-आई नेक्स्ट के पल्मोनरी टेस्ट कैंप में लोगों के कमजोर हो रहे लंग्स का खुलासा-

-9 फीसदी के लंग्स मिले कमजोर, 46 फीसदी के औसत और 45 फीसदी दुरुस्त

-20 से 35 साल के युवा भी टेस्ट में बेदम साबित, स्मोकिंग ने कमजोर किए लंग्स

BAREILLY: बरेली भले ही मेडिकल हब का दर्जा पाया शहर हो, लेकिन यहां सेहत को लेकर लोगों में जागरुकता का ग्राफ अब भी निचले पायदान पर ही है। जिंदा रहने के लिए अगर हर पल सांस लेना जरूरी है, तो लंबी उम्र तक सांस लेने के लिए लंग्स या फेफड़ों का पूरी तरह दुरुस्त होना भी उतना ही जरूरी है। बरेली में लोगों के लंग्स फिटनेस के मामले में खतरे के निशान को छूने लगे हैं। फ्क् मई को व‌र्ल्ड टोबैको डे के मौके पर आई नेक्स्ट ने सरन हॉस्पिटल एंड इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंसेज के सहयोग से शहर की पांच लोकेशन पर पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट कैंप लगवाए। जिसमें शामिल हुए लोगों में से आधे के भी लंग्स गुड कंडीशन में नहीं मिले।

9 फीसदी के लंग्स बेदम

आई नेक्स्ट की ओर से फ्0 व फ्क् मई को लगवाए गए पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट कैंप में कुल फ्क्ब् लोगों ने अपने लंग्स की जांच कराई। इनमें हर एजग्रुप के लोग शामिल हुए। लंग्स की जांच रिपोर्ट को तीन कटेगरी में बांटा गया। गुड, एवरेज और बैंड परफॉर्मेस। जांच में 9 फीसदी यानि ख्म् लोगों के लंग्स परफॉर्मेस में कमजोर व खराब पाए गए। वहीं क्ब्म् लोगों के फेफड़े औसत परफॉर्मेस के निकले। जबकि सेहतमंद लंग्स के मामलों में आधे भी पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट में पास न हो सके। ब्भ् फीसदी के हिसाब से सिर्फ क्ब्ख् लोगों के लंग्स ही परफॉर्मेस में गुड साबित हुए।

फूंक में बेदम दिखे युवा

पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट कैंप में कमजोर लंग्स वाले केसेज में युवाओं की संख्या ज्यादा रही। मशीन में फूंक कर फेफड़ों की मजबूती आंकने के इस टेस्ट में ख्0 साल से फ्फ् साल की उम्र के युवाओं का दम भी निकल गया। इतनी कम उम्र में ही युवाओं के हांफने पर एक्सपर्ट ने चिंता जताई है। स्मोकिंग की लत युवाओं के कमजोर हो चुके फेफड़ों की बड़ी वजह है। कम उम्र में ही सिगरेट के कश लेकर धुएं के छल्ले उड़ाने का शौक युवाओं में न सिर्फ लंग्स कैंसर बल्कि अस्थमा व सांस की बीमारियों के खतरे को भी बढ़ा रहा है।

नहीं चेते तो जिंदगी होगी मुश्किल

फिजिशियन व कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ। सुदीप सरन के मुताबिक अगर इस जांच रिपोर्ट को सीरियसली नहीं लिया गया, तो अगले ख्-फ् साल में कमजोर लंग्स वाले केसेज का आंकड़ा क्भ् से क्8 फीसदी तक बढ़ सकता है। वहीं ख्0 से फ्भ् की यंग एजग्रुप में भी कमजोर लंग्स की शिकायत ने इस तस्वीर को और खतरनाक बनाया है। अमूमन भ्भ् साल की उम्र के बाद इंसान के फेफड़ों की क्षमता में धीरे धीरे कमी आने लगती है। ऐसे में ख्0 से ख्भ् की उम्र से ही स्मोकिंग करने वाले युवाओं के लंग्स ब्0 की उम्र तक आते आते पूरी तरह बेदम हो जाएंगे। स्मोकिंग के चलते फेफड़े अपने समय से पहले ही बूढ़े और कमजोर हो जाएंगे।

एवरेज लंग्स भी खतरे की निशानी

चेकअप में शामिल लोगों में ब्म् फीसदी के लंग्स परफॉर्मेस में एवरेज रहे। हांलाकि यह खतरनाक स्टेज नहीं है, लेकिन पूरी तरह सेफ भी नहीं है। स्मोकिंग करने वाले जिन लोगों के लंग्स जांच में एवरेज परफॉर्म करते दिखे। उन्हें आने वाले कुछ साल में लंग्स खराब या कमजोर होने का पूरा खतरा है। एक्सपर्ट ने बताया कि अगर ऐसे लोग तुरंत स्मोकिंग छोड़ दें तो उनके फेफड़ों की बैड परफॉर्मेस स्टेज करीब 70 साल की उम्र तक आएगी। लेकिन ऐसा न करने पर स्मोकिंग की लत बरकरार रखी तो अगले क्0 साल तक ली जाने वाली सिगरेट की कश उनके फेफड़ों की फ्0 साल की सेहतमंद उम्र को कम कर देगी। यानि ब्0 की उम्र तक ही उनके लंग्स की हालत 70 साल के इंसान जैसे कमजोर और बेदम हालत वाली होगी।

