'आसमां' में भी फर्राटे भर रहा युवा मन
-बीते साल पासपोर्ट बनवाने वालों का आंकड़ा हुआ जारी
-इंडिया में 80 लाख लोगों को थमाया गया विदेश का टिकट
BAREILLY: ऐसा लगता है कि मेल्स के मुकाबले लेडी ब्रिगेड को फॉरेन नहीं इंडिया ज्यादा भाता है। यह हम नहीं पासपोर्ट डिपार्टमेंट के सालाना आंकड़े कह रहे हैं। बरेली सहित पूरे कंट्री की बात करें तो पासपोर्ट बनवा कर विदेश की उड़ान भरने में उस कदर उत्साह नहीं है जितना कि जेंट्स में। नौकरी हो या फिर पढ़ाई पुरुषों से इस मामले में महिलाएं कोसो पीछे हैं। असल में कहीं न कहीं फैमिली प्रेशर और सुरक्षा के कंसर्न के चलते लेडी ब्रिगेड विदेश यात्रा के अपने सपने को मन में ही दफन कर देती है।
बरेली रीजन में बीते साल 7भ्,000 को हवाई 'टिकट'
साल, ख्0क्फ् में बरेली सहित पूरे इंडिया में करीब 80 लाख एप्लीकेंट्स को पासपोर्ट जारी हुए। अगर हम सिर्फ बरेली रीजन की बात करें तो यहां टोटल 7ब्, ब्म्भ् लोगों को विदेश यात्रा का टिकट यानि की पासपोर्ट जारी हुआ। इनमें बरेली, बदायूं, पीलीभीत, संभल, बिजनौर, एटा, फिरोजाबाद, अमरोहा, काशीराम नगर, मैनपुरी, मुरादाबाद, रामपुर और शाहजहांपुर सहित सभी क्फ् डिस्ट्रिक्ट के एप्लीकेंट्स शामिल हैं। ख्0क्ब् की ही बात करें तो अब तक ख्भ् हजार से अधिक एप्लीकेंट्स को पासपोर्ट थमाया जा चुका है। जानकारी के अनुसार, पासपोर्ट जारी होने की संख्या में हर साल इजाफा हो रहा है, लेकिन इसमें फीमेल्स का आंकड़ा घटता जा रहा है। डिपार्टमेंट की एनुअल रिपोर्ट के मुताबिक टोटल पासपोर्ट बनवाने वालों में मेल जहां म्7 परसेंट हैं तो फीमेल्स का आंकड़ा महज फ्फ् परसेंट ही है।
फैमिली प्रेशर और जॉब मेन रीजन
ख्क्वीं सदी में आज हम भले ही हर फील्ड में महिलाओं के पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाने की बात करते हैं लेकिन ये आंकड़े इस दावे की भी असलियत ही उजागर करते हैं। हवाई रेस में पिछड़ने के पीछे जानकार कई वजहों का जिक्र करते हैं उनमें से फैमिली प्रेशर, अवेयरनेस, सिक्योरिटी कंसर्न जैसे मसले खासे अहम हैं। ऑफिसर्स की मानें तो मैक्सिमम वही लोग पासपोर्ट के लिए अप्लाई करते है, जिन्हें फॉरेन जॉब या स्ट्डी के लिए जाना होता है। अगर हम बरेली रीजन की बात करें तो, यहां पर सऊदी अरब, कुवैत, दुबई जैसी कंट्रीज को जाने वालों की संख्या सबसे अधिक होती है। करीब म्0 परसेंट्स लोग इन्हीं देशों की उड़ान भरने के लिए पासपोर्ट बनवाते हैं। गल्फ कंट्रीज में पुरुषों के मुकाबले लेडीज को जॉब उतनी आसानी से नहीं मिलती। यहीं बात हायर एजुकेशन को लेकर भी है। समाज में लेडीज के साथ होने वाले क्राइम के डर से भी फैमिली मेंबर्स महिलाओं को बाहर भेजने से कतराते हैं। मिडिल क्लॉस फैमिली में ऐसी बातें ज्यादा देखने को मिलती हैं।
लेडीज के लिए खुले दरवाजे
पासपोर्ट सेवा केंद्र पर लेडीज के लिए खास अरेजमेंट है। डॉक्यूमेंट जांच, थम्ब इंप्रेशन के लिए जनरल लाइन में नहीं लगना पड़ता है। सीनियर सिटीजन को भी इस तरह की सुविधा प्रदान की गई है। ताकि, बिना किसी प्रॉब्लम्स के लेडीज और सीनियर सिटीजन को पासपोर्ट जारी किए जा सके। ऑफिसर्स का कहना है कि, पासपोर्ट बनवाने के लिए लेडीज को आगे आने की जरूरत है। असल में पासपोर्ट ही एक ऐसा आईडी प्रूफ है जिसे कहीं भी आवश्यकता पड़ने पर इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन कुछ लोग इमरजेंसी पड़ने पर ही पासपोर्ट के लिए अप्लाई करते है।
