BAREILLY: देखते-देखते ही लोकसभा चुनाव की डेट डिक्लेयर हो गई। सिटी से लेकर विलेज तक में चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई। और इस तरह से बहस का दायरा भी बढ़ने लगा है। कंट्री के मेकओवर के लिए सोच से लेकर यूथ ब्रिगेड के फ्यूचर सिक्योर तक को सिक्योर करने लिए आवाजें और बुलंद होने लगी हैं। आपसी चर्चा के माध्यम से राजनेताओं के भविष्य बनाए जा रहे हैं। ऊंट किस करवट बैठेगा और जनता किसे नेतृत्व का बागडोर सौंपेगी। इसे लेकर आपसी बहस का मंच तैयार हो चुका है। अधिकांश वोटर्स का मानना है कि देश का विकास तभी होगा जब नेता ईमानदारी से काम करेंगे। कुछ ऐसी ही चर्चाओं पर चर्चा थर्सडे को बीएसए ऑफिस में इंप्लाई जुटे रहे।
युवाओं का फ्यूचर हो सुरक्षित
बीएएस ऑफिस के लिपिक रामकुमार गंगवार ने कहा कि देश में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। देश के फ्यूचर के साथ नेता खिलवाड़ कर रहे हैं। एक सच्चा रिप्रजेंटेटिव और लीडर से यह उम्मीद की जाती है कि वे देश के लिए कुछ करेंगे, लेकिन यहां तो उल्टा हो रहा है। चुनाव जीतने के बाद वे अपने हित साधने में लगे रहते हैं। जनता की कौन पूछता है। फिर तो उन्हें पब्लिक याद पांच साल बाद ही आती है। अंत में उन्होंने कहा कि इस बार उन्हीं जनप्रतिनिधि को नेतृत्व सौपेंगे जो न्यू जेनरेशन का फ्यूचर सिक्योर करेगा।
सत्ता सुख मिलते ही न भूलें कर्त्तव्य
सीनियर लिपिक प्रेम शंकर शर्मा रामकुमार के विचारों से सहमत दिखे, लेकिन उन्होंने आशंका जताई कि चुनाव जीतने के बाद नेताजी अपने सारे वादे और संकल्पों को भूल जाते हैं। सत्ता का सुख मिलते ही उनकी जनहित की मंशा दम तोड़ देती है। उन्होंने कहा कि इस बार वोटर्स आसानी से उनके झांसे में नहीं आने वाले। वोटर्स पहले से ज्यादा अवेयर हुए हैं और वे पूरी तरह ठोक बजाकर ही अपना बहुमूल्य वोट देंगे। जरूरत पड़ी तो जनता वोट का बहिष्कार करेगी और भ्रष्ट तत्वों को पार्लियामेंट में पहुंचने से रोकेगी।
विवेक से दें वोट
काफी देर से चुप्पी साधे इंजीनियर अरविंद पाल ने अपनी भड़ास निकालते हुए कहा कि आजादी का मतलब दीवार पर पीक थूकना नहीं होता है। जनता राजनेता को चुनकर सत्ता में भेजती है, उसकी जिम्मेदारी है कि वह अपने मत प्रयोग के दौरान विवेक का इस्तेमाल करे। वह भूत और भविष्य का भली प्रकार से मूल्यांकन करे। जनता खुद आगे बढ़कर आए और एक ईमानदार और कर्मठ उम्मीदवार को संसद में भेजे।
चुनौतियों से संघर्ष करें
अरविंद पाल को बीच में रोकते हुए लिपिक दुष्यंत कुमार यादव ने कहा कि इससे क्या होगा। जनता ने दिल्ली में ईमानदार और एक कर्मठी नेता को सत्ता पर बैठाया, लेकिन नतीजा हमारे सामने है। सत्ता संभाले कुछ ही दिन बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसमें कोई दो राय नहीं कि वे एक कर्मठ नेता है। मेरी नजर में उनसे एक चूक हो गई। उन्होंने चुनौतियों से संघर्ष नहीं किया। जनता की उम्मीदों पर एकबार फिर पानी फिर गया। इसके साथ ही लोगों का विश्वास अब ऐसे राजनेता से डगमगाने लगा है।
जमीनी स्तर पर लागू हो योजना
लिपिक संघ प्रकाश बौद्ध ने कहा कि योजनाओं को सही तरीके से लागू करना चाहिए। अगर इसका क्रियान्वयन ठीक से नहीं होगा तो व्यवस्था चरमरा जाएगी। लोगों को परेशानियों से दो-चार होना पड़ सकता है। राजनेता को चाहिए कि देश में भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए पहल करे। किसानों को कृषि कार्यो के लिए प्रेरित करे। एक बड़ी आबादी गांवों में बसती है। इसलिए ग्रामीण विकास को नजरंदाज करके संपूर्ण विकास का सपना नहीं देखा जा सकता।
उम्मीदवारी के लिए हो स्वच्छ छवि
लिपिक तापश मिश्र ने कहा कि सारी पार्टियां स्वच्छ छवि के उम्मीदवार को टिकट दें। तभी जाकर देश की तस्वीर बदलेगी। हमारा नेता ऐसा हो जो निजी सुख सुविधाओं और विलासिता के लिए जनता का दोहन न करे। तभी वह सत्ता में स्थाई बना रह सकता है। जनता का विश्वास जीताने के लिए वास्तव में इनका त्याग करना होगा।
आपसी झड़प से बचें राजनेता
तापश मिश्र की बातें खत्म होते ही सीनियर लिपिक अनिल सक्सेना राजनीतिक दलों की कार्यशैली, उद्देश्य और उनके कैरेक्टर को लेकर ऑपरेशन करना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि राजनेताओं के व्यक्तित्व में भी काफी गिरावट आ गया है। आज विधान सभा से लेकर संसद तक की गरिमा को नेताजी भूल गए हैं। इससे देश की जनता के साथ युवाओं में अपने जनप्रतिनिधियों को लेकर गलत मैेसेज जाता है। जन प्रतिनिधियों को चाहिए कि वह समाज में धार्मिक सौहार्द की स्थापना के लिए संघर्ष करे।
जाति-धर्म का राजनीति बंद हो
काफी देर से सहयोगियों की इस चुनावी चर्चे को ध्यान से सुन रहे लिपिक प्रमोद कुमार यादव ने कहा कि सबसे पहले देश में जाति, धर्म और क्षेत्र की राजनीति बंद होनी चाहिए। शिक्षा का स्तर ऊंचा उठाया जाए। ताकि न्यू जेनरेशन को अपने अधिकार, कर्त्तव्य और अन्य सामाजिक सरोकारों का ज्ञान हो सके। ये युवा आगे चलकर देश की एकता और अखंडता की स्थापना में अपना योगदान देंगे।