कई एरियाज में problem

कुतुबखाना, सिविल लाइंस, डीडीपुरम, श्यामगंज, चौपुला चौराहा सहित ऐसे कई एरिया हैं, जहां ध्वनि प्रदूषण ने लोगों को काफी परेशान कर रखा है। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने इन एरियाज में ध्वनि का स्टैंडर्ड मानक दिन में 65 डेसीबल निर्धारित कर रखा है। जबकि जांच में इन एरियाज में ध्वनि का आकड़ा 74 डेसिबल आया है। यह रिकॉर्ड कोई नया नहीं है। हर माह की जांच में ऐसे ही आकड़े सामने आते हैं। सबसे खतरनाक बात तो ये है कि अब इन एरियाज के लोगों की सुनने की क्षमता पर असर पड़ रहा है।

 

अब तो आदत हो गई है

शोर-शराबे के बीच रह रहे बरेलियंस को अब तो ऊंचा सुनने की आदत सी हो गई है। लगातार बढ़ रहे ध्वनि प्रदूषण ने लोगों को काफी परेशान कर रखा है। इस पर बात करने पर लोगों का यही कहना है कि घर पहुंचने पर ही आराम मिलता है। बाहर इतना शोर-शराबा है कि घर से निकलने का दिल ही नहीं करता है।  

Case-1

रामपुर गार्डन के रहने वाले हरिओम अग्रवाल का अपना मेडिकल स्टोर है। 50 साल से कुतुबखाना के पास मेडिकल शॉप चलाने वाले हरिओम को हर वक्त टेंशन होती है। उनकी सुनने की क्षमता 25 परसेंट तक कम हो गई है। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक कुतुबखाना एरिया में निर्धारित मानक से अधिक ध्वनि उत्पन्न होती है। हरिओम बताते हैं कि दुकान के पास शोर इतना अधिक होता है कि ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है। इससे काफी प्रॉब्लम होती है।

Case-2

घंटाचौक के पास लोकप्रिय ज्वैलर्स के शॉपकीपर विक्रमादित्य की सुनने की क्षमता इतनी अधिक प्रभावित हुई है कि अब वो दिल्ली में इलाज करा रहे हैं। विक्रमादित्य बताते हैं कि  दुकान के पास शोर इतना ज्यादा होता है कि ध्यान इधर-उधर बट जाता है। व्हीकल्स से निकलने वाले डस्ट से एलर्जी हो जाती है। इस प्रॉब्लम से काफी परेशान हूं। मैं तो अपना इलाज दिल्ली में डॉ। गोयल से करा रहा हूं। मेरी सुनने की क्षमता बहुत अधिक प्रभावित हुई है।

Case-3

प्रेम नगर के रहने वाले विनोद मिश्रा कुछ ऊंचा सुनते हैं। अगर एक -दो मीटर की दूरी से बात की जाए तो उनको सुनाई नहीं पड़ता है। ऐसा हाल उनका पहले नहीं था बल्कि कुछ सालों से उन्हें सुनने की प्रॉब्लम हो रही है। करीब 40 साल से मेडिकल शॉप चलाने वाले विनोद मिश्रा बताते हैं कि अगर मेरे पास आकर कोई नहीं बोलेगा तो मैं कुछ समझ ही नहीं पाता हूं। सुनने की क्षमता बहुत हद तक प्रभावित हो गई है.  मुझे पहले की तुलना में 30 परसेंट तक कम सुनाई देता है।

Health के लिए सही नहीं

डॉक्टर्स की मानें तो किसी भी जगह लगातार 20 डेसिबल से ज्यादा ध्वनि के बीच अगर आप रहते हैं तो आपके सुनने की क्षमता पर असर पडऩे लगता है। जबकि शहर के कई एरिया तो ध्वनि प्रदूषण के लिए अब मशहूर हो गए हैं। ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ। अंशू अग्रवाल का कहना है कि ज्यादा शोर वाली जगह पर ज्यादा देर रहना हेल्थ के लिए सही नहीं है।

