-कोविड हॉस्पिटल में कोरोना पेशेंट्स की स्थिति दयनीय

-जमीन पर तड़प रहे हैं पेशेंट्स, सिस्टम हुआ लाचार

बरेली। कोरोना से लड़ने के लिए सरकार के दावों की सच्चाई और हेल्थ डिपार्टमेंट से लेकर डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन की तैयारी की हकीकत इन दिनों कोरोना पेशेंट्स की स्थिति से बयां हो रही है। इन पेशेंट्स के लिए एक तरफ जहां प्राइवेट हॉस्पि्टल्स के दरवाजे बंद हो चुके हैं वहीं सरकारी कोविड सेंटर में इन्हें इलाज के नाम पर मौत से लड़ना पड़ रहा है। यहां इलाज की जैसी व्यवस्था है और जिस तरह पेशेंट्स जमीन पर तड़प रहे हैं, उससे यही कहा जा सकता है कि यह कोविड सेंटर खुद ही कोरोना के कहर से वेंटीलेटर पर है।

फर्श को ही वेंटीलेटर मानो

प्राइवेट हॉस्पिटल्स में बेड नहीं मिलने से सरकारी कोविड सेंटर 300 बेडेड हॉस्पिटल पहुंच रहे पेशेंट्स के लिए यहां फर्श ही वार्ड है, यही बेड है और यही उनके लिए वेंटीलेटर है। इन दिनों यहां हर पांच मिनट में एक गंभीर पेशेंट पहुंच रहा है। इनमें अधिकतर पेशेंट्स ऑक्सीजन की कमी से तड़प रहे होते हैं। इन पेशेंट्स को यहां जैसे-तैसे एंट्री तो मिल जाती है, पर ट्रीटमेंट के नाम पर यहां के हालात उनको डरा देते हैं। यहां बेड खाली नहीं होने की बात कहकर उन्हें कोविड वार्ड के गेट के पास ही जमीन पर भर्ती कर लिया जाता है और ऑक्सीजन मास्क उनके चेहरे पर लग जाता है। यहां इन दिनों कई पेशेंट्स ऐसे ही हालत में जी भी रहे हैं और मर भी रहे हैं।

इलाज नहीं बस मिल रही ऑक्सीजन

कोरोना आपातकाल में सरकारी कोविड सेंटर से लोगों को बड़ी उम्मीदें थी, पर यहां की स्थिति बदहाल अफसोसजनक, निराशाजनक और पीड़ादायक है। यहां पेशेंट्स को सिर्फ ऑक्सीजन ही मिल पा रही है। परिजनों का आरोप है कि यहां न तो मेडिसन है और न ही देखरेख। वार्ड में भर्ती पेशेंट्स को रात में कोई देखने वाला भी नहीं होता है। रात में अगर किसी पेशेंट का ऑक्सीजन मास्क निकल जाता है तो वह बिना ऑक्सीजन के ही तड़पता रहता है। हॉस्पिटल में यह बदहाली स्टाफ की कमी के चलते बताई जाती है। दवा नहीं होने या नहीं दिए जाने की बात को हॉस्पिटल के लोग पूरी तरह खारिज करते हैं।

उपचार, न कोई मददगार

कोविड हॉस्पिटल में पेशेंट्स और उनके परिजनों को पल-पल लाचारी का सामना करना पड़ रहा है। यहां न तो कोई पेशेंट को हाथ लगाना चाहता है और न ही उनके परिजनों की मदद करना। किसी पेंशेंट को इधर से उधर करना होता है तो स्टाफ उसके परिजनों का ही आवाज लगाते हैं। सबसे बड़ी लाचारी उन लोगों के लिए होती है्र, जिनका पेशेंट उनके सामने ही दम तोड़ देता है। इसके बाद शव को यहां से बाहर करने तक में कोई उनकी मदद नहीं करता है। यहां मौजूद अन्य पेशेंट्स के परिजन भी तमाशबीन बने रहते हैं। यहां के ऐसे हालात संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है।