खामोशी की चादर में लिपटा रहा आधा शहर

बारादरी थानाक्षेत्र।

कुछ आगे बढऩे पर बारादरी थाना दिखा। बरादरी थाने से स्टेडियम की ओर जहां तक नजर गई केवल सूनसान सड़के ही दिख रही थी। कभी-कभार इक्का-दुक्का लोग जरूर दिखे लेकिन वो भी बिल्कुल हैरान-परेशान और घर पहुंचने की जल्दी में। लोगों के चेहरे पर दहशत साफ नजर आ रही थी। कुछ दूरी पर एक महिला से मुलाकात हुई। बातचीत में उन्होंने अपना नाम गुरदीप कौर निवासी मॉडल टाऊन बताया। मॉडल टाउन गेट के बंद हो जाने से वो काफी परेशान थीं। उन्हें काफी घूम कर अपने घर जाना पड़ रहा था। मॉडल टाउन में सब कुछ मिल जाता है लेकिन सब्जी खरीदने के लिए तो उन्हें बाहर निकलना ही पड़ेगा। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए एडमिनिस्ट्रेशन पहले से ही अलर्ट था। पूरे एरिया को छावनी में तब्दील कर दिया गया था। बारादरी थाने के सामने आरएएफ की मेरठ से आई हुई कंपनी ने कमान संभाली हुई है। कहीं से भी कोई व्यक्ति बाहर का नजारा लेने को निकलता तो उसे पुलिसकर्मी घर की ओर दौड़ा देते। कहीं-कहीं पुलिस को लोगों को धमकाने के लिए अपना डंडा भी लहराना पड़ा। पूरे क्षेत्र में एक अजीब सी दहशत भरी शांति का माहौल था। सख्ती इतनी थी कि लोगों को घरों के बाहर ही नहीं बल्कि मकान की छतों पर निकलने से भी पुलिस रोक रही थी। कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था।

कफ्र्यू ने छीना नन्हा नैतिक

सैटरडे इवनिंग को हुए उपद्रव के बाद लगे कफ्र्यू की वजह से मॉडल टाउन निवासी संजीव ने अपने दो साल के बच्चे को खो दिया। दरअसल उनके बेटे नैतिक की अचानक तबीयत खराब हो गई लेकिन शहर के चार थाना क्षेत्रों में कफ्र्यू लगे होने से वह उसका टाइम से ट्रीटमेंट नहीं करवा सके। नैतिक को समय रहते इलाज नहीं मिला, जिससे उसकी मौत हो गई। यही नहीं नैतिक के अंतिम संस्कार में रिश्तेदार पहुंच भी नहीं पाए। वे घरों से निकले लेकिन उन्हें बीच रास्ते से ही पुलिस वालों ने लौटा दिया।

अचानक बिगड़ी तबियत

संजीव मिश्रा के बेटे नैतिक की तबियत सैटरडे को अचानक बिगड़ गई। उसे डायरिया था। कफ्र्यू के कारण बीमार बच्चे को हॉस्पिटल ले जाने के लिए कोई भी रिक्शा या ऑटो वाला तैयार नहीं हुआ। काफी देर मशक्कत करने के बाद किसी तरह से संजीव अपने बीमार बच्चे को लेकर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल पहुंचे लेकिन तब तक नैतिक की मौत हो चुकी थी। संजीव इसके लिए कफ्र्यू को जिम्मेदार मानते हैं।

नहीं आ सके रिश्तेदार

संजीव के तीन बच्चों में नैतिक सबसे छोटा था। बेटे के मौत के बाद मां-बाप का बुरा हाल है, लेकिन उनके आंसू तक पोंछने वाला कोई नहीं था। सिटी में कफ्र्यू की वजह से दोनों के दुख में शामिल होने कोई रिश्तेदार भी नहीं पहुंच सका। जो निकला भी उसे पुलिस वालों ने लौटा दिया।