पॉल्यूशन की वजह से टै्रफिक पुलिसकर्मियों में लंग्स की ज्यादा प्रॉब्लम होती हैं। इससे बचने के लिए सबको मास्क प्रोवाइड किये जाते हैं। पहले से प्रोवाइड मास्क में कुछ प्रॉब्लम सामने आई थी। इसे दूर कर लिया गया है। जल्द ही सभी पुलिसकर्मियों को ये मास्क प्रोवाइड करा दिए जाएंगे। उसके बाद सभी का मास्क लगाना अनिवार्य होगा।

-डीपी श्रीवास्तव, एसपी ट्रैफिक, बरेली

ध्वनि प्रदूषण से व्यक्ति में सुनने की क्षमता प्रभावित तो होती ही हैं, इसके अलावा पूरी बॉडी पर भी इसका इफेक्ट पड़ता है। इसकी वजह से ब्लड प्रेशर का बढऩा, सिर दर्द बना रहना, नींद न आने और पेट में भी प्रॉब्लम आ सकती है।

-डॉ गौरव गर्ग, ईएनटी, स्पेशलिस्ट

दिन भर धुएं और शोर से पड़ता है पाला

यूपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अनुसार 70 परसेंट एयर पॉल्यूशन ऑटोमोबाइल की वजह से होता है। ऐसे में इन गाडिय़ों के बीच दिन भर ड्यूटी देने वाले ट्रैफिक पुलिसकर्मियों का क्या हाल होता होगा? उन्हें तो दिन भर शोर और हानिकारक गैसेज के बीच ही ड्यूटी देनी पड़ती है। ऐसे में कई बार वो बीमार भी हो जाते हैं।

 

मास्क भी कामयाब नहीं

एयर पॉल्यूशन का प्रभाव कम हो इसके लिए ट्रैफिक पुलिसकर्मियों को डिपार्टमेंट की ओर से एक मास्क दिया जाता है, लेकिन इसकी स्थिति भी खस्ता हाल है। पुलिसकर्मियों का कहना है कि ये मास्क कामयाब नहीं हैं। इनके फिल्टर खराब हैं, जिससे सांस लेने में प्रॉब्लम होती है। मजबूरन बिना मास्क के ही डयूटी करनी पड़ती है। इसलिए मजबूरी में बीमारियों को अपने अंदर समाना पड़ता है। वहीं ये बात भी सामने आई कि कुछ पुलिसकर्मी शर्म की वजह से भी मास्क का इस्तेमाल नहीं करते हैं।

हानिकारक गैसों से नुकसान

अय्यूब खां, चौपुला, कुतुबखाना, श्यामगंज, सैटेलाइट, चौकी चौराहा, इज्जतनगर फाटक व अन्य चौराहों काफी व्यस्त मार्गों में माना जाता है। ऐसे में पब्लिक की सुविधा और ट्रैफिक को सुचारू रूप से चलाने के लिए इन मार्गों पर ट्रैफिक पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। यहां ट्रैफिक पुलिसकर्मियों के साथ होमगार्ड की भी डयूटी रहती है। इन एरिया से रोजाना भारी मात्रा में व्हीकल गुजरते हैं। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अनुसार इस वजह से हवा में सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड, सीओ सहित कई गैसे ज्यादा मात्रा में मिलती रहती है। ये गैसेज शरीर के लिए काफी हानिकारक होती हैं। वहीं इतने व्हीकल्स के एक साथ चलने से ध्वनि प्रदूषण काफी ज्यादा होता है। एक रिसर्च के अनुसार यह बात साबित हो गई है कि लगभग पचास परसेंट ट्रैफिक पुलिसकर्मी इन बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। ट्रैफिक पुलिसकर्मियों ने अपनी प्रॉब्लम शेयर की। उन्होंने बताया कि हमसे किसी को कम सुनाई देता है, तो कोई दमे का मरीज है। वहीं कई तो हार्ट की प्रॉब्लम से परेशान हैं।