित को ही ड्राइवर के तौर पर रखते है। मेरे पास जितनी भी गाडि़यां है सब पर अपने परिचित ही ड्राइवर है इसकी वजह से वेरीफिकेशन की कोई जरूरत ही नहीं।
अनवर सिद्दकी, ओनर, ट्रवेल्स एजेंसी