बरेली मेंटल हॉस्पिटल में उत्तराखंड के मरीजों को एडमिट न करने का मामला
8 हफ्तों में विवादित शासनादेश पर प्रमुख सचिव स्वास्थ्य परिवार से मांगा जवाब
आई नेक्स्ट ने उठाया था उत्तराखंड के मरीजों के साथ हो रहे भेदभाव का मामला
क्चन्क्त्रश्वढ्ढरुरुङ्घ:
बरेली के मेंटल हॉस्पिटल में उत्तराखंड के मरीजों को एडमिट न किए जाने का मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक पहुंच गया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग, उप्र शासन को जवाब-तलब कर लिया है। आयोग ने प्रमुख सचिव को इस मामले में जिम्मेदार अथॉरिटीज से शासनादेश के तहत उत्तराखंड के मरीजों को एडमिट न किए जाने पर स्पष्टीकरण देने के निर्देश दिए हैं। साथ ही इस पूरे मामले में 8 हफ्तों में एक्शन लेने और इसकी जानकारी शिकायतकर्ता को देने के भी निर्देश जारी किए हैं। आई नेक्स्ट ने लास्ट ईयर 7 नवंबर 2014 के पब्लिकेशन में इस मुद्दे को प्रमुखता से उजागर कर उत्तराखंड के मरीजों की तकलीफ उठाई थी। जिसके आधार पर मानवाधिकार आयोग तक यह मामला पहुंच सका।
इस शासनादेश पर है विवाद
साल 2008 से पहले तक प्रदेश में मेंटल हॉस्पिटल्स वाले आगरा, बनारस, लखनऊ व बरेली जिलों में ही आसपास के जनपदों के मरीजों की भी इलाज की व्यवस्था थी। 28 जून 2008 को शासन ने यह व्यवस्था खत्म कर किसी भी मेंटली डिसेबल्ड मरीज को प्रदेश के किसी भी मेंटल हॉस्पिटल में इलाज की सुविधा मिलने के आदेश जारी किए। यह सुविधा प्रदेश के सभी जनपदों के मरीजों के लिए लागू है। शासनादेश की इस लाइन पर ही कंफ्यूजन की स्थिति बनाई गई। अगस्त 2014 में मेंटल हॉस्पिटल के डाइरेक्टर बनाए गए डॉ। एसके श्रीवास्तव ने इस जीओ के आधार पर उत्तराखंड के मरीजों को ओपीडी में इलाज मिलने की छूट दी, लेकिन इलाज के लिए उन्हें एडमिट कराने पर रोक लगा दी।
यूं पहुंचा आयोग तक मामला
लास्ट ईयर 7 नवंबर को आई नेक्स्ट में उत्तराखंड के मरीजों को बरेली मेंटल हॉस्पिटल में एडमिट न करने की खबर छपी थी। जिसके बाद बरेली सदर कैंट बाजार में रहने वाले राजेश चौधरी ने इस खबर के आधार पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली में इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। बकौल राजेश चौधरी उत्तराखंड में रहने वाले उनके परिचितों को भी मेंटल हॉस्पिटल की इस बेरुखी का सामना करना पड़ा। उन्होंने इसके खिलाफ शिकायत की। 22 दिसंबर को आयोग के सामने यह मामला आया। जिसके बाद 21 जनवरी 2015 को आयोग को इस बारे में प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग, उप्र शासन को नोटिस भेजा।
डाइरेक्टर के खिलाफ नाराजगी
अगस्त 2008 में हॉस्पिटल में नए डाइरेक्टर के तौर पर अप्वाइंट हुए डॉ। एसके श्रीवास्तव की वर्किंग के खिलाफ स्टाफ में नाराजगी है। डाइरेक्टर ने ही इस शासनादेश के हवाले से अपनी ज्वाइनिंग के बाद से ही उत्तराखंड के मरीजों को एडमिट करने पर रोक लगा दी थी। इस शासनादेश को कड़ाई से लागू कराने पर मेंटल हॉस्पिटल के तमाम मेडिकल स्टाफ व कर्मचारी भी हैरान हुए। स्टाफ ने आरोप लगाए कि उन्हें ऐसे किसी शासनादेश की जानकारी नहीं दी गई, जिसमें उत्तराखंड के मरीजों को एडमिट न किए जाने का जिक्र हो। स्टाफ ने यहां तक आरोप लगाए हैं कि हॉस्पिटल में नए मरीजों को एडमिट नहीं कराया जा रहा। जिससे कि उनके इलाज की जिम्मेदारी से बचा जा सके।
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