Failures are stepping stone to success

कोई भी गोल सेट करें तो उसे अचीव करने के बारे में सोचें। रास्ते में आने वाली प्रॉब्लम्स को सोचकर डायवर्ट नहीं होना चाहिए। फर्म डिटर्मिनेशन और बिलीव के साथ अपनी मंजिल की ओर बढ़ें। पॉजिटिव अप्रोच रखें। सफलता दोनों हाथ फैलाकर आपका स्वागत करेगी। सिविल सर्विसेज एग्जाम-2011 में टॉप करने वाले शहर के दो होनहार यूथ को यही मैसेज दे रहे हैं। एक सुर में दोनों ने युवाओं को यही मंत्र दिया।

पैसा नहीं सैटिस्फैक्शन जरूरी

यूपीएससी में 32वीं रैंक स्कोर करने वाले अमित अरोरा ने आईआईटी मुंबई से कम्प्यूटर साइंस में बीटेक और एमटेक किया। उसके बाद मल्टीनेशनल कंपनी में 22 लाख पर ईयर के पैकेज पर काम भी किया। दो साल जॉब करने के बाद उन्होंने रिएलाइज किया कि जॉब में पैसा तो बहुत है लेकिन सैटिस्फैक्शन नहीं है। वह सोसाइटी में कंट्रीब्यूट नहीं कर पा रहे हैं। गवर्नमेंट की जो पॉलिसीज पब्लिक तक पहुंचनी चाहिए, पहुंच नहीं पातीं। इसी सेंस ऑफ कंट्रीब्यूशन ने उनको जॉब छोडऩे पर मजबूर किया और सिविल सर्विसेज में जाने की इच्छा जगाई।

अभ्यासिका रहा टर्निंग प्वाइंट

अमित जब बीटेक थर्ड ईयर में थे, तब एक एक्टिविटी अभ्यासिका में पार्टिसिपेट करने के दौरान गरीब बच्चों के होमवर्क में हेल्प करने का अवसर मिला। इस दौरान उन्होंने पब्लिक की लाइफ को करीब से महसूस से किया। तब उन्हें कुछ आईएएस से मिलने का भी अवसर मिला। उनकी लाइफस्टाइल और नेचर ऑफ वर्क से ज्यादा प्रभावित हुए और यहीं से उन्होंने ने भी सिविल सर्विसेज में जाने की ठानी। जॉब के दौरान उन्होंने यह महसूस किया कि पब्लिक के लिए जो भी स्कीम और पॉलिसीज हैं उसे जमीनी स्तर पर पहुंचाने का जरिया ये ऑफिसर्स ही हैं।

बस लक्ष्य तय करें

अमित का यूथ के लिए सीधा सा फंडा है। गोल सेट करें और दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ें। रास्ते अपने आप बन जाएंगे। इफ एंड बट को अवॉइड करें। उन्होंने जब अपना गोल सेट कर लिया, तब 22 लाख सैलरी वाली जॉब को छोडऩे में बिलकुल भी नहीं हिचके। न ही सिविल सर्विसेज की प्रिपरेशन को लेकर विचलित हुए।

निगेटिव्ज आइडेंटिफाइ किए

अमित को सिविल सर्विर्सेज में सफलता तीसरे अटैम्प्ट में मिली। फस्र्ट अटैम्प्ट में बिना किसी खास प्रिपरेशन से एग्जाम दिया था। सेकेंड अटैम्प्ट में वह इंटरव्यू क्लीयर नहीं कर पाए। इसके बाद उन्होंने अपनी मिस्टेक्स को पकड़ा, उन्हें दूर किया। इंटरव्यू के लिए पहले से ज्यादा पुख्ता प्रिपरेशन की और थर्ड अटैम्प्ट में बेहतर रैंक हासिल की।

कमियों ने दिखाई सफलता

वह बताते हैं कि सेकेंड अटैम्प्ट में जब उन्हें इंटरव्यू में सफलता हाथ नहीं लगी तब वे थोड़ा डिसकरेज जरूर हुए। दरअसल उनके साथ पहली बार ऐसा हुआ कि कुछ हासिल करने के लिए मेहनत की और सफलता नहीं मिली। वे फिर भी डिगे नहीं। फ्रेश एनर्जी के साथ दोबारा अपने गोल की तरफ पॉजिटिव अप्रोच के साथ आगे बढ़ गए। उनकी कमियों ने ही सफलता की राह बनाई। हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि कमियां हर किसी में होती हैं। कोई परफेक्ट नहीं होता लेकिन परफेक्शन के लिए काम करने में ही सफलता छिपी हुई है।

