एमसीआई ने मेडिकोज के रूरल एरिया में 2 साल की इंटर्नशिप पर फैसला टलने से राहत
फैसले का विरोध करने वाले मेडिकोज को एमसीआई के रूल के कई प्वाइंट्स पर थी आपत्ति
BAREILLY: देशभर में मेडिकल कॉउंसिल ऑफ इंडिया के खिलाफ एमबीबीएस स्टूडेंट्स की बढ़ती नाराजगी आखिरकार खत्म हो गई। एमबीबीएस के बाद रूरल एरिया में ख् साल की कंपलसरी इंटर्नशिप करने के एमसीआई के प्रपोजल का मेडिकोज ने जबरदस्त विरोध किया। जिसके बाद हेल्थ मिनिस्ट्री ने एमसीआई के इस फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है। हेल्थ मिनिस्टर ने एमसीआई को इस रूल को वापस लिए जाने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही यह भी क्लियर किया कि ख्0क्ब्-क्भ् के पीजी एंट्रेंस में लागू नहीं होगा। मेडिकोज ने इस रूल के लागू होने पर होने वाले नुकसान के बारे में बेबाक राय रखी। हालांकि रूरल एरिया में बेहतर मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने की कोशिशों को यह मेडिकोज सही ठहराते हैं। लेकिन ऐसे रूल्स में वह कुछ सुधार किए जाने की मांग कर रहे हैं। जिससे गांव-कस्बों में वह बिना अपना करियर दांव पर लगाए जरूरतमंदों को सेवाएं दे सकें।
तो पीजी तक लगते क्ख्-क्भ् साल
एमसीआई के इस फैसले का सबसे बड़ा असर मेडिकोज की पीजी डिग्री पर पड़ रहा था। एक औसत एमबीबीएस स्टूडेंट को डिग्री पाने में म्-7 साल तक लग जाते हैं। हालांकि, एमबीबीएस का कोर्स साढ़े पांच साल की होता है। जिसमें एकेडमिक पढ़ाई के साढ़े चार साल और क् साल मेडिकल कॉलेज में इंटर्नशिप का शामिल हैं। लेकिन एक्सीलेंट्स स्टूडेंट्स को छोड़ ज्यादातर को इसे कवर करने में एक से डेढ़ साल ज्यादा लग जाता है। इसके बाद ख् साल रूरल इंटर्नशिप और पीजी के एंट्रेंस की तैयारी में लगने वाला क्-ख् साल का समय अलग से। जिसके बाद फ् साल की पीजी की पढ़ाई। जबकि इंजीनियर, एडवोकेट और एमबीए करने में मैक्सिमम पांच साल लगते हैं। ऐसे में एक कंप्लीट डॉक्टर बनने में लगने वाला क्ख्-क्भ् साल का समय मेडिकोज को बुरी तरह अखर रहा था।
घट जाता सफेद कोट का क्रेज
एमसीआई के इस रूल में रूरल पब्लिक की बेहतरी और उन्हें प्रॉपर मेडिकल फेसिलिटीज मिलने की नेक नीयत तो थी। लेकिन इंटनर्स के लिए बुनियादी सुविधाएं और वर्किंग एनवॉयरमेंट मुहैया कराने के इंतजामात नदारद थे। मेडिकोज ने बताया कि पीजी के लिए वैसे ही सीट की मारामारी है। देश भर में बमुश्किल क्क् हजार पीजी सीट्स हैं। जिनके लिए हर साल ब्-भ् लाख स्टूडेंट्स अप्लाई करते हैं। पहले से ही मेडिकल के लिए वैसे ही स्टूडेंट्स का रुझान कम हो रहा है। ख्00ब् में जहां ब् लाख से ज्यादा लोगों ने पीएमटी के लिए एग्जाम दिया था, वहीं ख्0क्ब् में यह आंकड़ा गिरकर करीब डेढ़ लाख रह गया। ऐसे में एमसीआई के इस रूल को लागू करने से पेशे में आने का क्रेज तेजी से कम हो जाता।
एक्सपर्ट्स-इंटर्स का हो कॉम्बो
एमबीबीएस स्टूडेंट्स को ही रूरल एरिया में भेजे जाने पर मेडिकोज ने एमसीआई के फैसले पर ही सवाल दागे थे। मेडिकोज का सवाल रहा कि सिर्फ यंग एमबीबीएस ही क्यों रूरल एरिया में अपनी सर्विस दे। उन्होंने रिटायर्ड व सीनियर डॉक्टर्स को भी इस मुहिम में अपने साथ जोड़ने की वकालत की। यंग मेडिकोज का कहना है कि सिर्फ इंटर्न के जाने से वह रूरल एरिया में सिर्फ एक हेल्पर बन कर रह जाएगा। वहां बेहतर काम करने के लिए सीनियर्स के सुपरविजन की बेहद जरूरत है। एक्सपर्ट्स के साथ काम करने से यंग इंटर्स को भी काफी कुछ सीखने को मिलेगा। साथ ही काम करने का बेहतर माहौल बनेगा।
