-सेंट्रल जेल के बंदियों को रोजगार देने के लिए सीनियर सुप्रीटेंडेंट की अनूठी पहल
-बंदियों को मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग देकर करा रहे उत्पादन, रोजगार देने के साथ उन्हें बना रहे सेल्फ डिपेंड
2160 बंदी है सेंट्रल जेल में बंद
1-माह पहले करीब कराई थी बंदियों को ट्रेनिंग
30-बंदियों को मशरूम उत्पादन की मिल चुकी है ट्रेनिंग
2-तरह के उगाए जा रहे मशरूम
21-दिन में तैयार हो रही वर्मी कंपोस्ट खाद
15-जनवरी तक शुरू हो जाएगा उत्पादन
बरेली: सेंट्रल जेल में बंद बंदियों को सेल्फ डिपेंड बनाने के साथ उन्हें रोजगार देने के लिए जेल सुप्रीटेंडेट ने उन्हें मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग कराने के साथ मशरूम का उत्पादन भी शुरू किया है। बंदियों को कृषि विज्ञान केन्द्र एक्सपर्ट ने उन्हें ट्रेंड किया है, ताकि वह मशरूम को बेहतर तरीके से उगा सके। सीनियर सुप्रीटेंडेंट आरएन पाण्डेय का कहना है कि जेल में बंदियों को ट्रेनिंग देकर उन्हें रोजगार और सेल्फ डिपेंड बनाने के लिए उन्हें दो तरह के मशरूम उगाने की ट्रेनिंग कराई और अब वह बंदी जेल में मशरूम उगा रहे हैं। मशरूम का लार्ज स्केल पर जेल में उत्पादन कर उसे मंडी में बेचा भी जाएगा।
दो टाइप के उगाए जा रहे मशरूम
-ऑयस्टर (ढींगरी) मशरूम: फ्ल्यूरेटस की प्रजातियों को सामान्यतया ढंींगरी खुम्बी कहते हैं। यह सफेद रंग का होता है। एक्सपर्ट माने तो अन्य खुम्बियों की तुलना में सरलता से उगाई जाने वाली ढींगरी खुम्बी खाने में स्वादिष्ट, सुगंधित, मुलायम तथा पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसमें वसा व शर्करा कम होने के कारण यह मोटापे, मधुामेह व वीपी से पीडि़त व्यक्तियों के लिए अच्छा आहार है।
बटन मशरूम:
बटन मशरूम निम्न तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक उगाया जाता है, लेकिन अब ग्रीन हाउस तकनीक से भी यह हर जगह पर उगाया जा सकता है। सरकार द्वारा बटन मशरूम की खेती के प्रचार प्रसार को भरपूर प्रोत्साहन दिया जा रहा है। अब इसका उत्पादन 20 किग्रा प्रति वर्ग मीटर से अधिक है। यूपी में इसका अच्छा उत्पादन हो किया जा रहा है।
30 बंदियों को दी गई ट्रेनिंग
कृषि विज्ञान केन्द्र बरेली की तरफ से सेंट्रल जेल के बंदियों के लिए मशरूम की खेती का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। साथ ही ढींगरी व बटन मशरूम उत्पादन का कार्य जेल परिसर में भी शुरू किया जा रहा है। इसके लिए बंदियों को एक्सपर्ट रंजीत सिंह ने ट्रेनिंग दी, उनके साथ प्रगतिशील कृषक मुनेश्वर सिंह की देखरेख में मशरूम उगाने का काम हो रहा है। फिलहाल अभी ढींगरी मशरूम उगाने के लिए उत्पादन ईकाई की स्थापना हो चुकी है। यह पूरा काम कृषि विज्ञान केन्द्र के अध्यक्ष राजकरण एवं सेंट्रल जेल के वरिष्ठ अधीक्षक आरएन पाण्डेय के निर्देशन में किया जा रहा है।
पूरी तरह से आर्गेनिक
मशरूम उगाने के लिए गोबर की वर्मी कंपोस्ट खाद और भूसे का प्रयोग हो रहा है। वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने के लिए जेल के अंदर ही व्यवस्था की गई है, 21 दिन में वर्मी कंपोस्ट तैयार कर उसमें भूसा गलाकर मिलाया जाता है उसके बाद उसे मशरूम उगाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यानि कहा जाए जेल में उगाया जाने वाला मशरूम पूरी तरह से आर्गेनिक तरह से उगाया जा रहा है। इसमें किसी भी तरह की रासायनिक खाद या कैमिकल का प्रयोग नहीं हो रहा है।
बाजार में बेचकर निकालेंगे लागत
सेंट्रल जेल में मशरूम उगाने के बाद उसे शहर की मंडी में बेचा जाएगा। सीनियर सुप्रीटेंडेट आरएन पाण्डेय का कहना है कि हमारे पास जेल की कृषि योग्य भूमि करीब 50 एकड़ है। जिसमें सब्जी और अनाज की कृषि होती है। इसके साथ कुछ खाली पड़ी बैरक आदि में भी जमीन है, जिसमें मशरूम उगाया जा सकता है। अभी किशोर सदन में मशरूम उगाने के लिए काम पूरा हो चुका है। सेंट्रल जेल में उगाई जाने वाली मशरूम अभी शुरूआती दौर है लेकिन इसका लार्ज स्केल पर उत्पादन 15 जनवरी तक शुरू हो जाएगा। इसके बाद उसे मंडी में बेचकर लागत निकाली जाएगी। फिलहाल अभी एक दो किलो मशरूम उत्पादन भी डेली होने लगा है।
सेल्फ डिपेंड होंगे बंदी
मशरूम उत्पादन की बंदियों को ट्रेनिंग देने के पीछे मकसद है कि उन्हें सेल्फ डिपेंड बनाया जाए। जेल में जो मशरूम उगाया जाएगा उससे उसका खर्चा निकाला जाएगा, साथ ही बंदियों को रोजगार और दैनिक मजदूरी के रूप में आमदनी भी होगी। जब वह जेल से रिहा होंगे तो वह स्वरोजगार के रूप में मशरूम उत्पादन को अपनाकर रोजगार प्राप्त कर सकेंगे।
हमारे यहां जेल में बंदियों को मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग देकर उनको मशरूम उत्पादन के काम में लगाया गया है। अभी मशरूम उत्पादन की शुरूआत की गई है लेकिन इसका लार्ज स्केल पर उत्पादन किया जाएगा। इससे बंदी सेल्फ डिपेंड होने के साथ रोजगार भी पा सकेंगे।
आरएन पाण्डेय सीनियर सुप्रीटेंडेंट, सेंट्रल जेल बरेली