पिछले साल के मुकाबले 20 पर्सेट से ज्यादा मरीजों की बढ़ोतरी

24 बेड पर 4 जिलों के मरीजों का बोझ, 108 एम्बुलेंस से बढ़ गए मरीज

ऑक्सीजन-सक्शन मशीन के अलावा न वेंटीलेटर्स न आईसीयू की सुविधा

BAREILLY:

बरेली ही नहीं बल्कि पूरे मंडल के गरीब मरीजों के लिए इलाज की इकलौती उम्मीद बने डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड की हालत खराब है। हर महीने हॉस्पिटल की इमरजेंसी वार्ड पर बढ़ते मरीजों के दबाव से इलाज की सुविधाएं चरमराने लगी हैं। पिछले साल की पहली तिमाही के मुकाबले इस साल जनवरी से लेकर मार्च तक में ही इमरजेंसी में आने वाले मरीजों की तादाद ख्0 फीसदी से ज्यादा बढ़ गई है। स्टाफ की जबरदस्त कमी, इमरजेंसी एम्बुलेंस से आने वाले मरीजों की बढ़ती तादाद और मेडिकल सुविधाओं में बढ़ोतरी न होने से वार्ड की कंडीशन खराब हो रही। जिसके साइड इफेक्ट में स्टाफ-मरीजों के बीच इलाज को लेकर विवाद से लेकर उन्हें एडमिट न किए जाने जैसी घटनाएं बढ़ने लगी है।

ख्ब् बेड पर मंडल का बोझ

बरेली डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल असल में मंडलीय या डिविजनल हॉस्पिटल है। यहां बरेली के अलावा पीलीभीत, बदायूं, शाहजहांपुर और आंवला से लेकर रामपुर तक के मरीज इलाज के लिए आते हैं। जिनमें ज्यादातर गरीब मरीजों की तादाद ही होती है। वहीं इमरजेंसी वार्ड के मेल ट्राईज व फीमेल ट्राईज के क्ख्-क्ख् बेड मिलाकर कुल ख्ब् बेड ही इलाज के लिए उपलब्ध हैं। जो मरीजों की तादाद के मुताबिक बेहद नाकाफी रहते है। किसी एक्सीडेंट की घटना या फिर किसी बीमारी के एपिडेमिक हो जाने पर स्थिति और खराब हो जाती है।

क्08 इमरजेंसी से बढ़े मरीज

बरेली में साल ख्0क्फ् में शुरू हुई क्08 इमरजेंसी एम्बुलेंस सेवा ने भले ही दूर दराज के मरीजों को भी डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल तक आने व समय पर इलाज मिलने की सुविधा दे दी हो। लेकिन इससे हॉस्पिटल की इमरजेंसी वार्ड की व्यवस्था पर जबरदस्त दबाव बढ़ गया। बढ़े दबाव के चलते ईएमओ व क्08 एम्बुलेंस के स्टाफ में अक्सर विवाद भी बढ़ने लगे। सरकार के ज्यादा से ज्यादा मरीजों को तुरंत मेडिकल एड दिलाने की कोशिश के साथ साथ इमरजेंसी वार्ड की सुविधाएं कदमताल न कर सकी। मरीजों के तादाद के मुकाबले स्टाफ में बढ़ोतरी नहीं किए जाने का असर मरीजों को मिलने वाले इलाज पर सीधे तौर पर पड़ने लगा।

न वेंटीलेटर्स, न आईसीयू

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड के दिनों-दिन खस्ताहाल होने के पीछे एक बड़ी वजह समय के साथ इसका अपग्रेडेशन न होना है। डिविजनल हॉस्पिटल होने के बावजूद यहां इमरजेंसी वार्ड में मरीजों के लिए लाइफ सेविंग मशीन वेंटीलेटर्स नहीं है। इतना ही नहीं इतने अहम हॉस्पिटल में आईसीयू व ट्रॉमा सेंटर भी नहीं है। कई बार इस बारे में प्रपोजल भेजे जाने के बावजूद शासन की ओर से आईसीयू शुरू करने की मंजूरी नहीं मिल सकी। जिससे एक्सीडेंट या गंभीर बीमारी की स्थिति में मरीजों को सिर्फ ऑक्सीजन व सक्शन मशीन की ही सुविधा नसीब है।

एक तिहाई स्टाफ ही मौजूद

इमरजेंसी वार्ड में मरीजों की ख्ब् घंटे इमरजेंट व्यवस्था व इलाज के लिए नर्सिंग स्टाफ की भी बेहद कमी है। वार्ड में महज तीन स्टाफ नर्स और एक सिस्टर वार्डन हैं। जिन पर एक दिन की तीनों शिफ्ट में मरीजों की देखरेख की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। जबकि वार्ड में ख्ब् बेड के हिसाब से शासनादेश के तहत ख्-फ् स्टाफ नर्स व एक सिस्टर की ड्यूटी ही सिर्फ एक शिफ्ट में लगनी चाहिए। जरूरत के मुताबिक सिर्फ एक तिहाई स्टाफ होने से मरीजों के इलाज में असर पड़ता है। नर्सिग कॉलेजेज के कुछ स्टूडेंट्स ट्रेनिंग के दौरान वार्ड के स्टाफ को कुछ घंटे असिस्ट करते हैं.मगर यह राहत वार्ड की दुश्वारियां दूर नहीं कर सकती।

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इमरजेंसी वार्ड में मरीजों का दबाव बना रहता है। स्टाफ और डॉक्टर्स मरीजों को हर तरीके से बेहतर इलाज देने की कोशिश कर रहे। आईसीयू व वेंटीलेटर्स की सुविधा न होना सरकार की नॉलेज में है। हम अवेलेबल स्टाफ व रिसोर्सेज में बेहतर करने कीे कोशिश कर रहे। - डॉ। कर्मेन्द्र, मेडिकल सुपरिटेंडेंट