- वेबसाइट पर जमे रहने वाली जनरेशन को जानने के लिए मां बन गई डिजिटल

- डिजिटल मदर्स का मानना है कि प्रेग्नेंसी, पैरेंटिंग, गाइडेंस और केयर के बारे में मिलते हैं टिप्स

BAREILLY:

'मेरी गलतियों को कुछ यूं माफ कर देती है, मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है' ऐसे ही हजारों शेरो-शायरी 'मां' की परिभाषा करती नजर आती हैं, लेकिन हर अल्फाज नाकाफी हो जाता है। क्योंकि लाड-प्यार, दुलार, खुशी और ऐसे ही न जाने कितने अहसासों को जाहिर करने के लिए केवल 'मां' शब्द ही काफी है। बदले जमाने में भी मां की अहमियत कम नहीं हुई। आज सिटी में मदर्स डे सेलीब्रेट किया जाएगा। इसी क्रम में आई नेक्स्ट ने बदलते जमाने के साथ डिजिटल होती मदर्स से बातचीत की।

तो पता चला कि वक्त के साथ मां भी आधुनिक हुई हैं। खासतौर पर इंटरनेट सर्फिंग को उन्होंने दोस्त बना लिया है, जो उन्हें बच्चों की परवरिश करने से लेकर दूसरी अन्य इंफॉर्मेशन से अपडेट रखता है। ख्क्वीं सदी की मां को आखिर डिजिटल मदर्स क्यों बनना पड़ा, क्या है इसकी वजहें। आइए हम आपको बताते हैं-

प्रेग्नेंसी में ऑनलाइन मिली हेल्प - श्वेता अरोरा

राजेंद्र नगर की रहने वाली श्वेता अरोरा फरवरी में 'मां' बनी। बेबी के लिए उन्होंने साल भर पहले प्लान किया था। तभी से वह बेबी से जुड़ी तमाम जानकारियां हासिल करने लगी थीं। प्रग्नेंसी में कैसे रहना, क्या करना है और क्या नहीं करना है। क्या खाना चाहिए, क्या केयर करनी पड़ती है, सीजर और नॉर्मल डिलिवरी में क्या फर्क है, कितनी सेफ है, और फिर बेबी होने के बाद उसकी हेल्थ टिप्स समेत किस मंथ में बेबी कितना ग्रोथ करता है, कब कंसंट्रेट करना सीखता है, कब बोलता है, कब चलता है, फीडिंग प्रॉसेज क्या होता है, डेवलपमेंट, वेदर चेंजेज में क्या करें व अन्य कई जानकारियां इकट्ठी करने लगीं। उन्होंने बताया कि प्रजेंट में सब कुछ ऑनलाइन है। ऐसे में सासू मां के नुस्खों समेत उन्हें और नेट से भी काफी हेल्प मिली, जिससे वह बेबी की बेहतर देखभाल कर सकीं। बेबी होने के बाद हेल्थ टिप्स, सोने जागने के तरीकों, उसके बिहैवियर चेंजेज समेत और भी कई अहम जानकारियों जुटा रही हैं। बस इंतजार था कि वह आए दिन गूगल सर्च इंजन पर क्वेश्चंस पुट करती थी। कई जवाब पहले से ही लिखे होते थे तो कई सवालों के जवाब उन्हें ऑनलाइन लोग सजेस्ट करते थे। इससे उन्हें काफी मदद मिली। उनके मुताबिक वेबसाइट्स के जरिए बेबी प्लान करते समय प्रीमाइंड सेटअप और खुद को प्रिपेयर करने में आसानी हुई।

पैरेंटिंग का बेहतर ऑप्शन

डिजिटिलाइजेशन है - रूपाली अग्रवाल

रामपुर गार्डन की रहने वाली रूपाली अग्रवाल का मानना है कि प्री-टीन बच्चों के बारे में जानना काफी मुश्किल होता है, क्योंकि बचपन में शरारतें, डिमांड, बड़े होते बच्चों को पेरेंट्स से काफी उम्मीदें होती हैं। जिसे कह पाने में वह असमर्थ होते हैं। ऐसे में कोई भी मां हो प्री-टीन बच्चों की परवरिश में अक्सर गलत साबित हो जाती हैं। लेकिन वेबसाइट के जरिए कई अहम प्रश्नों के जवाब मिल जाते हैं। इसके अलावा डिजिटलाइजेशन होने से बच्चों के होमवर्क, उनकी एक्टिविटी, उनके लिए एग्जाम टाइम में स्कोर बढ़ाने के तरीके को जानकर उनकी हेल्प भी की जा सकती है। इसके लिए उन्होंने पति गौरव से वेबसाइट सर्फिंग करना सीखा। ताकि बच्चों की पूरी मदद कर सकें। अच्छे स्कूल ढूंढना हो या उनके कॅरियर की गाइडेंस तय करना सभी कुछ एक क्लिक अवेलेबल है। इसके अलावा बच्चों के लिए ऑनलाइन शॉपिंग, कापी किताबों की परचेजिंग करना भी सीखना पड़ा। उनके मुताबिक ऑनलाइन शॉपिंग करने से कई फायदे हैं। सामान भी सस्ता मिलता है और वैराइटी भी मिलती है। देखा जाए तो सेविंग होती है।

