चुनावी पारे में दब गए वोटर्स के इश्यूज
चुनावी उफान में बह गए वोटर्स के इश्यू
BAREILLY: बरेली में सियासी पारा अपने उफान पर है, लेकिन इस उफान में वोटर्स के मुद्दे भी लगता है बह से गए हैं। चुनावी रण में दम ठोंकने से पहले बरेली के विकास को लेकर दम भरने वाले प्रमुख पार्टियों के कैंडीडेट के भाषणों से जनहित की इश्यूज छूमंतर हो गए हैं। कैंडीडेट्स ने चुनावी पिच पर अपनी लाइन लेंथ एकदम बदल दी है। पब्लिक की बात के बजाय अपनी बातों से सियासत की राहों पर सुनहरे सफर का सपना संजोए हुए हैं। कोई विरोधियों की आलोचना कर वोट मांग रहा है तो कोई केवल पार्टी के नाम पर समर्थन जुटाने की जुगत में है।
महंगाई और करप्शन पर पब्लिक का फोकस
आई नेक्स्ट ने ब् स्टेट और बरेली समेत क्ख् सिटीज में पब्लिक के चुनावी मुद्दों को लेकर एक सर्वे कराया था। महंगाई, करप्शन, वीमेन सिक्योरिटी, अनइंप्लॉवयमेंट, बेहतर शिक्षा समेत भ् मुद्दों को लेकर हम जनता के बीच गए। इन मुद्दों को इसलिए भी चुना था क्योंकि हर पार्टी के मैनीफेस्टों में इन्हीं को सबसे ज्यादा तरजीह दी जाती है। सर्वे के अनुसार 77 परसेंट लोगों ने महंगाई को इलेक्शन का सबसे बड़ा मुद्दा बताया। बात साफ थी कि खाने की थाली ने आम लोगों के घर का बजट बिगाड़ दिया है। 7म् परसेंट लोगों ने करप्शन को मुद्दा चुना। आज हर एक आदमी लाइफ के हर लेवल पर करप्शन से जूझ रहा है। वीमेन सिक्योरिटी को म्7 परसेंट वोट मिले। घर से लेकर उसके दहलीज के बाहर तक महिलाएं अपने आप को इनसिक्योर महसूस करती हैं। म्म् परसेंट लोगों ने बेरोजगारी को बड़ा प्रॉब्लम बताया। यूथ्स के हाथ में डिग्री तो है लेकिन इंप्लॉवयमेंट नहीं है। बेहतर शिक्षा को भ्9 परसेंट वोट मिले। यूथ्स मानता है कि एजूकेशन सिस्टम को बदलने की जरूरत है।
और हर दिन की समस्याओं से बेजार
शहरवासियों की बात करें तो वैसे तो कई मसलों को अपने नेताओं की ओर उम्मीद की टकटकी लगाए बैइे हैं। लेकिन इनमें से अगर पांच प्रमुख मसलों पर गौर करें तो ट्रैफिक प्रॉब्लम, सीवरेज की समस्या, अनऑथराइज्ड कॉलोनी, बिजली-सड़क-पानी और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे बरेलियंस के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी करने में सबसे आगे हैं। इसके अलावा बंद होती फैक्ट्रियों से घटते रोजगार के अवसर और शहरों से कनेक्टिविटी भी शहर की बड़ी प्राब्लम्स में से एक है।
सोशल साइट पर बस इनकी सुनिए
सभी प्रमुख पार्टियों के कैंडीडेट पब्लिक का समर्थन बटोरने के लिए जमीनी प्रचार के अलावा सोशल साइट्स पर भी जमकर प्रहार कर रहे हैं। वे पब्लिक के बीच केवल अपने ही मुद्दे थोपने में लगे हैं। वे मुद्दे जिनसे विरोधियों को पटकनी दी जा सके, वे मुद्दे जिनमें विरोधियों की आलोचनाएं ज्यादा, पब्लिक के हितों के लिए कोई फुलप्रूफ प्लानिंग नहीं है। मतलब साफ वे किसी ना किसी माध्यम से पब्लिक को बरगला कर और वोटर्स का ध्रुवीकरण कर समर्थन चाहते हैं।
मोदी के नाम पर वोट
भाजपा के कैंडीडेट संतोष कुमार गंगवार म् बार लगातार एमपी चुने जा चुके हैं। पिछले इलेक्शन में वे काफी कम वोटों के अंतर से हार गए थे। इस बार वे फिर मैदान में हैं लेकिन मोदी के नाम पर। जहां भी जा रहे हैं वे मोदी के नाम पर ही वोट मांग रहे हैं। पिछले म् बार में उन्होंने क्षेत्र में क्या डेवलपमेंट वर्क कराया इसका जिक्र तक नहीं करते। सोशल साइट पर भी वे मोदी के नाम पर ही वोट मांग रहे हैं। यही नहीं क् अप्रैल को हुई मोदी की जनसभा में भी उन्होंने पब्लिक के सामने कोई मुद्दा नहीं रखा।
