मेरी भतीजी की तबियत खराब होने पर उसे सिटी के नामचीन हॉस्पिटल में एडमिट किया गया। उसे खून की उल्टियां हो रही थी। रात में उसकी हालत खराब हो गई। इसके बाद डॉक्टर्स ने उसे तुरंत वेन्टीलेटर पर डाल दिया। डॉक्टर्स ने बताया कि ऑपरेशन होगा और तुरंत काउंटर पर  70,000 जमा करो। सुबह उसका ब्लड टेस्ट के नाम पर फिर 900 रुपए लिए गए। शक होने पर जब हमने उसे वेंटीलेटर से हटाया तो पता चला कि उसकी मौत तो पहले ही हो चुकी थी।

-भारत भूषण, रेजिडेंट

मेरे ससुर फरीदपुर में रहते थे। उनको स्टोन की प्रॉब्लम थी। तबियत खराब होने पर उनका इलाज लोकल डॉक्टर से करवाना स्टार्ट किया। इलाज के नाम पर उसने 10 दिन में 35,000 रुपए हमसे वसूल लिए और बाद में शहर के डॉक्टर को रेफर कर दिया। सिटी में डॉक्टर से कंसल्ट करने पर पता चला कि उनका केस बिगड़ चुका है। जिससे पहले इलाज हो रहा था वह झोलाछाप डॉक्टर था। ऑपरेशन के बाद हालांकि उनकी हालत में सुधार हुआ।

-मुनीश शर्मा, रेजिडेंट

100 से ज्यादा PRO दे रहे सेवाएं

अमूमन माना जाता है कि हॉस्पिटल का कर्ताधर्ता डॉक्टर होता है। बरेली के संदर्भ में ये बात थोड़ी बेमानी है। दरअसल यहां हॉस्पिटल डॉक्टर नहीं बल्कि पीआरओ चलाता है। आलम ये है कि लगभग सभी बड़े हॉस्पिटल्स ने ऐसे पीआरओ को बकायदा सैलरी पेड इंप्लाई की तर्ज पर रख रखा है। इनका काम हॉस्पिटल तक पेशेंट को पहुंचाना है। ये दीगर है कि इनकी सेवाएं परदे के पीछे से ली जाती है। सोर्सेज के अकॉर्डिंग  सिटी में 100 से ज्यादा पीआरओ हॉस्पिटल्स को अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

झोलाछाप हैं इनके agent  

पीआरओ अपने अंडर एजेंट्स को अप्वॉइंट करते हैं। पीलीभीत बाईपास के पास एक्टिव एक पीआरओ ने नाम न छापने की कंडीशन पर बताया कि अकेले बरेली में सैकड़ों एजेंट काम कर रहे हैं। ये एजेंट सिटी की घनी गलियों से लेकर 10 किमी की रेंज में गांवों तक सक्रीय रहते हैं। इनका काम पेशेंट्स को बहलाकर सिटी के डॉक्टर तक लाना होता है। गांव के झोलाछाप डॉक्टर भी इनके एजेंट की तरह काम करते हैं।

Code word का करते हैं use

ये पीआरओ हॉस्पिटल्स में 5,000-8,000 रुपए तक सैलरी पर काम करते हैं। साथ में इन्हें कमीशन भी दिया जाता है। जिन पीआरओ की सैलरी नहीं बंधी होती है, उनका कमीशन दूसरों के सापेक्ष ज्यादा होता है। मेडिकल टर्म में इनके कमीशन को 'कट, कहा जाता है। वहीं पेशेंट को उड़ान, पकड़ जैसे शब्दों से जाना जाता है। सिटी के कुछ नामचीन हॉस्प्टिल्स ने तो अपने पीआरओ के लिए रूम तक बना रखे हैं।

