एक तिहाई बहुमत भी हासिल नहीं हो सका
बरेली में कांग्रेस के स्थानीय आकाओं ने रुपयों के दम और गुंडई की धमक से सत्ता हासिल करने का जो ख्वाब देखा था, उसका बरेली की मैच्योर जनता ने मुंह तोड़ जवाब दिया है। मेयर पद के उम्मीदवार को लेकर कांग्रेस के नेताओं में मतभेद पहले से ही था। अब इस मतभेद के गहराने की संभावना और प्रबल हो गई है। बरेली में कांग्रेस के लिए इससे अधिक शर्मनाक बात क्या होगी कि पांच साल सत्ता में रहने के बावजूद उसके मेयर पद के प्रत्याशी को एक तिहाई बहुमत भी हासिल नहीं हो सका। यह भी उस स्थिति में जबकि मेयर पद का प्रत्याशी पूर्व मेयर और उनके सांसद पति का चयनित उम्मीदवार हो।
कई सवाल पैदा करता है
बरेली में कांग्रेस के बड़े नेता लब खोलने को तैयार नहीं हैं। लब पर ताला लगा दिया है बरेली के लोगों ने। लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे कांग्रेस नेतृत्व के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह अपनी थोड़ी बहुत बची साख को कैसे सुरक्षित रखेगी. जहां तक बीजेपी की बात है तो यह भी कोई सकारात्मक संकेत नहीं देते हैं। ऐसे वक्त में जब शहर की दोनों विधानसभा सीट पर बीजेपी पर कब्जा हो वैसी स्थिति में मेयर प्रत्याशी का लंबे अंतर से हारना कई सवाल पैदा करता है। बीजेपी के लिए एक बात और चिंताजनक बात पार्षद पद को लेकर है। बीजेपी की टिकट पर 62 पार्षद खड़े थे इनमें से मात्र 21 ने सफलता हासिल की है। जबकि पिछले साल यह आकड़ा 22 था।
जीत का अंतर इतना अधिक
समाजवादी पार्टी ने बरेली में शुरुआती विवाद के बावजूद जो झंडा गाड़ा है वह अप्रत्याशित नहीं था। समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वह किसी को पार्टी सिंबल नहीं देगी। सिर्फ वह सपोर्ट करेगी। बावजूद इसके मेयर पद पर दो उम्मीदवारों ने चुनाव को रोचक बना दिया था। एन वक्त पर रजनी शर्मा के चुनाव से हट जाने के बाद डॉ। तोमर की जीत पक्की मानी जा रही थी। हालांकि किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि मुकाबले में जीत का अंतर इतना अधिक होगा।