पटाखे से करते हैं सतर्क

टे्रन के ड्राइवर को सिग्नल देने के लिए पहले हत्थे वाले सिग्नल्स का इस्तेमाल किया जाता था। कोहरे में इन सिग्नल्स को ड्राइवर देख नहीं पाते थे। इसलिए स्टेशन से पहले उन्हें पटाखे फोड़ कर अलर्ट किया जाता था। इस काम में रेलवे के रोजाना लाखों रुपए खर्च होते हैं। इस समस्या से निजात पाने के लिए रेलवे ने लगभग सभी स्टेशनों पर एलईडी वाले सिग्नल्स लगवाए थे। इसके साथ ही लंबी दूरी की ट्रेंस में फॉग डिवाइस भी लगाई गई थी। इसमें रेलवे के करोड़ो रुपए खर्च हुए। इतनी कवायद के बाद आज भी यह परंपरा बंद नहीं हुई है और पैसेंजर्स की जेब से निकले पैसों से रेलवे 'दीपावलीÓ मना रहा है।

हर रोज करीब चार लाख खर्च

एलईडी सिग्नल्स लगाए जाने के बाद ड्राइवर्स को स्टेशन से पहले ही या हाल्ट पर सिग्नल का पता चल जाता है। ऐसे में इसके लिए पटाखे फोडऩे का कोई औचित्य नहीं रह जाता। इसके बावजूद रेलवे अभी भी होम सिग्नल से 270 मीटर पहले पटाखा फोडऩे की परंपरा पर कायम है। इस काम में रेलवे के मुरादाबाद मंडल में रोजाना 3.5 लाख रुपए और इज्जत नगर मंडल में रोजाना 35 हजार रुपए का खर्च आता है।

फाइलों तक ही रह गया प्रस्ताव

इस साल तो कोहरे ने लोगों को खास परेशान भी किया। इस सीजन में कोहरे की शुरुआत होने के बाद अब तक लाखों रुपए के पटाखे फोड़े जा चुके हैं। इस परंपरा को खत्म करने के लिए रेलवे ने प्रस्ताव भी बनाया था लेकिन यह फाइलों तक ही सिमट कर रह गया। इसके लिए रेलवे ने पटाखे फोडऩे की जगह सिग्नल में इनकी आवाज टेप कर बजाने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन इसका कुछ हो नहीं सका।

ये परंपरा चली आ रही है। हालांकि नई तकनीक के साथ इस परंपरा को खत्म करने की कोशिशें जारी हैं। कई ट्रेंस में एक्सपेरीमेंट के लिए फॉग डिवाइस लगाई गई हैं। उम्मीद है इस खर्च पर काबू पाया जाएगा।

राजेंद्र सिंह, पीआरओ एनआर रेलवे