विरोधियों को कुलचने पर आमादा हाथी
बसपा के कैंडीडेट उमेश गौतम राजनीति में नए नवेले हैं। पब्लिक के लिए फ्यूचर में क्या प्लानिंग बना रखी है इस बार ज्यादा बात ना करते हुए विरोधियों की आलोचना ज्यादा करते हैं। पब्लिक के बीच केवल एक अवसर दिए जाने की मांग को लेकर जाते हैं। पूर्व के सांसदों के कार्यकाल की कमियां गिनाने पर अधिक जोर रहता है। बस यही आरोप है कि पूर्व के सांसदों ने पब्लिक के बारे में ना सोचकर अपनी जेब भरीं। पब्लिक के मुद्दों की बात पर उन्होंने बस इतना ही कहा कि वे पार्टी के मैनीफेस्टो में शामिल है।
खास समुदायों का साध रहे हित
सपा पार्टी की कैंडीडेट आयशा इस्लाम को भी पॉलीटिकल एक्सपीरियंस नहीं है। पार्टी प्रचार-प्रसार में समग्र पब्लिक को साथ लेकर चलने के बजाय केवल एक-दो समुदायों के हितों की बात ही करती है। चाहे स्कॉलरशिप दिलाने का मुद्दा हो या फिर आरक्षण के नाम पर वोट बटोरने का। पार्टी केवल दो समुदायों के नांव पर सवार होकर चुनावी समर को पार लगाने की इच्छा पाले है।
अपने काम के बलबूते पर नाम
कांग्रेस पार्टी के कैंडीडेट प्रवीण सिंह ऐरन ख्009 के लोकसभा इलेक्शन में पहली बार एमपी चुने गए। वे अपने कार्यकाल में किए गए डेवलपमेंट वर्क की बदौलत लोगों का समर्थन बटोरने में जुटे हैं। जहां-जाते हैं अपना काम गिनाना नहीं भूलते। सोशल साइट पर भी कितने बजट का डेवलपमेंटल काम स्वीकृत कराया इसके बल पर नाम कमा रहे हैं। उनहोंने पार्टी से इतर अपना नारा बुलंद किया है। म् बार बनाम एक बार नारे के नाम पर लोगों को तुलनात्मक स्टडी करने पर बल दे रहे हैं।
दूसरों को कोसते आप
पहली बार आम चुनाव में दम दिखाने उतरी आप पार्टी के कैंडीडेट सुनील यादव भी मेन स्ट्रीम पॉलीटिक्स के गुणा-भाग से अंजान है। उनके मुद्दों में महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे तो हैं लेकिन वे केवल दूसरी पार्टी के कैंडीडेट पर प्रहार करने के लिए ही इस्तेमाल किया जा रहा है। पब्लिक के बीच वे केवल दूसरी पार्टियों की पॉलीसिज और मैनीफेस्टो का माखौल उड़ा रहे हैं। उनपर निशाना साध कर अपना निशाना ठीक रहे हैं।
भारतीय राजनीति के वर्तमान स्वरूप में आम आदमी कहीं पीछे छूट गया है। इसलिए उनके मुद्दे भी गौंण हो गए हैं। एक दूसरे की अलोचना करने में कैंडीडेट के निहित स्वार्थ छिपे हुए हैं। मुद्दे तो केवल घोषणा पत्र में सजाने के लिए रह गए हैं। पॉलीटिक्स दूसरों में कमियां निकालने तक सीमित रह गई है।
- डॉ। वंदना शर्मा, पॉलीटिकल एनेलिस्ट
यूपी की पॉलीटिक्स थोड़ा हट कर है। यहां आम चुनाव में भी रीजनल समीकरणों पर ही इलेक्शन लड़ा जाता है। ऐसे में पॉलीटिकल पार्टीज के मैनीफेस्टो रीजनल लेवल पर काम नहीं करते। भ्रष्टाचार, महंगाई जैसे मुद्दे गायब हो गए हैं। वो भी जब सभी पार्टियां केवल एक पार्टी को रोकने के लिए इलेक्शन लड़ रही हों, तो यहां पर पब्लिक का मुद्दा उठता ही कहां है।
- डॉ। राजीव गोयल, कार्डियोलॉजिस्ट व फिजीशयन
महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे वैचारिक और व्यक्तित्व की लड़ाई में बौने साबित हो गए हैं। यह इलेक्शन ऐसे मोड़ पर पहुंच गया है, जहां राजनीतिक दलों के नेताओं के बीच लड़ाई हो रही है। ऐसे में आम आदमी के मुद्दे कहां ठहरते हैं। आम आदमी के हित के लिए कोई नहीं लड़ रहा। सिर्फ बड़े नाम वाले नेताओं के लिए लड़ा जा रहा है।
- राजेंद्र गुप्ता, प्रेसीडेंट, व्यापार मंडल