खामोशी की चादर में लिपटा रहा आधा शहर

कोतवाली

बूटों की आवाज चीर रही थी सन्नाटा

सिविल लाइंस, हार्ट ऑफ द सिटी। आम दिनों में यह बाजार देर रात तक गुलजार रहता है.कोतवाली में कफ्र्यू लगते ही इस इलाके ने सन्नाटे की चादर ओढ़ ली। कफ्र्यू के चलते संडे सुबह से यहां पसरा सन्नाटा शहर के बिगड़े हालात की कहानी बयां कर रहा था। दिन भर एरिया में वीरानी छाई रही। सड़कों पर इक्का दुक्का लोगों को छोड़ दें तो सिर्फ कंधे पर बंदूक और हाथों में डंडे लिए सुरक्षाकर्मियों के बूटों की आवाज ही सन्नाटे की चीर रही थी। अगर कोई बाहर निकल भी रहा था तो उसे जवानों की सख्ती दोचार होना पड़ रहा था। बटलर प्लाजा, वो जगह जो शहर के यंगिस्तान का फेवरेट हैंगआउट स्टेशन है। जहां रात तक पार्किंग के लिए जगह तलाशना मुश्किल हो जाता है, एकदम खाली पड़ा था। सिविल लाइंस की शाम और संडे यानी आउटिंग का परफेक्ट कॉम्बिनेशन पर आज ये जुगलबंदी भी काम नहीं आई। चाट और आइसक्रीम के कुछ ठेले पन्नियों से ढके हुए थे। मानो कि बेसब्री से बरेलियंस की राह देख रहे थे। इन्हीं के इर्द-गिर्द दोस्तों की मस्ती, बच्चों की जिद और फैमिली मेंबर्स की मस्ती। पूरा इलाका जैसे इस माहौल को मिस करता हुआ सा दिखा। कोतवाली एरिया में आलमगीरीगंज का सबसे बड़ा सर्राफा मार्केट भी है। हर दिन करोड़ों का कारोबार देखने वाला यह इलाका आज गहनों की चमक से महरूम रहा। हालांकि इन सबसे हटके आजमनगर में रेजिडेंट्स की हलचल बनी रही। शायद उन्हें घरों में कैद रहना मंजूर नहीं था। उन्हें घरों में पहुंचाने के लिए पुलिस वालों को खासी मशक्कत करनी पड़ी। वहीं बेहद संवेदनशील माने जाने वाले शाहबाद में पूरे दिन शांति रही। लोगों ने घरों से झांकने तक की कोशिश नहीं की। सभी के चेहरों पर दहशत साफ झलक रही थी।

खामोशी की चादर में लिपटा रहा आधा शहर

प्रेमनगर

छतों और खिड़कियों तक पर नहीं दिखे लोग

सैटरडे सुबह तक हालात बिल्कुल समान्य थे लेकिन रात से लागू कफ्र्यू ने प्रेमनगर को भी बदल दिया। जहां इस एरिया में पैदल चलने भर की जगह नहीं मिलती थी, संडे को सड़कों पर एक व्यक्ति भी नजर नहीं आ रहा था। सारे बाजार सैटरडे रात से ही बंद कर दिए गए थे। प्रेमनगर में जगह-जगह फोर्स की तैनाती थी। सख्ती कुछ ऐसी थी कि घरों की खिड़की और छतों तक पर कोई नजर नहीं आ रहा था। कभी-कभार कोई खिड़की से सड़क पर झांकता तो सुरक्षा के लिए तैनात जवान डंडे फटकार कर खिड़की बंद करवा देते। सड़कों पर कभी-कभार पुलिस की गाडिय़ां सायरन बजातीं तो सब सहम जाते। कफ्र्यू से अंजान छोटे बच्चे कभी-कभार गलियों में बाहर आते लेकिन पुलिस को देख जोर की दौड़ लगा कर घर के अंदर चले जाते. प्रेमनगर थाने के अंतर्गत आने वाले कोहड़ापीर, माधवबाड़ी, जाटवपुरा, नई बस्ती, भूड़ सहित सभी एरिया में संडे को कफ्र्यू का असर साफ झलक रहा था।

प्रेमनगर थाने के अंतर्गत आने वाले हर एरिया में जवान नजर आ रहे थे। मगर कफ्र्यू से बेपरवाह कुछ ऐसे भी नजर आए जो जवानों सेे कहीं आने जाने के लिए रिक्वेस्ट कर रहे थे। कफ्र्यू के वजह से एक ही दिन में हालात ऐसे हो गए थे कि लोग उसका दर्द झेल नहीं पा रहे थे। खाने-पीने की जरूरतों की व्यवस्था करने के लिए लोग बेचैन दिख रहे थे। इसके लिए लोग जवानों से उम्मीद लगाए बैठे थे मगर सुरक्षा की दृष्टि से जवानों को बस शहर में फैली हुई हिंसा को कंट्रोल करने की परवाह थी। कुछ ऐसे भी थे जो जवानों की नजर से बचने के प्रयास में पकड़े गए। जिन्हें जवानों के सवालों से दो चार तो होना ही पड़ा। डंडें का फटकार भी झेलनी पड़ी। जो भी बाहर दिखा पुलिस ने उल्टे पांव लौटा दिया।

