यह भी जानें
-2015 से आगे के रिकॉर्ड तो पुलिस अपलोड कर चुकी थी
-20 साल का क्रिमिनल रिकॉर्ड किया जाएगा ऑनलाइन
- क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग सिस्टम के तहत अपराधियों का डाटा ऑनलाइन किया जा रहा अपलोड
- नहीं पलटने पडें़गे रजिस्टर, एक क्लिक पर मिलेगी अपराधियों की कुंडली, कार्रवाई करने में मिलेगी मदद
बरेली। अपराधिक घटना होने पर पुलिस कार्रवाई की शुरूआत उस तरह के जुर्म करने वाले पुराने चिह्रिनत अपराधियों से करती है। लेकिन पुराने गल चुके रजिस्टरों में दर्ज अपराधियों के इतिहास खंगालना आसान नहीं होता है। इसके चलते शासन ने अपराधियों की कुंडली ऑनलाइन पुलिस पोर्टल पर अपलोड करने के निर्देश दिए थे। ऐसे में वर्ष 2015 से आगे के रिकॉर्ड तो पुलिस अपलोड कर चुकी थी। अब बेहतर व्यवस्था के लिए इससे भी पहले के अपराधियों के रिकॉर्ड क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग के तहत पोर्टल पर अपलोड किए जा रहे हैं। इसकी मदद से अपराधियों पर नजर बनाए रखने में भी पुलिस को मदद मिलेगी।
माफिया भी होंगे ट्रेस
क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग सिस्टम में अपराधियों का डाटा अपलोड करने से पुलिस को मदद मिलेगी। इसकी मदद से पुलिस गुंडा एक्ट, गैंगस्टर, हिस्ट्रीशीटर, माफिया व अन्य अपराधियों को टै्रक कर सकेगी। इसके लिए उन्हें रजिस्टरों का ढे़र लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। साथ ही एक ही पैटर्न पर होने वाली घटनाओं के अनावरण में भी पुलिस को मदद मिलेगी। सीसीटीएनएस सिस्टम की मदद से किसी भी क्षेत्र के अपराधी की डिटेल पुलिस कहीं से भी देखकर इस्तेमाल कर सकती है।
मंत्रालय तक पहुंचता है डाटा
सीसीटीएन पर अपलोड होने वाला अपराधियों का डाटा गृह मंत्रालय तक पहुंचता है। थाना स्तर से अपलोड किया जाने वाला डाटा स्थानीय पुलिस कार्यालय पर चेक किया जाता है। यहां से वह स्टेट लेवल पर और गृह मंत्रालय से भी नेशनल क्राइस रिकॉर्ड ब्यूरो के जरिए एक्सेस किया जा सकता है। पुलिस की कार्यप्रणाली और व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने के लिए राष्ट्रीय ई-गवनर्ेंस के तहत दस साल पहले इस सिस्टम की शुरूआत की गई थी।
सिस्टम के फायदे
- 15 साल और उससे पुराने रिकॉर्ड वाले सक्रिय अपराधियों को ट्रैक करने में मदद मिलेगी
- अपराधियों का रिकॉर्ड किसी भी थाने की पुलिस गायब नहीं कर सकेगी
- थाने के रजिस्टरों के भरोसे नहीं रहना होगा, जिससे रॉ मेटेरियल पर खर्चा भी कम होगा
- अपराधी और उसके गिरोह की ट्रैकिंग होने पर अपराध रोकने में भी मदद मिलेगी
- फोटो, फिंगरप्रिंट व अन्य टेक्नोलॉजी से बनाए गए सेंट्रलाइज ट्रैकिंग सिस्टम से पुलिस को कार्रवाई करने में मदद मिलेगी