रेलवे में यात्रा करने वाले आम लोगों की समस्याओं से रूबरू होने के लिए आई नेक्स्ट टीम का बरेली टू शाहजहांपुर

BAREILLY: दुनिया के सबसे बड़े इम्पलॉयर का दर्जा पाने वाली भारतीय रेल कई मायनों में राष्ट्रीय धरोहर जैसी है। बावजूद इसके देश की जनता को इससे कई शिकायतें हैं। इसमें सफर करना किसी चुनौती से कम नहीं है। देश के एक बड़े तबके के लिए रेलवे का सफर अब कोई खूबसूरत याद नहीं बल्कि कड़वा तजुर्बा है। अक्सर पटरियों से उतर जाने वाली हमारी भारतीय रेल जनता की उम्मीदों से भी डिरेल हो गई है। आईनेक्स्ट ने एक आम पैसेंजर की तरह महसूस की रेलवे सफर के दौरान आम जनता को होने वाली दिक्कतें। टिकट लेने से स्टेशन पर उतरने तक की मुश्किलों पर यह रिपोर्ट

टिकट घर से शुरू संघर्ष

सफर की शुरुआत फ्राइडे सुबह 8.ख्0 से हुई। बरेली जंक्शन के रिजर्वेशन कॉउंटर पर हमने शाहजहांपुर के लिए जनरल कटेगरी के टिकट के लिए लाइन लगाई। पूरे फ्7 मिनट बाद नम्बर आया। खैर टिकट लेकर इंक्वायरी हॉल पहुंचे जो किसी रैन बसेरा सरीखा लग रहा था। बैठने की जगह तो थी नहीं तो लोगों ने फर्श पर लेटकर ही आराम ढूंढने में भलाई समझी थी। खैर इंक्वायरी पर शाहजहांपुर की ट्रेन के बारे में पूछा तो बेहद भावशून्य अंदाज में मैडम ने बिना कुछ बोले छड़ी उठाकर व्हाइट बोर्ड में बनी लिस्ट में एक ट्रेन की ओर इशारा भर कर दिया। इससे ज्यादा जवाब की उम्मीद बेमानी थी तो प्लेटफॉर्म क् पर पहुंचे जहां राजरानी एक्सप्रेस चलने को तैयार थी।

सीट के लिए मारामारी

ट्रेन लगभग फुल ही थी। आखिर में लगे जनरल कोच में चढ़े तो यहां भी भीड़ ठसाठस थी। पूछा हमेशा इतनी भीड़ रहती है तो करीब ख्ख् साल के एक नौजवान ने हंसते हुए कहा कि आज तो फिर भी कम है। उसकी हंसी से सवाल के बचकानेपन का अहसास हुआ। हम भारतीय रेल पर जो सवार थे। भीड़ इतनी कि लोग बमुश्किल पहलू भी बदल पा रहे थे। कभी-कभी कुछ लोगों में जगह को लेकर कहासुनी हो जाती। लेकिन इससे ट्रेन में लोगों के होने का अहसास बना हुआ था। हम दरवाजे से ही सटे खड़े रहे। यहां से वॉश बेसिन की गंदगी साफ मुस्कुराते दिखी। जैसे कई साल से किसी स्वीपर ने उसे देखा तक न हो। टॉयलेट का हाल भी बुरा। वहां तो सफाई का सोचना भी क्राइम सा लगा। सवा घंटे का सफर था सोचा कुछ और कोच एक्सप्लोर किए जाए। पर हर जगह नजारा पिछले कोच जैसा ही मिला।

तो शर्मसार होते 'शाहजहां'

ठीक क्0.ख्0 बजे शाहजहांपुर स्टेशन आते ही हमारे पैरों में भी हरकत हुई। स्टेशन के प्लेटफॉर्म क् पर ही ट्रेन ने उतारा। पहली नजर में ही देखने भर से अहसास हो गया कि अगर खुद शाहजहां यहां होते तो मारे शर्म के इस स्टेशन का या फिर अपना ही नाम बदल देते। स्टेशन के एंट्री पर ही गाय और वहीं पास में लोग बैठे थे। प्लेटफॉर्म क् पर पंखे तो लगे थे पर शायद उस दिन हड़ताल पर थे। लिहाजा बंद पंखों के नीचे उमस भरी गर्मी में पसीना हो रहे पैसेंजर्स हाथ का पंखा झल रहे थे। कुर्सियां शायद चुनिंदा पैसेंजर्स के लिए ही थी। क्योंकि लोगों का एक बड़ा गोल फर्श पर ही बैठ ट्रेन की राह ताक रहा था। पीने के लिए एक ही वॉटरकूलर लगा था। गंदगी भी ठीकठाक थी, जो अमूमन होती ही है।