किला में चबूतरे बने चौपाल

सड़कों पर भले सन्नाटा पसरा हो मगर गलियों में चर्चाओं का दौर चलता रहा। पर जैसे ही कोई आहट होती, छोटे-बड़े सब पुलिस समझकर घरों में घुस जाते। फिर जब आहट चली जाती तो सब बाहर निकल आते और चर्चाएं भी शुरू हो जातीं। ये एक दिन पहले हुए उपद्रव की दहशत ही थी कि रेजिडेंट्स खिड़कियों से लुकाछिपी कर रहे थे। गलियों के मुहाने पर बैठे पुलिस वालों के डांटते ही सब अंदर छिप जाते। दोपहर तकरीबन 12:30 बजे तक चली इस लुकाछिपी के बाद माहौल में अजीब सी खामोशी छा गई। शाम 4 बजे तक जो कंडीशन थी लगा ही नहीं कि यहां कोई रहता भी है। पुराने शहर की शान कहे जाने वाले बड़ा बाजार की दुकानों पर लटके ताले कफ्र्यू को फॉलो कर रहे थे।

किला रोड बेहद शांत रही मगर अंदर गलियों में दाखिल होते ही कफ्र्यू के बादल छंटने लगते थे। घरों के चबूतरे टाइमपास करने के लिए चौपाल में तब्दील हो गए थे। हर ग्रुप यही चर्चा कर रहा था कि हालात कब सुधर पाएंगे। मलूकपुर, साहूकारा, बिहारीपुरा ढाल तक गलियां जगह जगह बच्चों के लिए क्रिकेट ग्राउंड बन गए हैं।

किला एरिया में आने वाले कटघर में दिन भर पुलिस और लोगों में लुका छिपी का खेल चलता रहा। रेलवे क्रॉसिंग के दूसरी तरफ बसे एरिया में हर गली में शहर की चर्चा चल रही थी। यहां लोगों को घरों में खदेडऩे के लिए पुलिसबल को कई बार एरिया का राउंड करना पड़ा। कटघर से लेकर बाकरगंज तक स्थिति सामान्य बनी रही। बाकरगंज में कफ्र्यू जैसी स्थिति नहीं दिखी। वहां हालात काफी हद तक बाकी शहर से जुदा थे। दुकानें खुली हुई थीं। लोग खरीदारी भी कर रहे थे। हालांकि पुलिस और एडमिनिस्ट्रेशन किला रोड पर मुस्तैद था। किला रोड पर दूल्हे की मजार पर ज्यादा सख्ती रही। पूरे दिन वहां से गुजरने वाले वाहनों की चेकिंग चलती रही।

 

खामोशी की चादर में लिपटा रहा आधा शहर

कैंट

यहां तो बढऩे लगी demand

एक तरफ शहर में कफ्र्यू लगा है, वहीं कैंट के बाशिंदे कफ्र्यू से बेफिक्र हैं। यहां जनजीवन एकदम सामान्य है। यही नहीं कफ्र्यूग्रस्त इलाकों के लोग भी बीआई बाजार में ही पहुंच रहे हैं। कफ्र्यू शुरू होते ही रामपुर गार्डन, सिविल लाइंस में रहने वाले लोग रोजमर्रा की जरूरतों के लिए कैंट का ही रुख कर रहे हैं। स्थिति यह है कि संडे सुबह यहां मिल्क पैकेट्स की सबसे ज्यादा डिमांड रही। देखते ही देखते मिल्क पैकेट्स खत्म हो गए। डिलीवरी न हो पाने की वजह से शॉप ओनर्स ने सामान पर एक्स्ट्रा मुनाफा भी कमाया। आज यहां सब्जी की एक्स्ट्रा शॉप्स भी नजर आईं।

यही तो एक सहारा है

बार-बार शहर में बढ़ रहे कफ्र्यू से जीना मुहाल हो चुका है। अब तो ऐसा लगता है कि हमें इन दंगों का आदी होना पड़ेगा। अभी घर के जरूरी सामान लेने के लिए यहां आया हूं।

-दीपक

कफ्र्यू लगने की वजह से जरूरत का सामान लेने मुझे कैंट आना पड़ा। हालांकि यहां सामान कुछ महंगा मिल रहा है लेकिन न मिलने से तो अच्छा ही है।

-अखिलेश सक्सेना

खामोशी की चादर में लिपटा रहा आधा शहर

सुभाषनगर

संडे सुबह मार्केट वैसे ही खुला, जैसे रोज खुलता था, शॉप ओनर्स ने दुकानें भी सजाई थीं, पर आज यहां रोज वाली वो रौनक नहीं दिखी। यहां कफ्र्यू नहीं लगाया गया है लेकिन शहर के हालात को देखते हुए यहां भी लोग काफी अलर्ट नजर आए। दुकानों पर आने वाले भी घर जाने की जल्दी में दिखे। सिर्फ यहां दवा की दुकान पर एक-दो खरीदार नजर आए। पर जो नजर आए उनके चेहरों पर डर बरकरार था। उनके मोहल्ले में कफ्र्यू भले ही न हो पर हालात ने उन्हें घर में ही रहने का इशारा किया। महिलाएं तो घरों से निकली ही नहीं। हालांकि कई दुकानें बंद भी रहीं। पुलिस की गश्त यहां भी रही और एडमिनिस्ट्रेशन के ऑफिसर्स भी दौर पर आए। यहां भी सैटरडे नाइट की घटना चर्चा में रही।

डर तो लगता ही है

दुकान तो मैंने सुबह से ही खोली हुई है पर मार्केट में लोग आ नहीं रहे हैं। कफ्र्यू की वजह से दूसरे मोहल्लों से आने वाले लोग भी आज यहां नहीं आ पा रहे हैं।

-गुरविंदर पाल सिंह

घर में बच्ची बीमार है, उसकी दवा लाने के लिए मुझे बाहर निकलना ही पड़ा। दवा लेकर सीधे घर जा रही हूं। शहर में कफ्र्यू लगा है तो डर तो लग रहा है।

-पवित्र कौर

अभी कुछ पता नहीं कब क्या हो जाए। पता नहीं शहर में ऐसा क्यों हो रहा है। अब पूरे शहर में कफ्र्यू लगा है तो डर लग रहा है। पिछली बार तो यहां भी कफ्र्यू लगा था।

-अजय पाल

पता नहीं शहर को हो क्या गया है। हर महीने कफ्र्यू लगेगा तो शहर बर्बाद हो जाएगा। बिजनेस का काफी लॉस हो रहा है। हर किसी के दिल में दहशत है साहब।

-नरेंद्र सिंह, इज्जतनगर

खामोशी की चादर में लिपटा रहा आधा शहर

इज्जतनगर

शहर में न जाने का रहा मलाल

यहां कफ्र्यू का असर तो नहीं दिखा पर यहां के बाशिंदों के चेहरों पर शहर में न जा पाने का मलाल जरूर दिखाई दिया। दरअसल, इज्जतनगर के लोग मिनी बाईपास से होकर शहर से बाहर तो जा सकते हैं पर शहर में नहीं आ सकते हैं। वहीं यहां का जनजीवन पूरी तरह सामान्य रहा। यहां रोज की तरह ही बाजार खुला, खरीदार भी पहुंचे। पर शहर का कफ्र्यू इनके बीच भी चर्चा का विषय बना रहा। हर किसी की जुबान पर यह चिंता थी कि कहीं हमारे इलाके में भी कफ्र्यू न लग जाए। यहां अफवाहों का बाजार भी काफी ज्यादा गर्म रहा।

फोन से जाना हालचाल

इज्जतनगर में रहने वालों ने कफ्र्यूग्रस्त इलाकों में रहने वाले अपनों की फोन पर ही इन्फॉर्मेशन ली। उन्होंने एहतियात के तौर पर ही अपने घरों में जरूरी सामान का स्टॉक रखना जरूरी समझा। इसकी वजह यह रही कि इज्जतनगर भी शहर का ही इलाका है। हो सकता है कि कहीं यहां भी कफ्र्यू न लग जाए। कफ्र्यू की वजह से स्कूल, ऑफिस बंद रहने से बड़ों ने चर्चा में तो बच्चों ने क्रिकेट खेलकर टाइम पास किया।