अब मैं अपने दिल की सुन रहा हूं

सिविल सर्विसेज में 304 रैंक हासिल करने वाले अरुण कुमार के पेरेंंट्स की दिली इच्छा थी कि वे इंजीनियर बनें। उन्होंने आईआईटी कानपुर से इलेक्ट्रिकल में बीटेक किया। जॉब के लिए 6 लाख पर ईयर के पैकेज पर सेलेक्ट भी हुए। यहां पर उन्होंने अपने दिल की बात सुनी और जॉब करने के बजाय  सिविल सर्विसेज की प्रिपरेशन में लग गए। स्टडी के दौरान ही कुछ ऐसे स्टूडेंट्स से वास्ता हुआ जो सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे थे। सो उनमें भी इंट्रेस्ट जागा और लीग से हट कर कुछ करने की ठानी।

कॉन्फिडेंस था

जॉब ऑफर मिला तो अरुण ने बाकी स्टूडेंट्स की तरह झट से लपकने में जल्दबाजी नहीं की। यहीं से उनकी लाइफ ने टर्न लिया। सोचा किसी के लिए जॉब करने के बजाय आईएएस ऑफिसर बनकर पब्लिक की पॉलिसीज सीधे उन तक पहुंचाएंगे। जॉब ऑफर को ठुकराया और विश्वास के साथ सिविल सर्विसेज की प्रिपरेशन में लग गए। बेटे की पॉजिटिव अप्रोच और कॉन्फिडेंस को पेरेंट्स ने बखूबी सपोर्ट किया।

फस्र्ट अटैम्प्ट के बाद और श्योर हुए

आम तौर पर लोग गोल अचीव करने में असफल होते हैं तो वे डिसकरेज होकर डिप्रेशन में चले जाते हैं। लेकिन अरुण के साथ ऐसा नहीं हुआ। फस्र्ट अटैम्प्ट में उन्हें इंटरव्यू में सफलता हाथ नहीं लगी। डिसकरेज होने के बजाय वे सफलता के प्रति और एश्योर हो गए। उन्हें 100 परसेंट यकीन हो गया कि नेक्स्ट अटैम्प्ट में सफलता जरूर हाथ लगेगी।

मोटिवेशन लेवल डाउन नहीं होने दिया

फस्र्ट अटैम्प्ट में जब वे असफल हुए तो उन्होंने अपना मोटिवेशन लेवल डाउन नहीं होने दिया। हार्ड वर्क में कोई कमी नहीं थी। बेसिक्स को और क्लियर किया। डेडिकेशन के साथ अपनी प्रिपरेशन में लग गए।

स्मार्ट स्टडी

अरुण ने इंजीनियरिंग से इतर अपना ऑप्शन डिसाइड किया। कॉन्सेप्ट पर ध्यान दिया। बेसिक्स क्लियर किया और स्मार्ट स्टडी से गोल का रोडमैप तैयार किया। जितना भी पढ़ा उसमें अपनी थिंकिंग डेवलप की। नोट्स बनाए और इंपॉर्टेंट टॉपिक्स पर ही ध्यान केंद्रित किया।

ब्यूरोक्रेसी में एक्सपट्र्स की जरूरत

ऐसा नहीं है कि ब्यूरोक्रेसी में केवल करप्शन ही इनवॉल्व है। अरुण ने बताया कि उन्हें काफी कॉन्सटीट्यूशनल पावर्स दी जाती हैं। विल पावर हो तो किसी भी एडवर्स सिचुएशन में भी इमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकते हैं.  प्रेजेंट में ब्यूरोक्रेसी में एक्सपट््र्स की जरूरत है। जिन्हें किसी स्पेशलाइज्ड फील्ड में टेक्निकल एक्सपर्टाइज हासिल हो। इसलिए सिविल सर्विसेज में काफी संख्या में प्रोफेशनल कोर्सेज के स्टूडेंट्स हाथ आजमा रहे हैें।