-निजी महाविद्यालय के बॉटनी टीचर का इनोवेटिव आइडिया, खुद की बनाई खाद का कर रहे प्रयोग

-एक बीघा के फार्म में उगाई 50 कुंतल से ज्यादा मशरूम

बरेली:

निजी महाविद्यालय के बॉटनी टीचर ने इनोवेटिव आइडिया से मशरूम की पैदावार को डेढ़ गुना तक बढ़ा दिया है। वह कंपोस्ट खाद खुद तैयार कर उसका प्रयोग कर रहे हैं। इसके साथ उसमें हयूमनिक एसिड आदि का भी प्रयोग करते हैं, जिससे मशरूम की पैदावार बढ़ी है। हालांकि उन्होंने इनोवेटिव आइडिया का पहली बार प्रयोग किया है जो सफल रहा है। इससे वह खुश है और अब इस प्रयोग को बड़े स्तर पर करने के साथ अन्य लोगों को भी ट्रेंड करने का विचार बनाया है।

जिवैरोलिक एसिड का प्रयोग

मशरूम की खेती कर रहे डॉ। विजय सिन्हाल ने अपने इजाद किए गए आइडिया को मशरूम फॉर्म के एकएक रो में प्रयोग किया। इसमें सियोटेक जिवरोलिक एसिड व जैविक एसिड का घोल बनाकर मशरूम पर स्प्रे किया, जिस रो में स्प्रे किया गया उसमें मशरूम की पैदावार बाकी दूसरी रो की अपेक्षा ज्यादा हुई। असर दिखा तो सभी रो में एसिड का प्रयोग किया है, जिससे मशरूम की पैदावार डेढ़ गुना तक बढ़ गई।

ऐसे आया आइडिया

डॉ। विजय सिन्हाल निजी कॉलेज में बॉटनी के टीचर हैं। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष उन्होंने करीब एक बीघा मशरूम की खेती की थी जिसमें 30 कुंतल करीब मशरूम निकला था। इस बार भी वह उसी खेत में मशरूम की खेती कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने इस बार नया करने के लिए आइडिया सोचा कि जब ह्यूमनिक एसिड का यूज पौधे की ग्रोथ बढ़ाने के लिए किया जाता है तो उसे मशरूम पर क्यों न यूज किया जाए। इसके साथ कुछ अन्य पोषक तत्व भी यूज किए। उनका यह प्रयोग मशरूम पर कारगर साबित हुआ। बताते हैं कि इस बार वह अभी तक 40 कुंतल मशरूम बेच चुके हैं और उम्मीद जता रहे हैं कि 10-12 कुंतल मशरूम और निकलेगी। बताते हैं कि जॉब के चलते वह इसके लिए ज्यादा समय नहीं दे पाते हैं, इसके चलते उनके सहयोगी लाल बहादुर और अजय कुमार भी इसमें उनकी हेल्प कर रहे हैं।

वेस्ट जड़ को भी नहीं फेंकते

मशरूम को निकालने के बाद मशरूम की जो जड़ बच जाती है उसे किसान वेस्ट में फेंक देते हैं, लेकिन विजय उसे भी नहीं फेंकते हैं। बताया कि जड़ को दोबारा जमीन में लगाकर पोषक तत्व डालकर उससे भी मशरूम उगा ली है। अब उससे भी मशरूम तैयार हो चुका है।

सरकार भी दे बढ़ावा

विजय सिन्हाल बताते हैं कि मशरूम की खेती सितम्बर-अक्टूबर से शुरू होती है, उसके बाद फरवरी और मार्च तक चलती है। गर्मी में मशरूम खराब होने लगती है। उन्होंने बताया कि एक बीघा एरिया में मशरूम की खेती पर करीब दो लाख रुपए खर्च आता है। जबकि मशरूम का थोक रेट सौ से सवा सौ रुपए और फुटकर रेट डेढ़ सौ रुपए प्रति किलो से भी अधिक है। उनका कहना है कि सरकार मशरूम की खेती को बढ़ावा दे और सब्सिडी दे तो मशरूम का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है। क्योंकि इसके लिए एसी आदि की व्यवस्था हो और हॉल बने हो तो मशरूम की खेती पूरे वर्ष की जा सकती है। बताते हैं कि वह अब वह मशरूम की पैदावार बढ़ाने के लिए अन्य लोगों को ट्रेनिंग भी देंगे।