सुनवाई की कौन कहे, नेताजी तो दशकों से लापता हैं

BAREILLY: जब आजादी मिली थी तब यही मायने नहीं निकाला गया था कि केवल अंग्रेजों की गुलामी से निजात मिली है। बल्कि सभी प्रॉब्लम्स से छुटकारा मिलने की उम्मीद भी बंधी थी। इसके संविधान में भी मूलभूत अधिकारों की व्याख्या की गई थी। जिनकी रक्षा करना और उन्हें पूरा करने का दायित्व जनप्रतिनिधियों को था। उम्मीद जताई गई थी जन और गण के बीच मन से रिश्ता कायम होगा और वे आमजन के अधिकारों को पूरा करने के लिए तत्पर रहेंगे, लेकिन आजादी के म्7 वर्ष बाद आज 'जन' बिल्कुल आम हो चुका है और 'गण' मान्य। आई नेक्स्ट ने सिटी के भ् एरिया में जन और गण के बीच स्थापित मन के रिश्ते का जायजा लिया तो सच्चाई कुछ और ही निकली। यहां जन और गण के बीच बेमन का रिश्ता कायम है। जनप्रतिनिधि केवल वोट मांगने के लिए पूरे मन से अपनत्व दिखाते हैं और उसके बाद पब्लिक के लिए उन्हें सारे रिश्ते बेमानी लगने लगते हैं।

ख्भ् वर्षो से जनप्रतिनिधि का चेहरा नहीं देखा

हजियापुर के वासियों ने पिछले ख्भ् वर्षो से ज्यादा समय से अपने जनप्रतिनिधि का इलाके में चेहरा तक नहीं देखा। बच्चे जवान हो चुके हैं और जवान बूढे, लेकिन इनके जनप्रतिनिधि समस्या जानने तो दूर वोट मांगने तक नहीं आते। नतीजा यहां के वासियों की जिंदगी हर वर्ष बद से बदतर होती जा रही है। पूरा एरिया डंपिंग ग्राउंड बन रहा है। ना केवल इस एरिया का बल्कि दूसरे एरिया का कूड़ा भी यहीं डंप किया जाता है। गलियां ऐसी हैं कि बिना बारिश के ही नालियों से भरी रहती हैं। बिजली की व्यवस्था इतनी चरमरा गई है कि आए दिन तार टूट कर गिर जाते हैं। लोग जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाकर थक चुके हैं। अब तो वे सुनवाई के लिए उनकी चौखट पर जाना भी गंवारा नहीं समझते। लोग मिलजुलकर ही प्रॉब्लम का हल ढूंढ़ने लेते हैं। गलियों में जलभराव रहता है खुद ही पाटने लगते हैं। उन्हें अपने जनप्रतिनिधि से रती भर उम्मीद नहीं है।

यह एरिया हर समस्या से घिरा हुआ है। मूलभूत सुविधाएं तो यहां है ही नहीं। बिजली की सुचारु व्यवस्था नहीं है। गलियां बिना बारिश के ही पानी से भरी रहती हैं। नालियां उफान मारती हैं। सफाई करने कोई नहीं आता। कई बार नेता पार्षद से कहा, लेकिन वे यहां पर झांकने तक नहीं आते, समस्या क्या दूर करेंगे। हम नगर निगम के पास हर हफ्ते चक्कर लगाते हैं, लेकिन वहां पर भी हमारी कम ही सुनवाई होती है।

- अतीक अहमद निजामी, हजियापुर

हम तो आज भी अव्यवस्था के गुलाम हैं

हम तो पहले भी गुलाम थे और आज भी गुलाम हैं। पहले अंग्रेजों के गुलाम थे, लेकिन अब नेताओं के। नेता अपनी मर्जी से जो भी करना चाहते हैं, करते हैं, उन्हें पब्लिक की प्रॉब्लम नहीं दिखती है। बाकरगंज के लोगों ने कुछ इसी तरह से अपना दर्द बयां किया। ये वे लोग हैं, जो वर्षो से कूड़े के ढेर पर रह रहे हैं। गंदगी से कई तरह की बीमारियां हो गई हैं। जब इलेक्शन का टाइम होता है तो नेता वोट मांगने के लिए आते हैं, सभी प्रॉब्लम दूर करने के वायदे करते हैं, लेकिन उसके बाद कोई भी झांकने नहीं आता है। यहां के लोगों की मेन प्रॉब्लम बाकरगंज में बने डलावघर में कूड़ा डालना है। कई लोग इतने परेशान हो चुके हैं कि उन्हें किसी से उम्मीद ही नहीं रह गई है इसलिए दर्द बयां करने से भी इंकार कर दिया।

ख्0 साल हो गए हैं लेकिन प्राब्लम जस की तस बनी हुई है। नेता आते रहते हैं, ये नहीं पता कि वो सांसद या विधायक हैं, लेकिन सभी ने वायदा किया कि वो उनकी प्रॉब्लम दूर करा देंगे। यहां कूड़ा डलना बंद हो जाएगा। दिल्ली से भी टीम आयी थी। हम तो नेता जी के पास कभी नहीं गए।

वीरू, बाकरगंज

हमारी प्रॉब्लम से पहले वे खुद का रोना रोते हैं

जोगीनवादा में कोई एक समस्या नहीं है। यहां पर तीन सबसे मेजर प्रॉब्लम्स है रोड, बिजली और पानी। यहां की गलियां ही नहीं मेन रोड पर भी सैकड़ों गड्ढे बन गए हैं। इन्हें नए सिरे से बनाना तो दूर रोड की पैचिंग सालों से नहीं हुई है, जिसके चलते सड़कों का नतीजा यह है कि पिच वाली रोड भी मिट्टी की शक्ल ले चुकी है। अर्जुन गद्दा वाली सड़क ऐसी है जहां बारिश ही नहीं गर्मी और सर्दियों में भी पानी भरा रहता है। वहीं रेजिडेंट्स को प्योर वाटर सप्लाई करने के मकसद से यहां साल भर पहले बनाया गया वाटर टैंक से अभी तक पानी की सप्लाई नहीं हो सकी है। एक साल पहले टैंक बनने के बाद भी पाइप लाइन नहीं बिछाई गई है।

पार्षद और विधायक से समस्या क्या बताना? जब भी उनसे कोई अपनी समस्या कहो वो खुद अपनी समस्या बताने लगते हैं। मेरी इतनी उम्र हो गई लेकिन एक बार भी कोई नेता समस्या जानने के लिए नहीं आया। मैंने अपने घर के आसपास की रोड को लेकर कुछ समस्या बताई भी। मगर, कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद से मैं किसी नेता या पार्षद से कुछ कहना ही छोड़ दिया।

-धीरपाल, जोगीनवादा