- बहन की शादी टूटने के बाद भाऊ साहेब समाज की सोच बदलने निकल पडे़
-22 साल से दहेज और कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ चल रहे अभियान
BAREILLY:
दहेज की खातिर बहन मंगला बाई की शादी क्या टूटी महाराष्ट्र हसनाबाद के रहने वाले भाऊ साहेब भंवर ने दहेज और कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ एक मुहिम ही छेड़ दी। ख्ख् साल में भाऊ साहेब ने पांच बार पूरे देश को साइकिल से पहियों से नाप डाला। भाऊ की जिंदगी का अब एक ही मकसद है कि लड़कियों को लेकर समाज की सोच बदले। उनका कहना है कि जब तक सोच नहीं बदलेगी, तब तक अपनी मुहिम को आगे बढ़ाते
हुए आर्मी के गरूड डिविजन में आए भाऊ का यह कारवां कहां जाकर खत्म होगा आइए जानते है उन्हीं की जुबानी।
औरंगाबाद से भरी हुंकार
बात उस समय ही है जब भाऊ साहेब क्ख् वीं क्लास में थे। उस समय उनके बहन की शादी की बात चल रही थी। फार्मर घराने से जुड़े होने के नाते घरवाले लड़के की ओर से हुए दहेज की मांग पूरी नहीं करे सके। जिस वजह से बहन की शादी टूट गयी। उस समय भाऊ औरंगाबाद में पढ़ाई कर रहे थे। बहन की शादी टूटने के बाद भाउ ने औरंगाबाद से ही अपनी मुहिम की शुरुआत क् मई क्99फ् से की। फिर इसके बाद इनके दिल में इन कुरीतियों के खिलाफ जज्बा बढ़ता गया और इनकी मुहिम भी। ख्ख् साल बाद भी इनका कारवां उड़ान भर रहा है।
भाषा नहीं बनती बाधा
कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक अपनी बातों को लोगों के बीच रखने वाले भाउ साहेब भवर बताते हैं कि, भाषा उनके इस मुहिम में कभी बाधा नहीं बनी। केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पंजाब, बंगाल, यूपी हर जगह वह हिन्दी में ही लोगों के बीच अपनी बातों को रखते है। इनका मानना है कि, हिन्दी हमारी मातृ भाषा है। यही एक भाषा है जहां हर स्टेट में कुछ न कुछ लोग जानने वाले होते हैं। यदि, सौ लोग है तो, क्0 लोग जोकि, हिन्दी समझते है वह मेरी बातों को बाकी लोगों तक पहुंचाने का काम करते हैं।
उत्तर-पूर्वी क्षेत्र अच्छा
पूरे देश का साइकिल से भ्रमण कर अपनी बातों को लोगों के बीच पहुंचाने का काम कर रहे भाऊ से जब यह पूछा गया कि, आप देश में कौन से स्टेट व क्षेत्र को इस मायने में अच्छे मानते है तो, उनका बस यही कहना था कि, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लोग काफी अच्छे है। यहां पर दहेज और भ्रूण हत्या जैसे मामलों बहुत कम होते है। यहां लोग खुद इसका विरोध करते है। महिलाओं का सम्मान होता है। उन्हें जीने का मौका मिलता है।
घरवालों को आने का इंतजार
अपनी मुहिम को जिन्दा रखने के लिए भाऊ साहेब भवर ने शादी नहीं की। मां कहला बाई और पिता विठ्ल राव आज भी अपने बेटे को घर वापस लौट आने की प्रार्थना करते है। लेकिन, समाज को झकझोर देने वाले कुरीतियों
के आगे भाउ अपने परिवार के बीच लौटने की कभी सोचते तक नहीं। इन्होंने बताया कि, मैं यह परिवार वालों को बोल दिया कि, जो भी जमीन, जायदाद है उसे बाकी भाई और बहनों के बीच बांच दे मुझे कुछ नहीं चाहिए।
विरोध पर भी नहीं रुका कारवां
भाऊ साहेब भवर बताते हैं कि, मिशन के शुरुआत से अब तक हर एक मोड़ पर विरोध का सामने करना पड़ता है। लेकिन, मैंने कभी हार नहीं मानी है और नहीं मेरा यह सफर कहीं रुकने वाला है। मुझे यह उम्मीद है कि, मैं सौ साल तक जिउंगा और अपनी मुहिम को आगे बढ़ाने का काम करूंगा। ख्ख् साल के इस मुहिम में समाज में कितना बदलाव हुआ है इस बात पर भाऊ बताते हैं कि, समाज में काफी बदलाव हुए हैं। मुहिम के दौरान जब मैं दोबारा रिलेटेड स्टेट और क्षेत्र में पहुंचता हूं तो, बाहरी लोग भी मेरा सपोर्ट करते है और मेरी छेड़ी गई मुहिम को आगे बढ़ाते हुए नजर आते है। शरीर में प्राण रहने तक मेरा यह कारवां आगे बढ़ता रहेगा। यहीं नहीं आने वाले वक्त में भाऊ अपने अनुभवों को अपनी एक किताब में पिरोने का भी काम करेंगे।
हर जगह हो चुके हैं सम्मानित
अपने इस अभियान में भाऊ साहेब भवर आर्मी का सहारा जरूर लेते हैं। इसके अलावा कॉलेज और अन्य सामाजिक संगठनों में जाकर भी अपनी बातों को लोगों के बीच रहते हैं। भाऊ को इस प्रयास के चलते हर
जगह सम्मानित किया जा चुका है। हल्द्वानी के बाद वेडनसडे को बरेली आर्मी के गरूड डिविजन में पहुंचे भाउ साहेब भवर को जनरल अफसर कमाडिंग वीएसएम मेजर जनरल वीपीएस भाकुनी ने सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया।