बरेली (ब्यूरो)। सर मेरा पत्नी से तलाक का केस चल रहा है। उन्होंने डिग्री कब ली थी और उनकी कितनी सैलरी है, सर मेरा दोस्त कब से बैकपेपर दे रहा है। इस तरह बेफिजूल और बेसिरपैर के सवाल आरटीआई के तहत पूछे जा रहे हैं। जिस राइट टू इंफॉर्मेशन कानून से लोगों को सरकारी सिस्टम से कोई भी जानकारी हासिल करने का अधिकार मिला है, उसका अब बेजा इस्तेमाल भी खूब हो रहा है। तमाम विभागों में इन दिनों बेफिजूल के सवाल वाले एप्लीकेशंस की भरमार है। इससे विभागों के लिए इन सवालों का जवाब देना मूश्किल हो रहा है और एप्लीकेशंस की पेंडेंसी लगातार बढ़ रही है। यही पेंडेंसी विभाग के सूचना अधिकारियों से लेकर विभागाध्यक्ष तक के लिए गले की फांस बन रहा है।

कैसे-कैसे आते हैं सवाल
एमजेपीआरयू के लॉ डिपार्टमेंट के हेड और डीन डॉ। अमित सिंह से विश्वविद्यालय से मांगी गई कुछ ऐसे ही सूचनाओं का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आरटीआई जैसी जरूरी कानून को कई लोगों ने मजाक बना दिया है। लोग इसे अपने-अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। आमतौर पर डाली गई आरटीआई तो निराधार होती हैं। लोग किसी को परेशान करने की नियति से भी आरटीआई का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं। इस कानून के तहत मांगी जाने वाली परसेंट सूचनाएं तो निराधार होती हैं। लोग आरटीआई का इस्तेमाल व्यक्तिगत फायदे के लिए भी कर रहे हैं।

आरयू से मांगी गई सूचनाओं का हाल
1: कितने सालों से विश्वविद्यालय में प्रवेश प्रक्रिया चल रही है।
2: विश्वविद्यालय की कितनी इनकम है कितना प्रॉफिट हो रहा है।
3: एक स्टूडेंट ने पूछा कि हमें कौन सी डिग्री करनी चाहिए, जिसकी मदद से हमें जल्द नौकरी मिल जाए।
4: आप कितने समय से यहां काम कर रहे हैैं।

आरटीआई पर भी रिसर्च
रिसर्चर डॉ। अदित्य चतुर्वेदी ने बताया कि उन्होंने आरटीआई को जब रिसर्च के तौर पर ऑप्ट किया तो उन्हें कई ऐसे पहलू मिले, जिसकी वजह से यह लोगों के लिए एक इंपोर्टेंट टॉपिक बन गया है। मेरे रिसर्च का सब्जेक्ट राइट टू इनफॉर्मेशन एंड गुड गवर्नेंस एन एनालिटिकल स्टडी इन इंडियन प्रेसपेक्टिव है। इस रिसर्च में उन्होंने कई जरूरी प्वाइंट्स पर काम किया। इसके अलावा कई सुझाव भी दिए, जो कि फ्यूचर के लिए बहुत जरूरी हैं।


जरूरी आरटीआई दरकिनार
आरटीआई सरकारी विभागों से जानकारी हासिल करने के लिए है। इसके मिसयूज से विभागों के पास गैर जरूरी सवालों का तांता लगा होता है। सरकारी विभागों में पूछे गए कई सवाल ऐसे होते हैं जो गैर जरूरी होते हैं। इससे विभाग के लिए इनका जवाब देना मुश्किल होता और इसका खामियाजा जरूरतमंदों को उठाना पड़ता है। यह ही वजह है कि अब विभाग इस कानून के तहत मांगी जाने वाली सूचनाओं की या तो अनेदखी करने लगे हैं या जवाब देने में औपचारिकता भर निभा देते हैं।

प्राइवेट कंपनीज भी आएं दायरे में

रिसर्चर डॉ। आदित्य ने अपने शोध में एक सुझाव दिया गया है। इसमेंं आरटीआई में प्राइवेट कंपनियों को भी शामिल करने की बात कही गई है। ऐसा नहीं है कि प्राइवेट कंपनियों को इस कानून के दायरे में लाने वाल भारत पहला देश होगा। डॉ। अदित्य चतुर्वेदी ने बताया कि बंगलादेश में पहले से ही यह नियम लागू है, जिसमें सरकारी व गैर सरकारी सभी संस्थाएं इसमें शामिल हैं।

क्या हैै आरटीआई

आरटीआई कानून साल 2005 में लाया गया था। इसका मेन मकसद भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना और सरकारी प्रक्रिया में ट्रांसपेरेंसी लाना था। इस कानुन के तहत भारत का कोई भी नागरिक सरकारी सेक्टर की कोई भी इंफॉर्मेशन हासिल कर सकता है। आरटीआई दायर करने के बाद संबंधित सूचना को देना 45 दिनों के भीतर देने का प्रावधान है। इस कानून के तहत र्को भी तीन अपील कर सकता है। वहीं अगर कोई विभाग मांगी गई जानकारी नहीं देता है, तो उसके सूचना अधिकारी को लगभग 25 हजार तक का जुर्माना चुकाना होता है।


ये विभाग हैं दायरे में
- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री दफ्तर
- संसद और विधानमंडल
- चुनाव आयोग
- सभी अदालतें
- तमाम सरकारी दफ्तर
- सभी सरकारी बैंक
- सारे सरकारी अस्पताल
- पुलिस महकमा
- पीएसयू
- सरकारी बीमा कंपनियां
- सरकारी फोन कंपनियां
- सरकार से फंडिंग पाने वाले एनजीओ

इन पर लागू नहीं होता कानून
आरटीआई के जरिए लोगों को वो जानकारी नहीं दी जा सकती हैैं, जो देश के अहित से जुड़ी हुई हों। जैसे की किसी भी खुफिया एजेंसी की जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता जो देश की सुरक्षा और अखंडता पर खतरा बन जाए, दूसरे देशों के साथ भारत से जुड़े मामले, थर्ड पार्टी यानी निजी संस्थानों संबंधी जानकारी लेकिन सरकार के पास उपलब्ध इन संस्थाओं की जानकारी को संबंधित सरकारी विभाग के जरिए हासिल कर सकते हैं।

लग रहा है ढेर
लोग आरटीआई का इस्तेमाल सही से नहीं कर रहे हैैं। इसकी वजह से सिर्फ गैर जरूरी सूचनाओं वाली एप्लीकेशंस का विभागों में ढेर लग रहा है। इस कानून का मिसयूज रोकने के लिए एक जरूरी प्रोफॉर्मा तैयार करना चाहिए।
डॉ.अमित सिंह, हेड एंड डीन ऑफ आरयू लॉ डिपार्टमेंट

मेरा मकसद सिर्फ लोगों को अवेयर करने का था, जिससे लोगों की मदद की जा सके। वहीं कुछ सुझाव ऐसे हैैं, जो सरकार के लिए भी जरूरी हैं।
डॉ। अदित्य चतुर्वेदी, रिसर्चर