नहीं दिया निष्कर्ष
थर्सडे को प्रेजेंट प्ले में इंडियन पॉलीटिक्स में बढ़ते क्रिमिनलाइजेशन और इस सिस्टम से हताश, निराश, नाउम्मीद जनता की स्थिति को दिखाया गया है। जहां पर जनता को इन मुसीबतों से निकलने या छुटकारा मिलने की कोई संभावना नजर नहीं आती और न ही राइटर इस प्ले में कोई निष्कर्ष सुझाता है। बल्कि राइटर इस स्टेज से निपटने की जिम्मेदारी को पिलक पर छोड़ देता है। चैनपुर की दास्तान को कॉमेडी के ताने बाने में बुनकर रंजीत कपूर ने अपनी लेखनी की अमिट छाप ऑडियंस पर छोड़ी। प्ले के दौरान डॉ। बृजेश्वर सिंह, डॉ। गरिमा सिंह, शिखा सिंह, डॉ। एसई हुदा, नवीन कालरा मौजूद थे।
जब आया एक लेटर
प्ले की स्टोरी चैनपुर से शुरू होती है, जहां सभी तबके के लोग रहते हैं। कहानी में मजेदार मोड़ तब आता है जब पोस्टमास्टर को एक लेटर मिलता है, जिसमें इस बात का ज्रिक होता है कि एक खुफिया इंस्पेक्टर चैनपुर में आएगा और यहां की रिपोर्ट गुपचुप तरीके से गवर्नमेंट को बताएगा। सजा होने के डर से डॉक्टर, पुलिस, जज, दीवान व अन्य सभी इस इंस्पेक्टर को अपने वश में करने की जुगत में लग जाते हैं। इस पूरी कवायद में जब लोगों को एक होटल में खुफिया इंस्पेक्टर जैसे दो लोगों के रुकने की खबर मिलती है। इसके बाद जो कॉमेडी शुरू होती है, वे प्ले के अंत के साथ ही खत्म होती है। इस प्ले में चैनुपर की छोटी-छोटी घटनाओं से हास्य क्रिएट करने की सफल कोशिश की गई है। डायरेक्टर हेमा सिंह ने बहुत दूर ना ले जाकर, आसपास के कैरेक्टर्स में ही हास्य को खोज निकाला। प्ले के दौरान ऑडियंस का हंसना एक पल के लिए भी नहीं रुका। मंच पर एक्टर्स ने शानदार अभिनय से दर्शकों को बांधे रखा।