अगर रूरल एरिया में दो साल तक लगातार इंटर्नशिप करनी पड़े तो पीजी में एट्रेंस की तैयारी अफेक्टेड रहेगी। देश भर में पीजी की सीट्स वैसे ही बेहद कम हैं। इस रूल के लागू होने पर कई स्टूडेंट्स इस फील्ड में करियर बनाने की चाह छोड़ देते।
- नदीम अकबर, मेडिकल स्टूडेंट
हम दो साल नहीं बल्कि ढाई साल तक रूरल एरिया में काम करने को तैयार हैं। लेकिन इसे हफ्ते और महीने के टाइम पीरियड में बांट दिया जाए। साथ ही इंटर्न के साथ एक्सपर्ट्स व सीनियर डॉक्टर्स की भी साथ में पोस्टिंग की जाए। जिससे इंटर्न को प्रॉपर गाइडेंस मिले।
- रिषभ दीक्षित, मेडिकल स्टूडेंट
पीएचसी में भेजे जाने का समय कम रखा जाए। साथ में एक्सपर्ट का भी साथ मिलें। रूरल में वर्किंग एनवॉयरमेंट बनाया जाए जिससे यंग डॉक्टर्स वहां काम करने में अपना क्00 परसेंट दें। साथ ही डॉक्टर्स को पेशेंट्स के इलाज व जांच की सभी सुविधाएं दी जाएं।
- अंकित खुराना, मेडिकल स्टूडेंट
एमसीआई के इस रूल से एमबीबीएस और पीजी करने में स्टूडेंट को कम से कम क्ख्-क्ब् साल लग जाते। ऐसा होने पर फ्यूचर में कोई भी इस फील्ड को बतौर करियर क्यों चुनता। यह एक टफ टास्क है। इससे मेडिकल एजुकेशन की क्वालिटी भी कम हो जाएगी।
- रोहन महाजन, मेडिकल स्टूडेंट
एमसीआई के इस रूल से बिल्कुल भी सहमत नहीं थे। एक एमबीबीएस को बहुत अच्छी तरह से ट्रीटमेंट करना नहीं आता। उसके लिए पीजी होना जरूरी है। ऐसे में ख् साल एक नॉन एक्सीपिरयंस इंटर्न को गांवों में भेजना बहुत फायदेमेंद नहीं होता।
- स्नेहा सिंह, मेडिकल स्टूडेंट
गांवों में मेडिकल फेसिलिटीज बढ़ाने के लिए डॉक्टर्स की सेलरी व सुविधाएं बढ़ानी चाहिए। इंटर्न के साथ किसी सीनियर डॉक्टर का होना भी जरूरी है। साथ ही इन पीएचसी का रेगुलर चेक किया जाना भी जरूरी है। जिससे पता चल सके कि गांवों में काम हो रहा है।
- अपूर्वा सिंह , मेडिकल स्टूडेंट
कई जगह पीएचसी में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर सिर्फ बिल्डिंग खड़ी है। स्टाफ की बेहद कमी है। इसे पूरा किए जाने की जरूरत है। बिना स्टाफ के इंटर्न डॉक्टर कुछ नहीं कर पाएगा। इंटर्न को एक सीनियर डॉक्टर की प्रॉपर गाइडेंस की भी जरूरत पड़ेगी।
- निष्ठा खुराना, मेडिकल स्टूडेंट
एमसीआई के इस रूल से पीएचसी में सिर्फ डॉक्टर की कमी पूरी हो पाती। जबकि ओटी में इक्विपमेंट्स नहीं हैं। इसे रूल के लागू होने से डॉक्टर पर प्रेशर ज्यादा होता। साथ ही कंफ्यूजन की भी सिचुएशन होती। गरीब स्टूडेंट्स को इतना लंबा स्ट्रगल करने में बेहद मुश्किल होती।
- प्रज्ञा राय, मेडिकल स्टूडेंट
एमसीआई के इस रूल का सबसे ज्यादा विरोध प्राइवेट मेडिकल इंस्टीट्यूट्स के स्टूडेंट ने ही किया। इस नियम के पीछे सरकार की मंशा गांवों में बेहतर मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने की थी। इस रूल में गांवों में बिना ख् साल का इंटर्न किए पीजी में एडमिशन की शर्त को सुधारे जाने की जरूरत थी।
- डॉ। विजय यादव, सीएमओ
गवर्नमेंट की यह स्कीम दरअसल काफी प्रीमेच्योर थी। इसे सही से बनाने में ध्यान नहीं दिया गया। ऐसे में सरकार ने जिस तरह की कंडीशन लगाई उसका स्टूडेंट्स ने विरोध किया। यह रूल प्रैक्टिकली पूरी तरह नामुमकिन था। बिना इंटर्न पीजी में एडमिशन पर रोक सही नही था।
- डॉ। केशव अग्रवाल, मेंबर, एमसीआई