मां को डिजिटल होना ही पड़ेगा - संगीता सरन

रामपुर गार्डन की रहने वाली हाउसवाइफ संगीता के दो टीन एजर्स बच्चे हैं, राघव और अपर्णा। उनके मुताबिक टीन एजर्स लाइफ बच्चों के फ्यूचर को तय करने में अहम रोल निभाती हैं। यह ऐसी उम्र होती है जहां परिवार से ज्यादा फ्रेंड्स बच्चों के लिए मायने रखते हैं। पेरेंट्स उनके कितने ही अच्छे दोस्त क्यों न बन जाएं, लेकिन कई बातें ऐसी होती हैं जो न वो बता पाते हैं और न पेरेंट्स ही जान पाते हैं। खासकर डिजिटल बिहेवियर को लेकर। उन्होंने बताया कि दोनों ही बच्चे पहले से ही वेबसाइट का यूज करते थे। सोशल मीडिया पर सभी एक्टिव भी हैं। ऐसे में सोशल साइट्स पर बच्चे क्या कर रहे हैं, इसका पता करना मुश्किल था। बस खुद को स्मार्ट बनाने का सिलसिला चल पड़ा। परिवार से दूर रहकर पढ़ाई करने वाले बच्चों की हरकत पर नजर रखना शुरू किया। सबसे पहले मेल के जरिए बातचीत होती थी। फिर फेसबुक पर अपडेट होना पड़ा। फेसबुक ज्वॉइन करते ही बेटे और बेटियों के फ्रेंड्स के बारे में जानकारी जुटाई। ताकि पता चल सके की फ्रेंड्स कैसे हैं। इसके अलावा जिस कॉलेज में पढ़ रहे हैं उसके बारे में पूरी जानकारी हासिल किया। इसके अलावा बच्चों के लिए अब वह प्रोजेक्ट्स के नोट्स, उनकी शॉपिंग के लिए लेटेस्ट फैशन कलेक्शन समेत भी सर्च करती हैं। अब व्हाट्सएप भी सीख लिया है। ताकि वह लास्ट सीन की वजह से जान सकें कि बच्चे कितने बजे सो रहे हैं। और घर के बाहर हैं तो कहां हैं इसका पता फेसबुक अपडेट से होकर कर रही हूं।

अपनों से मिलाने में मददगार है - कांता

उम्र का भ्भ्वां पड़ाव पर कर चुकीं जगदीश बिहार की रहने वाली कांता ने कभी सोचा नहीं था कि विज्ञान इतनी तरक्की कर लेगा कि रामायण के कृष्ण गीता उपदेश की तरह दूर बैठे धृतराष्ट्र को सुनाएगा और दिखाएगा भी। लेकिन आए दिन हो रहे विज्ञान के चमत्कारों ने ऐसा कर दिया। जब पहली बार उन्होंने अपने मायका के लोगों से स्काइप पर बात की। उन्होंने बताया कि बड़े बेटे ने उन्हें नेट सर्फिंग करना सिखाया। पहले तो उन्होंने सीखने से मना किया। लेकिन जरूरतों को देखते हुए उन्हें सीखना ही पड़ा, क्योंकि नेट न केवल अपनों को मिलाता है बल्कि अपनेपन की तरह आपके अकेलेपन को भी दूर करता है। उन्होंने बताया कि बहू के प्रेग्नेंसी के दौरान कई बार प्रॉब्लम्स होने पर नेट की हेल्प ली। इसके अलावा बेबी के बारे में कई सारी जानकारियां हासिल कीं और बहू को हेल्दी बनाने के टिप्स भी सीखे। इसके अलावा ढलती उम्र को कैद करने के तरीके भी सर्च कर अप्लाई किए। उन्होंने बताया कि फेसबुक पर वह पहले से ही थीं, और अब व्हाट्सएप भी सीख रही हैं, जिसके जरिए वह अपने मायके, बेटे और बहू से चैट करती हैं। उनके मुताबिक कई बार नेटवर्क डिस्टर्ब होने से दूर रहने वाले मेंबर्स से व्हाट्सएप पर बात करने के लिए बेहतर जरिया है। वहीं, वेबसाइट के जरिए वह अपनी उम्र में होने वाली प्रॉब्लम्स और उससे बचने के तरीकों को फिलहाल सर्च कर रही हैं।