-श्रेष्ठ वर प्राप्ति एवं विवाह बाधा निवारण के लिए श्रावण मास में करें मंगलागौरी व्रत एवं पूजन
-मंगलागौरी व्रत 27 जुलाई, 3 अगस्त, 10 व 17 अगस्त को होगा
बरेली: अविवाहित कन्याओं के मंगल दोष शांति के लिए मंगला गौरी व्रत 27 जुलाई को होगा। इसके बाद 3 अगस्त 10 व 17 अगस्त को होगा। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं। राजीव शर्मा का कहना है कि श्रेष्ठ वर प्राप्ति एवं विवाह बाधा निवारण के लिए श्रावण मास में मंगला गौरी व्रत एवं पूजन करने से लाभ मिलता है। अर्थात जिन अविवाहित कन्याओं के विवाह में बिलंब हो रहा हो उनको व्रत करने से लाभ मिलता है। ऐसा शास्त्रों में भी वर्णित है।
सावन के मंगलवार को होता है व्रत
मंगलागौरी का व्रत और पूजन सावन में आने वाले सभी मंगलवारों को किया जाता है। इस दिन विशेष तौर पर गौरी जी की पूजा की जाती है। चूंकि यह व्रत मंगलवार को किया जाता है, इसलिए इसे 'मंगलागौरी' व्रत कहा जाता है। भगवान शिव के व्रत मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा किये जाते हैं, परन्तु स्त्रियां इसके स्थान पर पूरे श्रावण मास या प्रत्येक मंगलवार को पार्वती जी के व्रत रखती हैं। यह व्रत विशेष तौर पर स्त्रियों के लिए ही है।
पूजन व्रत विधान
इस दिन पूजा करने से पहले स्नानादि करके एक पट्टे या चौकी पर एक सफेद और एक लाल कपड़ा बिछायें। सफेद कपड़े पर नवग्रहों के नाम की चावल की नौ ढेरियां तथा लाल कपड़े पर षोडश मातृका की गेहूं की सोलह ढेरियां बनाएं। उसी पट्टे अथवा चौकी पर एक तरफ चावल व फूल रखकर गणेशजी की स्थापना करें। चौकी के एक कोने पर गेहूं की एक छोटी सी ढेरी रखकर उस पर जल से भरा कलश रखें। कलश में आम की एक पतली शाखा लाकर डालें फिर आटे का एक चौमुखा दीपक और सोलह धूपबत्ती जलायें। फिर पूजा का संकल्प लें। सबसे पहले गणेशजी की पूजा करें। उन पर पंचामृत, जनेऊ, चंदन, रोली, सिंदूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, फूल, विल्बपत्र, इलायची, फल, मेवा, दक्षिणा और प्रसाद चढ़ाकर उनकी आरती उतारें फिर कलश की पूजा करें। इसके पश्चात एक मिट्टी के सकोरे में आटा रखकर उस पर सुपारी रखें और दक्षिणा को आटे में दबा दें। फिर विल्बपत्र चढ़ायें।
नव ग्रहों की करें पूजा
गणेशजी की पूजा के उपरांत नवग्रहों की पूजा करें। इसके बाद षोडश मातृका की बनी हुई सोलह गेहूं की ढेरियों की पूजा करें। इन पर रोली एवं जनेऊ न चढ़ायें। हल्दी, मेहंदी और सिंदूर चढ़ाएं।
अब मंगलागौरी का करें पूजन
मंगला गौरी के पूजन के लिए एक थाली में चकला रखकर उस पर मंगला गौरी की मिट्टी की प्रतिमा बनाएं या मिट्टी की पांच डलियां रखकर उन्हें मंगला गौरी मान लें। पहले मंगलागौरी को पंचामृत स्नान करायें, स्नान के बाद वस्त्र धारण करवाएं, फिर नथ पहनाकर रोली, चंदन, हल्दी, सिंदूर, मेहंदी, काजल लगाकर श्रृंगार करें। इसके बाद 16 प्रकार के फूल, 16 माला, 16 तरह के पत्ते, 16 आटे के लड्डू, 16 फल, 5 तरह की मेवा, 16 बार, 16 बार सात तरह का अनाज, 16 जीरा, 16 धनियां, 16 पान, 16 सुपारी, 16 लौंग, 16 इलायची, एक सुहाग की डिब्बी में रोली, मेहंदी, काजल, सिंदूर, तेल, कंघा, शीशा, 16 चूड़ी, एक रुपया और वेदी दो उन पर दक्षिणा सहित चढ़ाकर मंगलागौरी की कथा सुने। एक चौमुखा दीपक बनाकर उसमें 16 तार की चार बत्ती बनायें और कपूर से आरती उतारकर परिक्रमा करें। इसके बाद भोजन में बिना नमक के एक ही अनाज की रोटी खाएं। दूसरे दिन मंगलागौरी को समीप के कुएं, तालाब अथवा नदी में विसíजत कर भोजन करें।