बरेली (ब्यूरो)। रंगोत्सव होली का पर्व इस बार आठ मार्च यानि वेडनसडे को मनाया जाएगा। इसके लिए कुछ लोगों ने पहले से ही तैयारी कर ली है तो कई लोग तैयारी करने में लगे हुए हैं। होली पर्व पर वैसे तो हर कोई किसी भी रंग को एक दूसरे को लगा देते हैं, लेकिन ज्योतिषाचार्यो की मानें तो अगर होली के पर्व पर ग्रहों के रंगों से अपनी राशि के अनुसार होली खेलेंगे तो इससे सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी और नवग्रह देवता भी प्रसन्न होंगे। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं। राजीव शर्मा के अनुसार राशि के अनुसार रंग खेलने से शुभ फल मिलता है और पारिवारिक रिश्तों में सुखद अनुभूति होती है।

राशि अनुसार समझें कलर
मेष राशि : इस राशि वालों को लाल रंग से होली खेलना चाहिए।
वृष राशि : इस राशि वालों को हल्के गुलाबी या हल्के नीले रंग से होली खेलना चाहिए।
मिथुन राशि : इस राशि वालों को हरे रंग से होली खेलना चाहिए।
कर्क राशि : इस राशि वालों को हल्का पीला,केसरिया रंग से होली खेलना चाहिए।
सिंह राशि : इस राशि वालों को लाल,पीला अथवा नारंगी रंग से होली खेलना चाहिए।
कन्या राशि : इस राशि वालों को हरे रंग से होली खेलना चाहिए।
तुला राशि : इस राशि वालों को हल्का पीला,गुलाबी या नीले रंग से होली खेलना चाहिए।
वृश्चिक राशि : इस राशि वालों को गहरे लाल रंग से होली खेलना चाहिए।
धनु राशि : इस राशि वालों को पीले रंग से होली खेलना चाहिए।
मकर राशि : इस राशि वालों को भूरे अथवा नीले रंग से होली खेलना चाहिए।
कुम्भ राशि : इस राशि वालों को काले अथवा गहरे नीले रंग से होली खेलना चाहिए।
मीन राशि : यह सौम्य राशि है। इस राशि वालों को पीले रंग से होली खेलना चाहिए।

होली पर बरतें सावधानियां
होली के दिन प्रात:काल हींग के पानी से मुखशोधन करना चाहिए।
प्रात:काल हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए।
प्रात:काल अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए।
होली जलाते समय अपने ऊपर से लौंग वार कर होली की अग्नि में डालें।
इस दिन हनुमान जी को चोला एवं भैरव जी पर तेल अवश्य चढ़ाएं।

होलिकोत्सव कथा
नारद पुराण के अनुसार आदिकाल में हिरण्यकश्यप नामक एक राक्षस हुआ था। दैत्यराज खुद को ईश्वर से भी बड़ा समझता था। वह चाहता था कि लोग केवल उसकी पूजा करें, लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रहलाद परम विष्णु भक्त था। भक्ति उसे उसकी मां से विरासत के रूप में मिली थी। हिरण्यकश्यप के लिए यह बड़ी चिंता की बात थी कि उसका स्वयं का पुत्र विष्णु भक्त कैसे हो गया और वह कैसे उसे भक्ति मार्ग से हटाए। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को भक्ति छोडऩे को कहा परंतु अथक प्रयासों के बाद भी वह सफल नहीं हो सका। कई बार समझाने के बाद भी जब प्रहलाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप ने अपने ही बेटे को जान से मारने का विचार किया। कई कोशिशों के बाद भी वह प्रहलाद को जान से मारने में नाकाम रहा। बार बार की कोशिशों से नाकाम होकर हिरण्यकश्यप अपनी बहन होलिका से मदद ली। जिसे भगवान शंकर से ऐसा वरदान मिला था जिसके अनुसार अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। तब यह तय हुआ कि प्रहलाद को होलिका के साथ बैठाकर अग्नि में स्वाहा कर दिया जाएगा। होलिका अपने इस वरदान के साथ प्रहलाद को गोद में लेकर बैठ गई लेकिन विष्णु जी के चमत्कार से होलिका जल गई और प्रह्लाद की जान बच गई। इस के बाद से होली की संध्या को अग्नि जला कर होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।

यह है शुभ मुहूर्त
-पूर्णिमा 6 मार्च को सांय 4:17 बजे प्रारम्भ होकर 7 मार्च को सांय 6:10 बजे तक रहेगी।
-6 मार्च को पूर्णिमा पूर्ण प्रदोष व्यपिनी है जबकि 7 मार्च को भी पूर्णिमा भारत के कुछ स्थानों में प्रदोष व्यपिनी रहेगी।
-6 मार्च को सांय 4:17 बजे से अगले दिन प्रात: 5:13 बजे तक भद्रा रहेगी।
-इस दिन पूरा का पूरा प्रदोष भद्रा से दूषित है। 7 मार्च को पूर्णिमा साढ़े तीन प्रहर से भी अधिक है और प्रतिपदा यहां पूर्णिमा के मान से कम होने पर ह्रास गामिनी है।
-देशाचार के अनुसार जहां सूर्यास्त सायं 6:10 बजे से पहले होगा। वहां होलिका दहन 7 मार्च को ही भद्रा रहित प्रदोष काल में होगा।

होलिका पूजन
होलिका दहन से पहले होलिका की पूजा की जाती है। इस में सामग्री एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गन्ध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, सबूत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, गेहूं की बालियां आदि होना चाहिए। पूजा को करते समय पूजा करने वाले को होलिका के पास जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुहं करके पूजन करना चाहिए। बडग़ुल्ले की बनी चार मालाएं इनमें से एक पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी माला अपने घर परिवार की होलिका को समर्पित कर कच्चे सूत की तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटें फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुएं होली को समर्पित करें। गंध पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन करें। पूजन के बाद जल से अध्र्य दे। सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल में होलिका में अग्नि पज्ज्च्च्वलित करें।

होली की राख से लाभ
किसी ग्रह की पीड़ा होने पर होलिका दहन के समय देशी घी में भिगोकर दो लौंग के जोड़े, एक बताशा और एक पान के पत्ते पर रखकर अर्पित करना चाहिए। अगले दिन होली की राख लाकर अपने शरीर पर तेल की तरह लगाकर एक घंटे बाद हल्के गर्म पानी से स्नान करना चाहिए। ग्रह पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।