बरेली(ब्यूरो)। जिले में 31 वर्ष पहले हुए चर्चित मुकेश जौहरी उर्फ लाली फर्जी एनकाउंटर केस में कोर्ट ने गवाहों और सबूतों के आधार पर कोतवाली मेें तैनात तत्कालीन दरोगा युधिष्ठिर सिंह को को शुक्रवार को उम्र कैद की सजा सुनाई है। कोर्ट ने इस मामले में 28 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
कही थी यह बात
एडीजीसी क्राइम आशुतोष दुबे ने बताया कि कोतवाली में तैनात रहे दारोगा युधिष्ठिर सिंह ने 23 जुलाई 1992 को किला के साहूकारा निवासी मुकेश जौहरी उर्फ लाली को आत्मरक्षा में एनकाउंटर कर मार गिराने की बात कही थी। दारोगा ने अपनी शिकायत में बताया था कि वह 23 जुलाई 1992 को बड़ा बाजार से सामान खरीद कर वापस लौट रहा था। इस दौरान पिंक सिटी वाइन शॉप के सेल्समैन से कुछ लोग झगड़ा कर रहे थे, जिस पर वह वाइन शॉप पहुंच गया। उन्होंने झगड़ा करने वालों को रोका तो एक ने उस पर गोली चला दी। निशाना चूकने पर दारोगा बाल-बाल बचा। जिसके बाद दारोगा ने आत्मरक्षा में गोली चलाई तो गोली साहूकारा निवासी मुकेश जौहरी उर्फ लाली को जा लगी। जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया। अस्पताल पहुंचने से पहले लाली की मौत हो गई। दारोगा की शिकायत पर कोतवाली में लाली समेत अज्ञात 2 और लोगों के खिलाफ लूट और जानलेवा हमला करने का मुकदमा दर्ज किया गया था। इसके बाद लाली के परिजनों ने मामले को झूठा बताते हुए आरोपी दारोगा युधिष्ठिर सिंह के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग की थी। लेकिन वह लोग अधिकारियों के चक्कर काटते रहे लेकिन उनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई।
सीबीसीआईडी की जांच
परिजनों ने एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए दरोगा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की काफी प्रयास किए। लेकिन मुकदमा दर्ज नहीं हो सका। जिस पर लाली की मां चंद्रा जौहरी ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। लाली के परिजनों ने उसे इंसाफ दिलाने के लिए 5 साल तक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। जिसके बाद मामले की जांच सीबीसीआईडी कराई गई। जांच में पता चला कि जिस समय एनकाउंटर हुआ था उस समय दारोगा ड्यूटी पर तैनात नहीं था। उसने अपने सरकारी रिवाल्वर का दुरुपयोग किया। जांच के बाद सीबीसीआईडी के इंस्पेक्टर शीशपाल सिंह की शिकायत पर 20 नवंबर 1997 में दारोगा युधिष्ठिर सिंह के विरुद्ध हत्या और षड्यंत्र रचने की धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की गई।
पीठ में लगी थी गोली
दारोगा यह युधिष्ठिर सिंह ने अपने बयानों में दर्ज कराया था कि मुठभेड़ के दौरान उसने लाली को सामने से गोली मारी थी। लेकिन जब शव का पोस्टमार्टम कराया गया तो गोली लाली की पीठ में लगी पाई गई थी। जिससे साफ हो गया था कि दारोगा ने बयान गलत दर्ज कराया है।
19 गवाह हुए थे परीक्षित
शासकीय अधिवक्ता ने इस मामले में 19 गवाहों को कोर्ट में परीक्षित कराया था। हत्या के मामले में जमानत के बाद से दारोगा फरार हो गया था। कोर्ट ने उसके विरुद्ध गैर जमानती वारंट और कुर्की के कार्यवाही के आदेश भी पुलिस को दिए थे। जिसके बाद वह हाजिर हुआ था।
शपथपत्र बना अहम पहलू
दरोगा ने लाली पर झूठे मुकदमे में आरोप लगाया था कि वह पिंक सिटी वाइन शॉप के सेल्समैन से लाली को झगड़ते देखा था। सेल्समैन के लूट का विरोध करने पर उसने ललकारा तो उन्होंने उस पर गोली चला और आत्मरक्षा में उसने गोली चलाई। जिससे लाली की मौत हो गई। इसकी जानकारी जब सेल्समैन राजेश जायसवाल को हुई तो उसने शपथपत्र दिया था कि हमारे साथ ऐसी कोई घटना नहीं हुई। सेल्समैन के शपथपत्र से दरोगा के झूठ से पर्दा उठ गया। जो उसे सजा दिलाने में अहम पहलू साबित हुआ।