बरेली (ब्यूरो)। दीवाली के मद्देनजर पटाखा बनाने वाली कंपनियों ने इस बार ग्रीन पटाखे मार्केट में उतारे हैं। दावा है कि इससे पाल्यूशन नहीं बढ़ेगा। होलसेल से लेकर फुटकर दुकानों पर ग्रीन पटाखे देखे जा सकते हैं। ग्रीन पटाखों के पैकेट पर लोगो और क्यूआर कोड दिया गया है लेकिन ग्रीन पटाखों की आड़ में धड़ल्ले से पुराने पटाखों की बिक्री की जा रही है। इन पटाखों पर न तो लोगो है और न ही क्यूआर कोड। बार कोड जरूर दिया गया है। आशंका है कि बिना क्यूआर कोड वाले पटाखे या तो ग्रीन नहीं है या यह पुराना स्टॉक है। ये स्थिति तब है जब राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) द्वारा सिर्फ ग्रीन पटाखों को चलाने की अनुमति दी गई है।
10 में सिर्फ एक पर क्यूआर कोड
मार्केट में 10 से ज्यादा ब्रांड के पटाखे मौजूद हैं। इनमें सिर्फ दो से तीन ब्रांड के आइटम पर क्यूआर कोड दिया गया है और ग्रीन पटाखे का लोगो है। उसी ब्रांड के दूसरे प्रोडक्ट पर ग्रीन लोगो पिं्रट है तो क्यूआर कोड नहीं बना है। पटाखों की बिक्री पर इसका कोई असर नहीं है। पूरे शहर में यही पटाखे बेचे जा रहे हैं।
ग्रीन पटाखे का दावा
एक बड़े ब्रांड के पैकेट पर बार कोड दिया गया है। उस पर ग्रीन पटाखे का लोगो और क्यूआर कोड नहीं है। इसके बाद भी उसके ग्रीन पटाखे होने का दवा किया जा रहा है। बता दें कि पटाखों पर क्यूआर कोड प्रिंट करने का फैसला पिछले साल लिया गया। दलील है कि कंपनी बल्क में पैकिंग मैटेरियल प्रिंट कराते हैं। इसके चलते पटाखे तो ग्रीन ही हैं लेकिन पैकिंग पुरानी ही है।
इस तरह करें पहचान
पटाखों के ऊपर क्यूआर कोड लगाना अनिवार्य किया गया है। स्मार्ट फोन से क्यूआर कोड को स्कैन कर इसकी असलियत का पता लगाया जा सकता है। इससे पटाखे में इस्तेमाल की गई सामग्री समेत तमाम जानकारी मिल जाएगी। जबकि बार कोड वाले पटाखों में मैनुफैक्चर कंपनी से संबंधित डेटा ही मिल पाएगा।
यहां ग्रीन पटाखों को अनुमति
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वायु गुणवत्ता की निगरानी की है। इसके अनुसार वायु गुणवत्ता स्तर पर मॉडरेट वाले शहरों में सिर्फ ग्रीन पटाखे ही बेचे और चलाए जा सकते हैं। 2021 जनवरी से सिंतबर तक 27 शहरों में थोड़ा मॉडरेट पाया गया। इसमें बरेली भी शामिल है। पर्यावरणविद् और पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार बरेली एंटेनमेंट जोन में है। ऐसे में बरेली में सिर्फ ग्रीन पटाखे ही बेचे और चलाए जा सकते हैं।
यह है अंतर
ग्रीन पटाखो को चलाने पर 90 डेसीबल की आवाज होती है जबकि पुराने पटाखे 125 डेसीबल की तीव्र ध्वनि उत्पन्न करते हैं। ग्रीन पटाखों में बैरियम नाइट्रेट, पोटेशियम नाइट्रेट, एल्युमिनियम और कार्बन का यूज 90 फीसद तक कम किया जाता है। ग्रीन पटाखों मेंं वायु प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले हानिकारक रसायन नहीं होने पर करीब 30 फीसद तक प्रदूषण कम होने का दावा किया गया है।
हमारी टीम लगातार छापेमारी कर पटाखों की जांच कर रही है। संदिग्ध होने पर पटाखे को तुरंत चलाकर प्रदूषण लेवल चेक किया जाता है। तय मानक और गाइडलाइन के अनुसार की पटाखों की ब्रिकी होगी। - रोहित सिंह, क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी