- प्रतिपदा तिथि का ह्रास होने से केवल 14 दिनों का पड़ रहा है पितृपक्ष

BAREILLY: श्रद्धा, समर्पण और प्रेम के साथ पितरों को कुछ भेंट करने को श्राद्ध कहा जाता है, जबकि तर्पण का अर्थ है पूर्वजों को जल देना। ज्योतिषाचार्यो के अनुसार पितृपक्ष में पितरों को तर्पण करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है। वहीं पूर्वज प्रसन्न होकर सुख शांति का आशीर्वाद देते हैं। आमतौर पर शारदीय और बासंतीय नवरात्र का पितृपक्ष क्भ् दिनों का 'महालय' होता है, लेकिन इस बार प्रतिपदा तिथि का ह्रास होने से केवल क्ब् दिनों का ही पितृपक्ष माना जा रहा है जो ट्यूजडे सुबह 8:ब्भ् से शुरू हो जाएगा।

श्राद्ध कर्म का िवधि विधान

प्रतिमास में दो पक्ष होते हैं, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक पक्ष क्भ् दिनों का होता है। आश्रि्वन कृष्ण पक्ष के क्भ् दिनों में ही पितरों का तर्पण किया जाता है। ज्योतिषाचार्यो के अनुसार पहले दिन जातक सुबह स्नानादि के बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख कर बैठ जाएं। पूर्वज की तस्वीर को भी दक्षिण दिशा में ही रखें। फिर चंदन, तिल, जौ, कुशा से उनका पूजन करें। पितरों के लिए घर में बना भोजन पत्तल में निकालकर तस्वीर के सामने रख दें। जो जातक किसी कारणवश इन चौदह दिनों में पितरों को तर्पण नहीं कर पाते हैं, वह पितरी अमावस्या यानि ख्ब् सितम्बर को तर्पण कर सकते हैं। जातक को केवल शाम को भोजन ग्रहण करना चाहिए।

किस दिन किसका श्राद्ध करें

-प्रतिपदा तिथि को नाना का श्राद्ध करना चाहिए

-चतुर्थी या पंचमी तिथि में पिछले वर्ष हुई मृतक का

-स्त्री का श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए

-अकाल मृत्यु वाले व्यक्तिओं का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि में

-अमावास्या को सभी पितरों का श्राद्ध करना चाहिए

- पितृपक्ष में तर्पण करने से पितरों को मुक्ति और जातकों को पितृदोष से मुक्ति मिलती है। इन पंद्रह दिनों में प्रसन्न होकर पूर्वज सुख-शांति समेत दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं।

पं। राजेंद्र त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य