महिलाओं का लंग्स भी हो रहा कमजोर

टेस्ट के दौरान महिलाओं का चेकअप भी किया गया। जिसमें उनके लंग्स की हालत भी चिंताजनक मिली है। जिसमें करीब ख्0 प्रतिशत महिलाओं के लंग्स कमजोर मिले हैं। डॉक्टरों ने बताया कि आमतौर पर महिलाएं स्मोकिंग नहीं करती है, लेकिन वह पैसिव स्मोकिंग की शिकार होती है। लंग्स कमजोर होने का यह भी एक बड़ा कारण है।

बाक्स----

एक नजर में---

9 फीसदी के लंग्स- बैड

ख्म् फीसदी के लंग्स- एवरेज

ब्भ् फीसदी के लंग्स- बैड

-जांच में लंग्स को गुड, एवरेज व बैड कैटैगरी में रखा गया था।

बाक्स---

इन पांच प्वाइंट पर हुआ पल्मोनरी चेकअप कैंप

-सरन हॉस्पिटल

-महालक्ष्मी टॉवर

-गांधी पार्क

-बटलर प्लाजा

-विशाल मेगा मार्ट

स्मोकिंग के खतरों की आशंका

- फेफड़ों की वर्किंग कपेसिटी यानी क्षमता तेजी से कम होती है ।

- क्0 साल की स्मोकिंग फेफड़ों को बीमार कर उनकी उम्र ख्भ् साल तक कम करती है।

- क्0 से ख्0 साल तक लगातार स्मोकिंग की लत औसत उम्र को क्0 साल तक घटा देगी।

- स्मोकिंग की लत से लंग्स कैंसर की आशंका 90 फीसदी तक बढ़ जाती है।

- जिन लोगों को लंग्स कैंसर है, उनमें से 90 फीसदी स्मोकिंग करने वाले हैं।

स्मोकिंग से होने वाली बीमारियां

- लंग्स कैंसर का खतरा सबसे ज्यादा।

- क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस

- एम्फिसीमा

- सीओपीडी या क्रॉनिक ऑब्सट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजीज

- अस्थमा के अटैक

- टीबी

ऐसे नुकसान करती है स्मोकिंग

स्मोकिंग के दौरान इनहेल किया जाने वाला धुआं फेफड़ों की नाजुक झिल्लियों को बुरी तरह झुलसा देता है। वहीं स्मोकिंग के समय अंदर लिए जाने वाले धुएं में खतरनाक कार्बन पार्टिकल होते हैं। जो फेफड़े की नलियों में जमा हो जाते हैं। यह फेफड़ों को उसी तरह काला व जहरीला कर देते हैं। जैसे चिमनियों से निकलने वाला धुआं चिमनी को काला कर देता है। वहीं बीड़ी, सिगरेट और हुक्का से स्मोकिंग करने के मामले में बीड़ी की लत वाले शौकीन सबसे ज्यादा खतरे में है। वजह सिगरेट की तरह बीड़ी में फिल्टर नहीं होता। वहीं बीड़ी का पत्ता हार्ड होने से इसमें कश अधिक ताकत लगाकर लिया जाता है। जिससे खतरनाक धुआं फेफड़ों के अंदर तक पहुंचकर नुकसान पहुंचाता है।

जानलेवा बीमारियों की जड़ निकोटीन

सिगरेट व खैनी में निकोटीन होती है। जो पूरे शरीर में बुरा असर डालती है।

निकोटीन से होने बीमारियां हैं -

- ब्लड प्रेशर का बढ़ना

- कोलेस्ट्रोल का बढ़ना

- हार्ट अटैक

- ब्रेन हैमरेज

- आंत में अल्सर

- अपच और एसिडिटी

- पेट में दर्द व लूज मोशन

न्यूरो सिस्टम पर असर

- सिर दर्द

- चिड़चिड़ाहट

- मूड में तेजी से बदलाव

- डिप्रेशन

- बेचैनी

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यूं एडिक्ट करती है निकोटीन

स्मोकिंग या खैनी-तंबाकू के जरिए निकोटीन शरीर में खून में मिल जाती है। यहां से ब्रेन में पहुंचकर निकोटीन डोपामीन नाम के हॉर्मोन का रिसाव ज्यादा बढ़ाने की वजह बनती है। डोपामीन एक तरह का रिलैक्सिंग व एक्साइटिंग हॉर्मोन है। जो सुख का अहसास कराता है और स्ट्रेस कम कर देता है। जितनी ज्यादा निकोटीन उतना ही ज्यादा डोपामीन का लेवल बढ़ता जाता है। इससे स्मोकिंग करने वाले को बार बार स्ट्रेस दूर करने व सुख का अहसास पाने को बार बार स्मोक करने या तंबाकू-खैनी खाने की तलब लगती है।