भीख अब मजबूरी नहीं प्रोफेशन

अल्लाह के नाम पर दे दो बाबा अंधे को सहारा दे दो बाबा भगवान तुम्हारा भला करेंगे बाबा भिखारियों के ये डायलॉग अब पुराने हो चुके हैं। अब इन डायलॉग पर न तो कोई ध्यान देता है और न ये डायलॉग अपीलिंग होते हैं। ये वैसे डायलॉग थे जो मजबूरी में बोले जाते थे। अब मजबूरी प्रोफेशन बन चुकी है। आज आई नेक्स्ट बरेली में तेजी से मजबूत हो रहे और सौ प्रतिशत बेनिफिशियल प्रोफेशन का खुलासा करने जा रहा है। ऑपरेशन कटोरा में आप जान सकेंगे कि कैसे भीख एक ऐसा प्रोफेशन बन चुका है, जिसके लिए बकायदा ट्रेनिंग दी जाती है। नए-नए डायलॉग और श्लोक जेनरेट किए जाते हैं। फेशियल एक्सप्रेशंस और मजबूर दिखने की प्रैक्टिस करवाई जाती है। रुपए पैसे का हिसाब रखा जाता है। यहां तक की फील्ड में मॉनिटरिंग के लिए इंप्लॉई तक नियुक्त किए जाते हैं।

भीख का मायाजाल

बरेली में भीख के मायाजाल को समझने के लिए आई नेक्स्ट टीम ने तीन दिन तक सड़कों, गलियों और स्लम एरियाज की खाक छानी। कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। इन्हें प्वाइंट वाइज इस तरह समझा जा सकता है-

संख्या सात हजार तक

पूरे शहर में भिखारियों की संख्या करीब सात हजार है। इनमें से अधिकांश दूसरे शहरों से आकर यहां बस गए हैं। रेलवे स्टेशन के बाहरी इलाके, भोजीपुरा, डेलापीर, पीलीभीत बाइपास सहित शहर में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां इन्होंने अपना स्थाई और अस्थाई आशियाना बना रखा है। भिखारियों की संख्या का कोई ऑथेंटिक डाटा न तो प्रशासन के पास और न समाज कल्याण विभाग के पास है, हालांकि प्रशासनिक अधिकारी इतना जरूर मानते हैं कि लगातार इनकी संख्या बढ़ती जा रही है।

आमदनी ही आमदनी

शहर के इन भिखारियों की आमदनी का हिसाब-किताब किया गया तो वार्षिक आंकड़ा करोड़ों में आया। हंड्रेड परसेंट प्रॉफिटेबल प्रोफेशन के कारण यह अब ऑर्गनाइज्ड प्रोफेशन बन चुका है। शहर के 20 प्रतिशत भिखारी ही ऐसे हैं जो मजबूरी में भीख मांगते हैं, जबकि 80 प्रतिशत भिखारी एज ए प्रोफेशन इस धंधे में जुटे हैं। प्रतिदिन इनकी औसत आमदनी 200 रुपए है। इनमें से 120 रुपए हर हाल में अपने आकाओं को देनी पड़ती है। आकाओं तक यह रकम कहीं प्रतिदिन के हिसाब से पहुंचती है तो कहीं वीकली।

सभी उम्र के भिखारी

भिखारियों के मायाजाल में सभी उम्र के लोग शामिल हैं। नवजात बच्चों से लेकर 80 साल के भिखारी आपको बरेली में मिल जाएंगे। सामान्यत: तीन से पांच साल की उम्र के बच्चों को रेलवे स्टेशन पर लगाया जाता है। बड़ी उम्र के बच्चों को शहर के बाजारों और पॉश कॉलोनी में लगाया जाता है। नवजात बच्चों के साथ उनकी मां को भीख के इमोशनल अत्याचार में लगाया जाता है। वैसे बुजुर्ग जो कुछ काम नहीं कर सकते और हाथ पैर से लाचार हैं उन्हें धार्मिक स्थलों के बाहर बैठाया जाता है। धार्मिक स्थलों के बाहर बकायदा जगह बेची जाती है। इसकी तय शुदा रकम भी संगठित माफियाओं तक पहुंचती है।

सात जोन हैं बरेली के

बरेली में भिखारियों का मायाजाल सात जोन में बंटा है।

-पहला जोन बरेली के तीनों रेलवे स्टेशन हैं।

-दूसरा जोन यहां के मंदिर और दरगाह हैं।

-तीसरा जोन शहर के पॉश इलाके हैं।

-चौथा जोन पुराने शहर का बाजार है।

-पांचवा जोन शहर का बाहरी इलाका है।

-छठे और सातवें जोन में शामिल हैं शहर के एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस और कॉलेज।