सुबह ही गायब थ्ो जिम्मेदार

स्टेशन पर रेलवे में अनअप्रूव्ड लोकल पानी की बोतलें कार्टन में आरपीएफ-जीआरपी थाने के नजदीक करीने से सजी थीं। रिफ्रेशमेंट रूम बंद था अगर किसी को कुछ खाना हो तो उसे स्टेशन के बाहर गंदी नालियों के किनारे बने होटलों से खाना होता। स्टेशन का इकलौता टॉयलेट गंदा और बदबूदार था जो दूर से ही अपने होने की गंध दे रहा था। इन शानदार सुविधाओं पर स्टेशन सुपरिटेंडेंट से मिलना चाहा तो उनका रूम खाली था। स्टेनो ने बारीकी से हमें देखने के बाद सधे अंदाज में कहा बस अभी बाहर निकले हैं। चीफ हेल्थ इंस्पेक्टर से खराब वेंडिंग जोन के बारे में बात करनी चाही तो वह भी ऑफिस में नहीं थे। घड़ी क्क्.ब्भ् बजा रही थी। कंप्लेन करने के लिए कोई न मिला तो दूसरों को उनके हाल पर छोड़ हम आगे बढ़ गए।

फैक्ट्स फाइल

क्-बरेली में रेलवे स्टेशन - ब्

बरेली जंक्शन, सिटी स्टेशन, सीबीगंज स्टेशन, इज्जतनगर स्टेशन

ख्- बरेली जंक्शन से रोजाना गुजरने वाली ट्रेने - 90 से ज्यादा, वीकली ट्रेन अलग

फ्- रोजाना पैसेंजर्स की तादाद- भ्0-म्0 हजार औसत

ब्- रोजाना होने वाले रिजर्वेशन- क्ख्00-क्फ्भ्0 एसी-स्लीपर

भ्- डेली अनरिज‌र्व्ड टिकट की बिक्री- क्9,000 से ख्0,000

ट्रेनों का बड़ा बुरा हाल है। सफाई, सुरक्षा, टॉयलेट्स और साफ पानी की सुविधा बेहद जरूरी है, जो नहीं मिलती। टिकट लो मगर सीट नहीं मिलती। पैंट्री में खाने की क्वालिटी भी बेहद खराब है। रेलवे का स्कॉवयड ऐसा हो जो कभी भी छापा मारें।

- जीपी निर्मलकर, सर्विसपर्सन

ट्रेनों में सफर करना बहुत मुश्किल हो गया है। भीड़ बहुत ज्यादा है। बैठने को जगह नहीं मिलती। सरकार किराया बढ़ाते जा रही है। सुविधा कोई है नहीं। टिकट घर पर लाइन लगानी पड़ती है। टिकट मिल भी जाए तो सीट नहीं मिलती। सेफ्टी है नहीं।

- मनोज कुमार बत्रा, बिजनेसमेन

ट्रेनों में सीट मिलना मुश्किल है। रिजर्वेशन है तो लोकल पैसेंजर्स जगह घेर लेते हैं। पैंट्री के खाने की हालत बहुत खराब है। प्लेटफॉर्म पर बैठने तक को कुर्सियां नहीं मिलतीं। गर्मी है लेकिन पंखे की, ठंडे पानी का भी इंतजाम नहीं। सब सहना पड़ता है।

- अमनदीप सिंह, फार्मर

एसी कोच की हालत थोड़ी ठीक है, लेकिन ओवरऑल ट्रेनों की हालत बहुत खराब है। ट्रेनें शेड्यूल से लेट चलती है। प्लेटफॉ‌र्म्स और टॉयलेट्स गंदे रहते हैं। बीमारी का डर बना रहता है। वेंटिंग रूम भी गंदे रहते हैं। उन्हें खुलवाने के लिए भी कई बार पैसे देने पड़ते हैं। - देविका मिश्रा, सर्विसपर्सन

ट्रेनों की सेफ्टी सबसे अहम है। कोई एक्सीडेंट न हो और न हो पैसेंजर्स के साथ कोई वारदात हो। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा। रेलवे कितने भी इंतजाम करने की बात करें लेकिन वह काफी नहीं है। किराए के मुकाबले पैसेंजर्स को कोई सुविधा नहीं मिलती। - सौरभ सक्सेना, सर्विसपर्सन