Perfect combo of profession & passion

वैसे तो ये लोग किसी न किसी विभाग के कर्मचारी हैं पर इनके अंदर का कलाकार एकदम पर्सनल है। रेस्पॉन्सिबिलिटीज भरी जॉब होने के बावजूद इन्होंने अपनी हॉबी को मरने नहीं दिया। उसके साथ पूरा न्याय किया और समय के साथ-साथ उसे निखारा। इतना कि लोगों ने न केवल इसे सराहा बल्कि सम्मानित भी किया। इंट्रेस्टिंग बात तो ये है कि इनका प्रोफेशन और पैशन इतना डिफरेंट है कि इनकी कला और टैलेंट देखकर एकबारगी आप भी चौंक जाएंगे और तारीफ किए बिना नहीं रह सकेंगे।

गजल और poetry का personal account

इलाहाबाद बैंक में मुख्य प्रबंधक के तौर पर काम कर रहे नवीन कुमार ने अपने शौक को कभी नहीं छोड़ा। उन्हें बचपन से म्यूजिक और राइटिंग का शौक रहा। प्रोफेशन के साथ उन्होंने हॉबी के साथ भी न्याय किया और उसे पूरा टाइम दिया। नवीन जब बांसुरी को होठों से लगाते हैं तो उसकी मधुर आवाज कानों में रस घोल देती है। नवीन कहते हैं कि संगीत और साहित्य हमेशा से उन्हें पसंद रहा है। वह गजल और कविताएं लिखते हैं। उनकी कई गजल और कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में पब्लिश हो चुकी हैं। लिखने के शौक के चलते उन्होंने 1983 में चंदौसी से 'अभिव्यंजनाÓ नाम से एक मंथली मैगजीन भी निकाली। जॉब के दौरान वह जहां भी रहे, स्टेज परफॉर्मेंस दी। उनका कहना है कि वह बैंक के काम में बहुत बिजी रहते हैं लेकिन संगीत के लिए समय निकाल ही लेते हैं। गाते हैं और बांसुरी भी बजाते हैं। उन्होंने स्वर्गीय पंडित जमुना प्रसाद जी से बांसुरी बजाना सीखा है। यही नहीं उन्हें म्यूजिक का शौक इतना है कि अभी गिटार बजाना सीख रहे हैं।

- नवीन कुमार, मुख्य प्रबंधक इलाहाबाद बैंक

Superfast तबला

मॉरिस मैसी रेलवे में चीफ वेलफेयर इंस्पेक्टर के पद से रिटायर हुए हैं। उनकी प्रोफेशनल लाइफ भले ही रेल की पटरियों से जुड़ी रही लेकिन शास्त्रीय संगीत ने उन्हें हमेशा अट्रैक्ट किया। बचपन से ही तबले की थाप से उन्हें लगाव था। इसी लगाव के चलते उन्हें दुबई और लंदन में परफॉर्म करने का मौका मिला। मैसी ने कई अवॉर्ड भी जीते। मॉरिस बताते हैं कि उनके दादा, परदादा म्यूजिक से जुड़े रहे हैं। इसलिए उन्हें भी बचपन से ही संगीत पसंद था। जॉब में आने के बाद भी यह शौक बरकरार रहा। तबले के बिना तो उन्हें अपना जीवन ही अधूरा लगता है। उन्होंने बताया कि जब वह 7 साल के थे तो मसूरी में परफॉर्मेंस दिया। उनकी प्रतिभा देखकर तत्कालीन प्राइममिनिस्टर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें सम्मानित किया। इसके अलावा 1995 में उन्हें नेशनल अवॉर्ड से भी नवाजा गया। 2005 में लालू प्रसाद यादव ने 3 लाख का अवॉर्ड दिया था। वह अब तक 15 जीएम अवॉर्ड जीत चुके हैं।

- मॉरिस मैसी, रिटायर्ड रेलवे अधिकारी

Weapon & sketch in hands are going parallel

वह सेना के वरिष्ठ अधिकारी हैं तो उनके हाथ हथियार चलाने में एकदम निपुण हैं। बात यहीं तक नहीं है। उनके हाथ स्केच बनाने में भी माहिर हैं। उनके घर की दीवारों पर लगी स्केच सीरीज बिना कुछ बताए सब कुछ कह जाती है। जॉब का बिजी शेड्यूल होने के बावजूद वह हॉबी के लिए टाइम मैनेज कर ही लेते हैं.  हम बात कर रहे हैं जाट रेजीमेंट सेंटर के ब्रिगेडियर अनिल शर्मा की, जो अपने क ॉलेज टाइम में साइंस स्ट्रीम के स्टूडेंट थे। साथ ही आर्ट के प्रति भी लगाव बहुत था। ब्रिगेडियर अनिल शर्मा पहले तो वॉटर कलर से पेटिंग करते थे लेकिन बाद में उनका ध्यान स्केच की ओर गया और फिर उनकी इस कला में लगातार निखार आता गया। स्केच को लेकर तीन विषय उन्हें बहुत प्रिय हैं, एक तो पिग स्टिकिंग, दूसरा गोल्फ और तीसरा पानी का जहाज। पिग स्टिकिंग ब्रिटिश समय का एक खेल है, जिसमें अंग्रेज अधिकारी ग्रामीण सूचना पर भाले से जंगली सुअर का शिकार करते थे। अनिल वाइफ नम्रता को अपनी कला का प्रेरणा स्रोत मानते हैं। तूफान में पानी के जहाज की चुनौतियों को उकेरते हुए बनाई गई स्केच सीरीज को वह नम्रता के लिए समर्पित बताते हैं। उनकी गोल्फ सीरीज आर्टिस्ट गैरी पैटरसन के चित्रों से प्रेरित है। वह अब तक 100 से ज्यादा स्केच बना चुके हैं। इस समय वह एंगलो-अफगान वार के समय का स्केच 'सेविंग द गन्सÓ बना रहे हैं। आज तक किसी भी एग्जिबिशन में अपने चित्रों को न ले जाने वाले ब्रिगेडियर शर्मा इसे अपना निजी शौक बताते हुए भविष्य में भी इन्हें प्रदर्शनी से दूर रखने की बात कहते हैं। ये हॉबी उन्हें स्ट्रेस बस्टर भी लगती है।