District hospital है अड्डा

पेशेंट की पकड़ के लिए एजेंट्स सिटी में डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल और बड़े-बड़े हॉस्पिटल्स के आस पास टहलते रहते हैं। ऐसे ही संदिग्ध लोगों की पकड़ के लिए सीएमओ विजय यादव डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में सीसीटीवी कैमरे लगाने की तैयारी कर रहे हैं। ये हॉस्पिटल में आने वाले पेशेंट्स को बेहतर इलाज के नाम पर कमीशन वाले हॉस्पिटल तक ले जाते हैं।

Ambulance driver को भी कमीशन

शहर में एक खेल एम्बुलेंस का भी है। शहर में 300 से ज्यादा एम्बुलेंस सड़कों में दौड़ रही हैं। कही भी एक्सीडेंट हो एम्बुलेंस मौके पर पहुंच जाती है। एक्चुअल में ये कोई जनसेवा नहीं बल्कि पूरा बिजनेस है। ये एम्बुलेंस एक्सीडेंटल केस के पेशेंट को जैसे ही पहले से सेट हॉस्पिटल तक पहुंचाती है, इनको बंधा पैसा दे दिया जाता है। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के सीनियर फिजीशियन बताते हैं कि एम्बुलेंस का बंधा कमीशन 2,000 रुपए है। वहीं इस बिजनेस में ऑटो वाले भी बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं.  उनका कमीशन 500 रुपए फिक्स रहता है।

Patient से होती है वसूली

इस कमीशनबाजी का बोझ हॉस्पिटल नहीं, बल्कि मासूम पेशेंट से ही इनडायरेक्ट वे में वसूला जाता है। एक नामचीन हॉस्पिटल के डॉक्टर बताते हैं कि अब तो हॉस्पिटल कई बेतुकी सी मदों में पेशेंट को इलाज का खर्च दिखाते हैं। मसलन नर्सिंग चार्ज, ड्रिप चढ़ाने का चार्ज, कमरें का चार्ज, सुबह और शाम डॉक्टर की विजीटिंग जैसे चार्ज पर्चा पर आसानी से देखी जा सकती है।

फैला है जाल

सिटी में झोलाछाप डॉक्टर्स भी पेशेंट्स को जमकर गुमराह करते हैं। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के डॉ.एसपी गौतम के अकॉर्डिंग इस वक्त बरेली मंडल में सैकड़ों की संख्या में झोलाछाप डॉक्टर्स एक्टिव है। उन्होंने बताया कि समय-समय पर हम ऐसे डॉक्टर्स को चिन्हित करके छापेमारी करते रहते हैं। सकलैनी, कटी कुईया, रबड़ी टोला, जगतपुर, मीरा की पैठ, बानखाना, काजीटोला, काकड़टोला, जखीरा, खन्नू मोहल्ला, स्वालेनगर सहित पुराने शहर में छाए हुए हैं। ज्यादातर ऐसे डॉक्टर्स का बिजनेस तो बस रेफरल सिस्टम तक सीमित रहता है।

मेरी जानकारी में झोलाछाप डॉक्टर्स का मामला है। हम उन्हें चिन्हित कर रहे हैं। निकट भविष्य

में जल्द ही हम उनके खिलाफ अभियान चलाने की तैयारी कर रहे हैं।

-डॉ। विजय यादव, सीएमओ

डॉक्टर्स हर स्तर पर खेल करते हैं। हमारे ही एरिया में एक झोलाछाप डॉक्टर सक्रिय है। रेजिडेंट्स भी इतना अवेयर नहीं होते कि पहचान सकें कि कहां इलाज करवाना है और कहां नहीं।

-राकेश शंखधार,रेजिडेंट

मेडिकल सेक्टर अब पूरी तरह से व्यवसायिक हो चुका है। हर स्तर पर खेल होते हैं। अगर पेशेंट वेन्टीलेटर पर पहुंच गया तो समझिए कि बचना मुश्किल और हॉस्पिटल का बिल बनाने का दरवाजा खुल गया।

-पायल सक्सेना, रेजिडेंट