-मां-बाप की संक्रमण काल में हुई डेथ तो बच्चे हो गए डिस्टर्ब
-बाल मन में आ रहे आत्मघाती विचार, चाइल्ड हेल्पलाइन कर रही काउंसलिंग
केस=2
पापा बहुत याद आते हो
पापा आप बहुत याद आते हो, जब से आप गए हो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता हैमुझे लगता है मेरी दुनिया उजड़ सी गई है। शहर के मिनी बाईपास रोड की रहने वाली का एक युवती अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अक्सर इस तरह के स्टेटस लगाती है। जानकारी की तो पता चला कि उसके पिता की डेथ कोरोना से हो गई थी। उसके भाई नहीं है। घर में वह और उसकी मां ही हैं। इसीलिए वह अपनी मां के साथ खुद भी गुमसुम सी रहती है।
केस=2
घर में खाने को कुछ नहीं बचा
मेरे पापा की मौत हो चुकी है। मेरी मां अब घर में अकेली हैं। घर पर खाने को कुछ भी नहीं है। प्लीज कुछ खाने को भिजवा दो। मेरा घर इज्जतनगर में है। आप मेरी हेल्प कर दीजिए। इसके बाद चाइल्ड लाइन ने बच्चे के घर पर राशन भिजवा दिया।
केस-3
घर में कमाने वाला नहीं बचा कोई
मैं आंवला से बोल रहा हूं मेरे पिता की मौत कोरोना से हो गई है, मेरी मां के पास अब खर्च और खाने के लिए कुछ भी नहीं है। घर में अब कोई कमाने वाला नहीं बचा है मेरी पढ़ाई भी छूट जाएगी। बच्चे की बात सुनकर चाइल्ड लाइन ने उसे उसकी मां की पेंशन बनवाने की बात बताई और उसे राशन भिजवाया।
बरेली: कोरोना महामारी के चलते कई के सिर से ममता की छंाव छिन गई। ऐसे में तमाम बच्चों के मन में तनाव घर कर गया। पेरेंट्स को खोने क गम और अकेलेपन के चलते कई बच्चों के मन में तनाव इस कदर बढ़ चुका है कि अवसाद के कारण आत्मघाती कदम उठाने के बारे में विचार करने लगे। आलम यह है कि अप्रैल और मई में चाइल्ड हेल्पलाइन के पास दर्जन भर से अधिक बच्चों ने फोन कर मदद मांगी, जिसमें से अधिकांश बच्चे ऐसे थे जिन्होंने कोरोना संक्रमण की वजह से अपने मां या फिर बाप को खोया था। जबकि कुछ बच्चों के सिर से दोनों का ही साया उठ गया।
सोशल साइट पर बता रहे पीड़ा
कोरोना काल में कई ऐसे परिवार हैं जिन्होंने अपनों को खोया है। किसी ने मां, किसी पिता तो किसी ने परिवर के अन्य मेंबर को खोया है। इसमें कई ऐसे लोग भी है जो पेरेंट़स में किसी एक को खो देने के बाद से तनाव में हैं। वह अपनों को भुला नहीं पा रहे हैं। इससे वह परेशान हैं। इसमें कई ऐसे बच्चे हैं अपने अपने मोबाइल या अन्य सोशल साइट पर अपनी पीड़ा को बताते हुए दुखी होते हैं।
ऐसे बचाएं तनाव से
बरेली कॉलेज मनोविज्ञान डिपार्टमेंट की एचओडी डॉ। सुविधा शर्मा बताती हैं कि इस संक्रमण काल में सभी किसी ने किसी तनाव से गुजर रहे हैं। वहीं जिन बच्चों ने अपने माता या पिता को खोया है वह ज्यादा परेशान हैं, ऐसे में परिवार के अन्य सदस्यों का उनके प्रति दायित्व बढ़ जाता है।
-अगर किसी बच्चे की मां की डेथ हो जाती है तो उसके पिता का दायित्व दोगुना हो जाता है, पिता को ही बच्चे मां का भी प्यार देना होता है।
-ऐसे समय में बच्चों से मित्र की तरह बातचीत करना चाहिए।
-बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम देना चाहिए
-बच्चों की भावनाओं को ज्यादा महसूस करना होगा
-ऐसा कठिन टाइम थोड़ा गुजर जाएगा तो मेन स्ट्रीम में आ जाएंगे और वह भूलते जाएंगे
-कोई भी नुकसान होता है तो भावनात्मक पक्ष अधिक डिस्टर्ब होता है भावनाओं को संभालने में टाइम लगता है।
-आजकल के महौल को देखकर फोबिया के जो विचार आ रहे यह स्थाई नहीं है.धीमे धीमे तनाव कम हो जाएगा
-एग्जाम टाइम में भी बच्चे तनाव में होते हैं, उसी तरह से ऐसे टाइम में तनाव होता है लेकिन बाद में ठीक हो जाता है
-ऐसे समय में बच्चे भावनात्मक रूप से ज्यादा परेशान होते हैं।
आपसी दूरी बढ़ा रही तनाव
कोरोना काल से पहले की बात करें तो सभी का आपस में मिलना-जुलना होता था। सभी एक-दूसरे से मिलजुलकर सुख-दुख में शरीक होते थे। लेकिन जब से कोरोना संक्रमण बढ़ा जब से लोगों का एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल होना भी कम हो गया। मिलना जुलना लोगों ने अब सावधानी बरतने के चलते बंद सा कर दिया है। इससे भी कहीं न कहीं पीडि़त व्यक्ति खुद को अकेला सा महसूस करता है और वह अधिक परेशान रहता है।
यह भी तनाव के कारण
-कई बच्चे ऐसे हैं जिन्हें डर है कि पिता की मौत के बाद मां उसे पिता का प्यार नहीं दे सकेगी, खर्च कौन करेगा।
-कई बच्चे नौंवी और ग्यारहवीं में पढ़ रहे हैं, ऐसे में उन्हें अपनी पढाई छूटने का डर है
कोरोना काल में तनाव का शिकार होने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है। इनमें ज्यादातर बच्चों के माता-पिता में से एक की कोरोना से मौत हो गई है। उनकी काउंसिलिंग करने के साथ ही लगातार संपर्क रखा जा रहा है। ऐसे बच्चे जो राशन की डिमांड करते हैं तो उन्हें राशन भिजवाया जाता है।
आरती शर्मा, को-आर्डिनेटर, सिटी चाइल्ड लाइन