- ब्रिगेडियर अनिल शर्मा, जाट रेजीमेंट सेंटर

कलम है इनकी सच्ची साथी

इलाहाबाद सर्विस कमीशन से 1966 में सेलेक्ट होने वाले सीपी आरोड़ा रिटायरमेंट के बाद फिलहाल स्थाई लोक अदालत के सदस्य हैं। उन्हें साहित्य और कविताओं का शौक है। वह लिखते हैं और सोशल वर्क भी करते हैं। उनकी कई कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में पब्लिश हो चुकी हैं। यही नहीं उन्हें सोशल वर्क के लिए उत्कृष्टता का सर्टिफिकेट भी मिल चुका है। उनका कहना है कि उन्होंने जॉब को कभी अपनी हॉबी के आड़े नहीं आने दिया। दोनों को अलग-अलग और पूरा टाइम दिया। वह शाहजहांपुर से पब्लिश होने वाले 'दैनिक एक झलकÓ न्यूज पेपर से जुड़े रहे। वह उसमें व्यंग्यकार के रूप में लिखते थे। इसके अलावा लिटरेसी, हेल्थ, वूमेन इंपावरमेंट, सोशल इक्विलिटी पर बल देना उनके रूटीन का हिस्सा है। परमहंस अद्वैतानंदजी के सानिध्य में शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने सुभाषनगर में 'परमजी पप्र परयोगÓ की स्थापना की, जिसका संचालन फ्री किया जाता है। जॉब के बीच जब भी उन्हें टाइम मिलता है वह बाल अधिकार कार्यक्रम, सूचना का अधिकार, पर्यावरण बचाओ कार्यक्रम संचालित करते रहते हैं।

- सीपी आरोड़ा, मेंबर, स्थायी लोक अदालत

इनके पास है acting  का full insurance

रंजीत वालिया यूनाइटेड इंश्योरेंस कंपनी में बतौर प्रशासनिक अधिकारी काम कर रहे हैं। 56 वर्षीय रंजीत को एक्टिंग का शौक है। इनके अब तक कई सीरियल और अलबम रिलीज हो चुके हैं। वह बताते हैं कि 1992 में डीडी वन पर उनका पहला सीरियल 'कहानी शहजानाबाद कीÓ शुरू हुआ। यह सीरियल बेगम आबिदा अहमद ने प्रोड्यूस किया था। इसके अलावा लखनऊ और बरेली दूरदर्शन पर 'लारा लाप्ताÓ ब्रॉडकास्ट हुआ। वह 1979 से जॉब कर रहे हैं लेकिन एक्टिंग के शौक को पूरा करने के लिए 1980 में नक्षत्र नाट्य संस्था की शुरुआत की। रामपुर व रामनगर में हुए अखिल भारतीय नाट्य कॉम्पिटीशन में उन्हें फस्र्ट प्राइज मिला। यही नहीं बेस्ट डायरेक्टर और एक्टर का अवॉर्ड भी मिला। इसके साथ ही फिल्म व सीरियल एक्टर एसएम जाहिर के साथ 'आज का सचÓ सीरियल में काम किया। उसमें उन्होंने लीड रोल प्ले किया था। उनके दो भक्ति अलबम 'जयकारा मां पूर्णागिरीÓ और 'माता पहाड़ों वालीÓ में एक्टिंग की है।

रंजीत वालिया, प्रशासनिक अधिकारी, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी

लेखक की राह पर पकड़ी speed

लाइफ की छोटी-छोटी बातों और समाज के हर पहलू को शब्दों में पिरोना प्रियदर्शन मालवीय की खासियत रही है। जॉब में आने के बाद भी प्रियदर्शन का लिखने का शौक मरा नहीं। आज भी फुरसत के पलों में किसी न किसी ईश्यू पर लिखते रहते हैं। अब तक इनकी कई कहानियां और उपन्यास पब्लिश हो चुके हैं। वह बताते हैं कि उन्होंने 1984 से लिखना शुरू किया। तब वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे। वहां 'परिवेशÓ नाम की एक संस्था थी। टाइम-टाइम पर गोष्ठी करते रहते थे। 'परिवेशÓ नाम से ही 1999 में एक मैगजीन भी निकाली गई, जिसके संपादक प्रियदर्शन थे। उसमें सबसे पहले उनका कविता संग्रह पब्लिश हुआ। शीर्षक था 'सपना अपना-अपनाÓ। उन्होंने गुजरात दंगों पर भी एक कहानी लिखी 'सुनिए घोड़ों की टापेंÓ। अब तक उनकी 22 कहानियां और एक उपन्यास पब्लिश हो चुका है। उपन्यास का नाम है 'घर का आखिरी कमराÓ। वह कहते हैं कि रिटायर होने के बाद वह पूरा समय अपने शौक को ही देंगे।

- प्रियदर्शन मालवीय, इंफोर्समेंट, आरटीओ

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