-बीसीबी का फिजिकल और गेम्स डिपार्टमेंट कई वर्षो से सफेद हाथी बना हुआ है
-आरयू का स्टेडियम लौपटॉप योजना के प्रोग्राम के बाद तहस-नहस हो गया है
BAREILLY: कहते हैं कि कोई भी महान प्लेयर पैदायशी नहीं होता, प्लेयर्स तैयार किए जाते हैं। उनके अंदर छिपे हुनर को क्वालिटी कोचिंग और बेहतर स्पोर्ट्स फैसिलिटीज के माध्यम से निखारा जाता है, ताकि जब वे कोर्ट पर उतरें तो अपना बेस्ट दे सकें। इसके लिए उन्हें स्कूल के दिनों से ही ट्रेनिंग और प्रैक्टिस दी जानी चाहिए, ताकि कॉलेजेज में पहुंचने तक वे एक बेहतरीन प्लेयर बन सकें और अपने राज्य व देश का प्रतिनिधित्व कर सकें। लेकिन जमीनी हकीकत इससे काफी परे है। स्पोर्ट्स की नर्सरी कहे जाने वाले एजूकेशनल इंस्टीट्यूशंस में खेल की सुविधाएं नदारद हैं। रुहेलखंड के सबसे बड़े और पुराने बरेली कॉलेज की ही बात करें तो यहां पर खेल के नाम पर महज उजाड़ ग्राउंड है। खेल की सारी सुविधाएं नदारद हैं।
यहां ना कोच है ना ही कोई टीचर
बरेली कॉलेज में फिजिकल और गेम्स का एक अलग डिपार्टमेंट है। कई वर्षो पहले इस डिपार्टमेंट की नींव इसलिए रखी गई थी कि यहां कंडक्ट किए जा रहे कोर्सेज में पढ़ने वाले जो भी स्टूडेंट्स गेम्स में रुची रखते हैं उसके अनुसार उनके खेल को तराशा जा सके। इसके लिए हर स्टूडेंट से बतौर स्पोर्ट्स फीस क्भ्0 रुपए वसूली जाती है, जिसमें से भ्0 रुपए आरयू के हिस्से में जाता है। बीसीबी का यह डिपार्टमेंट कई वर्षो से सफेद हाथी बना हुआ है। यहां पर डिपार्टमेंट के इंचार्ज व स्पोर्ट्स ऑफिसर डॉ। एसएम सीरिया ही एक मात्र रेगुलर स्टाफ हैं। बाकी किसी भी गेम का ना तो टीचर है और ना ही कोई कोच। यहां तक कि संविदा पर रखने का भी प्रावधान नहीं है, जबकि कॉलेज अपने यहां कई प्रमुख गेम्स खेले जाने का दावा करता है। क्रिकेट, हॉकी, बास्केटबॉल, वॉलीबॉल, बॉक्सिंग, फुटबॉल, टेबल टेनिस, बैडमिंटन, एथलीट समेत कई गेम्स यहां पर खेले जाते हैं। आरयू द्वारा होने वाली इंटर कॉलेजेज प्रतियोगिताओं में कॉलेज की टीम भी पार्टिसिपेट करने जाती है, लेकिन यहां पर प्लेयर्स के प्रैक्टिस के लिए ना तो कोचेज हैं और ना ही जरूरी सामान व संसाधन। प्लेयर्स अपने स्तर से प्राइवेट कोचिंग कर तैयारी करते हैं।
उजाड़ पड़ा है ग्राउंड
बीसीबी में एक मेन ग्राउंड, एक हॉकी ग्राउंड, एक बॉस्केटबॉल कोर्ट के अलावा एक स्मीमिंग पूल भी है, लेकिन यह भी महज दिखावे के लिए हैं। कॉलेज हर समय फंड का रोना रोता है। मेन ग्राउंड में क्रिकेट, फुटबॉल समेत कई गेम्स की प्रैक्टिस होती है, लेकिन ना तो क्रिकेट पिच है, ना ही एथलेटिक ट्रैक और ना ही किसी और गेम्स के लिए कोर्ट। यहां तक कि बॉक्सिग रिंग को स्थापित करने के लिए काफी समय से कॉलेज महज कवायद ही करता रह गया। ग्राउंड में केवल जंगली घास के अलावा कुछ नहीं है। स्वीमिंग पूल साल भर बंद रहता है। कोच ना होने के चलते यह खुलता ही नहीं।
आरयू के स्टेडियम पर शासन की बेरुखी की मार
आरयू में इंडोर गेम्स के लिए बेहतर फैसिलिटीज हैं। स्टेडियम में भी एक वर्ष पहले तक कई फैसिलिटीज मौजूद थीं। लेकिन क्0 मई ख्0क्फ् को मुख्यमंत्री के लैपटॉप वितरण के प्रोग्राम के लिए स्टेडियम को तहस-नहस कर दिया गया। स्टेडियम को क्0 करोड़ रुपए की मदद से करीब क्0 वर्ष में तैयार किया गया था। यहां पर अपनी तरह का 900 मीटर सिंथेटिक ट्रैक था। वहीं क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, वॉलीबॉल और बास्केटबॉल खेलने की भी सुविधा थी, लेकिन शासन के प्रोग्राम ने स्टेडियम को बर्बाद कर दिया। इसके बाद इसे बनवाने के लिए आरयू की तरफ से कई प्रयास किए गए, लेकिन शासन की तरफ से काई ग्रांट नहीं मिला। अब आरयू ने इसे अपने स्तर से तैयार करने में हाथ खड़े कर दिए हैं। यूजीसी से ग्रांट मिलने के बाद ही इसे तैयार करने की बात कह रहे हैं।