यूथ की संख्या भी कम नहीं
पासपोर्ट बनवाने में यूथ में भी जबरदस्त क्रेज है। पासपोर्ट सेवा केंद्र पर अप्लाई करने वालों में बाकी एप्लीकेंट्स के मुकाबले सबसे अधिक संख्या यूथ की ही होती है। पासपोर्ट डिपार्टमेंट की रिपोर्ट के अनुसार, क्9 से फ्0 साल के एप्लीकेंट्स की संख्या सबसे अधिक है, जिन्हें पासपोर्ट जारी हुए हैं। साल ख्0क्फ् में क्9 से फ्0 साल के ब्क् परसेंट लोगों को पासपोर्ट जारी हुए। ऑफिसर्स का कहना है कि, यूथ में पासपोर्ट के प्रति काफी अवेयरनेस है। असल में कहीं न कहीं यूथ इसे स्टेट्स सिम्बल के तौर पर भी देखते हैं।
फैक्ट्स फाइल
ओवरआल परसेंटेज
मेल - म्7
फीमेल - फ्फ्
एज वाइज अप्लीकेंट्स
एज परसेंटेज
0-क्8 - क्भ्
क्9-फ्0 - ब्क्
फ्क्-ब्भ् - ख्ब्
ब्म्-म्0 - क्फ्
म्0 से उपर -7
फर्स्ट टाइम - म्फ् परसेंट
रिन्यूवल - ख्म् परसेंट
तत्काल - 7 परसेंट
अदर - ब् परसेंट
जेंट्स के मुकाबले लेडीज की संख्या कम होती है। जॉब व हॉयर स्ट्डी के लिए जेंट्स बेसिकली फॉरेन जाते हैं। जिसके कारण जेंट्स की संख्या अधिक होती है। लेडीज को भी पासपोर्ट बनवाने के लिए आगे आना चाहिए।
-राम सिंह, पासपोर्ट ऑफिसर, बरेली रीजन
बरेली रीजन से हर साल 70 हजार से अधिक पासपोर्ट जारी किए जाते है। जिनमें जेंट्स की संख्या अधिक होती है। बेसिकली यहां पर गल्फ कंट्री जाने वाले एप्लीकेंट्स ज्यादा अप्लाई करते है।
-नवीन चंद्र बिष्ट, असिस्टेंट पासपोर्ट ऑफिसर, बरेली रीजन
सोसाइटी में बदलाव तो आया है, महिलाओं के प्रति सोच बदली है लेकिन फिर भी इस संबंध में लोगों की मानसिकता नहीं बदली है। सबसे पहले असुरक्षा की भावना घर कर जाती है। जब आप अपने लोकैलिटी में सेफ नहीं महसूस करते तो बाहर फॉरेन के बारे में सोच ही नहीं सकते। पासपोर्ट लेने की संख्या अपर मिडिल क्लास की महिलाओं की ज्यादा है। बाकी कैटेगरी की महिलाएं कतराती हैं। उनको फैमिली से सपोर्ट नहीं मिलता। शादी से पहले अकेली लड़की की चिंता और शादी के बाद ससुराल पक्ष बंदिशें लगा देता है। सिचुएशन को पहले ही भांप कर पैर खींच लेते हैं। इनको एनकरेज करने की जरूरत है।
- डॉ। नवनीत आहूजा, सोशियोलॉजिस्ट
यह सही है कि कई एरियाज में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है लेकिन सामाजिक विवश्ता में बहुत हद तक बदलाव नहीं आया है। महिलाओं के संदर्भ में सामाजिक प्राथमिकता या पारिवारिक मजबूरी उनके पांव पीछे खींचने पर मजबूर कर देती है। वे अपनी जिम्मेदारियों से ज्यादा बंधी रहती हैं। मैं अपना ही एग्जाम्पल देती हूं। मुझे फॉरेन जाने के तीन मौके मिले, लेकिन हर बार कोई ना कोई जिम्मेदारी या फिर विवश्ता की वजह से मैं जा नहीं पाई। कहने का मतलब है कि महिलाओं के पास कई रीजनेबल ग्राउंडस होते हैं जो उनको कई रास्तों पर जाने से रोक देते हैं।
- डॉ। रीना, लॉ फैकल्टी, इंवर्टिस यूनिवर्सिटी