* आपका फैमिली बैकग्राउंड एक्टिंग का नहीं है, फिर एक्टिंग की शुरुआत कैसे हुई?

मैं एक मिडिल क्लास मराठी फैमिली से हूं। दरअसल मेरी थिएटर में कोई दिलचस्पी ही नहीं थी मगर एक्टिंग का शौक जरूर था। मुझे नहीं पता कि शौक-शौक में कब मैं एक्टर बन गया। एक्टिंग की ही वजह से थिएटर से इतना लगाव हो गया कि अब इसके बिना लाइफ इमेजिन भी नहीं कर सकता।

'मैं सबसे पहले एक विचारक हूं'

* बरेली में ये आपका पांचवां ड्रामा है, पहले से क्या बदलाव महसूस करते हैं?

बदलाव की चादर तो ऑडियंस ने ओढ़ी है। कला के कद्रदान भी बढ़े हैं। बरेली में हर बार रंगमंच का तजुर्बा कुछ खास और अलग ही होता है।

* ब्लैक बॉक्स में परफॉर्मेंस के मायने क्या हैं?

ब्लैक बॉक्स में थिएटर अल्टीमेट एक्सपीरिएंस है। ब्लैक बॉक्स में एक्चुअली आर्टिस्ट की परफॉर्मेंस को थ्रो ज्यादा मिलता है। दर्शक कलाकार के अभिनय पर सेंट्रलाइज्ड रहते हैं। साथ ही कलाकार के भाव ज्यादा स्पष्ट होते हैं। मुझे ऐसे प्लेटफॉर्म पर अभिनय करना बहुत अच्छा लगता है।

* फिल्म और थिएटर के दर्शक में क्या फर्क महसूस करते हैं?

फिल्म के दर्शकों को ग्लैमर चाहिए, जो उन्हें फिल्मों में मिलता है। थिएटर में ऐसा नहीं होता है। थिएटर के दर्शक को नाटक के साथ चलने के लिए विशेष प्रयास करने होते हैं। एक बात और इंपॉर्टेंट है कि थिएटर के दर्शक की नजर में सम्मान होता है। सच कहूं तो थिएटर का हर दर्शक मुझसे कुछ लेकर जाता है।

* अपने थिएटर ग्रुप 'अंश' के बारे में क्या कहना चाहेंगे.

 मेरा थिएटर ग्रुप 'अंश' दरअसल मेरा एक अंश है। 'अंश' ने अब तक 40 ड्रामा प्रजेंट किए हैं। हम बाहर के ड्रामा पर परफॉर्म नहीं करते हैं। अब तक सिर्फ एक नाटक रवींद्रनाथ टैगोर का लिया है।

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* फिल्म और थिएटर की एक्टिंग में क्या फर्क है?

फिल्मों में कट-कट से मैं बौखला जाता हूं। थिएटर की बात करूं तो एक्टिंग में खो जाता हूं। हां, इतना जरूर है कि फिल्म में किए गए अभिनय को आप 10 साल के बाद भी उठाकर देख सकते हैं जबकि थिएटर के लिए कलाकार को दोबारा उन पलों को जीवंत करना होता है।

* पृथ्वी थिएटर से आपका संबंध बहुत पुराना है कुछ इस बारे में बताएं।

1990 में मैं नाटक 'माहिम की खादी' कर रहा था, तब संजना कपूर ने मुझे देखा और पृथ्वी थिएटर के लिए बुलाया। जब मैं पहली बार पृथ्वी थिएटर पहुंचा, तो जाना कि थिएटर क्या होता है। मराठी मेरी फेवरेट थी, मगर पृथ्वी में दाखिल होने के बाद हिंदी में सर्वाधिक ड्रामा किया। अनुराग बासू और केके मेनन के साथ वहीं एक्टिंग की।

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* इस साल क्या आपकी कोई फिल्म आ रही है?

हम एक नई फिल्म पर काम कर रहे हैं। फिल्म का नाम है 'सोना स्पा'। ये फिल्म 22 मार्च को रिलीज होगी। इस फिल्म में रंगमंच के चेहरे नजर आएंगे। फिल्म में नसिरुद्दीन शाह की अहम भूमिका है। रंगमंच से ही श्रुति व्यास और आहना कुमरा को बतौर हिरोइन लिया है।

* फिल्मों में क्या फीमेल कैरेक्टर सिर्फ शो पीस बनकर रह गई हैं?

अब स्त्री प्रधान फिल्म का निर्माण नहीं होता है। दरअसल अगर बनाई भी जाए तो अच्छे बिजनेस की गारंटी नहीं। ये सिनेमा आज भी पुरुष प्रधान है।  

* 'कयामत से कयामत तक' से आज तक के लंबे करियर के दौरान सिनेमा जगत में कितना बदलाव महसूस करते हैं?

अब फिल्मों का स्टाइल हैवी हो चुका है। रोमांटिक हीरो, एंग्री यंग मैन से अब शो मैन बन चुका है। बॉलीवुड पहले अपनी फिल्में बनाता था, फिर हॉलीवुड और अब साउथ इंडियन सिनेमा से इंसपायर्ड फिल्मों की बहार आ गई है। मल्टीप्लेक्स ने तो पूरा स्वरूप ही बदल दिया। पहले सिल्वर जुबली के कुछ मायने थे, अब तो 3 दिन में खेल क्लीयर हो जाता है। फिल्म पहले शो बिजनेस होती थीं, मगर अब कॉरपोरेट बिजनेस बन चुकी हैं।

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* लेखक, निर्देशक और एक्टर, कहां खुद को सौ फीसदी महसूस करते हैं?

बतौर लेखक चिंतन मनन मुझे अच्छा लगता है। मजबूत विचार होंगे तभी मैं एक कलाकार के तौर पर दर्शकों तक पहुंच बनाने में सफल हो पाऊंगा। इसके बाद मैं खुद को निर्देशक मानता हूं।

Report by: Abhishek Mishra

Pics: Hardeep Singh Tony