शहर के colleges से हुआ मोहभंग

सिटी के इंजीनियरिंग कॉलेजेज से स्टूडेंट्स का मोहभंग हो गया है। गौतम बुद्ध टेक्निकल यूनिवर्सिटी द्वारा कराई गई यूपीएसईई की काउंसलिंग में इंजीनियर बनने की चाह रखने वाले स्टूडेंट्स सिटी के कॉलेजेज में एडमिशन के लिए इंट्रेस्टेड नहीं हैं। इससे कॉलेजों के बेहतर फैकल्टी और प्लेसमेंट के बड़े-बड़े दावे खोखले साबित हो गए हैं। बस गनीमत इतनी रही कि कोई भी कॉलेज ऐसा नहीं है, जिसका खाता न खुला हो।

GBTU ने कराया counselling  

स्टेट के सभी इंजीनियरिंग कॉलेजेज की सीटें स्टेट एंट्रेंस एग्जाम की काउंसलिंग से ही भरी जाती हैं। इस बार काउंसलिंग लखनऊ स्थित गौतम बुद्ध टेक्निकल यूनिवर्सिटी करा रहा है। बीटेक में एडमिशन के लिए पहले फेज की काउंसलिंग 20 जुलाई को समाप्त हुई।

महज 32,500 seats ही भरीं

स्टेट एंट्रेंस एग्जाम की काउंसलिंग से पूरे प्रदेश में महज 32,500 सीटों पर ही स्टूडेंट्स ने एडमिशन लिए हैं। वहीं एआईईईई के जरिए 4,500 स्टूडेंट्स ने एडमिशन लिया। इस लिहाज से 37,000 सीटों पर एडमिशन हुए हैं। अभी भी स्टेट के इंजीनियरिंग कॉलेजेज में 71 हजार से ज्यादा सीटें खाली हैं।

Colleges में students का सूखा

काउंसलिंग में सिटी के करीब 9 इंजीनियरिंग संस्थान ने पार्टिसिपेट किया, जिसमें से एसआरएमएस और आरयू की पोजिशन ही बेहतर है। वहीं 6 कॉलेज ऐसे हैं जो दहाई की संख्या भी नहीं छू सके। महज इक्के-दुक्के स्टूडेंट्स ने ही एडमिशन लिया है।

कुछ students का admission

सिटी के 7 कॉलेजों में महज एलॉटेड सीटों के मुकाबले 1 से 2 फीसदी स्टूडेंट्स ने एडमिशन लिया है। एसआरएमएस और आरयू को छोड़ दिया जाए तो महज एक कॉलेज ने दहाई और एक अन्य ने 5 स्टूडेंट्स की संख्या को छुआ है। बाकी सभी कॉलेजों में इक्के-दुक्के स्टूडेंट्स ने ही एडमिशन लिया है।

ऊंची दुकान फीके पकवान

एक्सपट्र्स की मानें तो स्टेट के ज्यादातर कॉलेज ऊंची दुकान और फीके पकवान सरीखे हैं। जिनके पास बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स तो हैं लेकिन उनमें एक्सिलेंट फैकल्टी और बेहतर प्लेसमेंट की भारी कमी है। जिनके वे बड़े-बड़े दावे करते हैं लेकिन स्थिति काफी अलग होती है।

कहां जाते हैं students

एक्सपट्र्स की मानें तो स्टूडेंट्स के लिए प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजेज में फीस जमा करना इनवेस्टमेंट सरीखा हो गया है। अगर वे लाखों रुपए फीस जमा करते हैं तो रिटर्न के रूप में बेहतर प्लेसमेंट और इंफ्रास्ट्रक्चर एक्सपेक्ट करते हैं। स्टूडेंट्स अपने करियर को लेकर चूजी हो गए हैं। प्रदेश के बाहर उन कॉलेजों में एडमिशन लेते हैं जहां पढ़ाई समाप्त ही मोटे सैलरी पैकेज पर प्लेस हो जाते हैं।

कैसे होती है भरपाई

भले ही एडमिशन कम हों, लेकिन कॉलेज कुछ स्टूडेंट्स का जुगाड़ तो कर ही लेते हैं। पहले तो 15 परसेंट मैनेजमेंट कोटे की सीटें येन-केन प्रकारेण से फिक्स कर लेते हैं। उसके बाद काउंसलिंग प्रक्रिया होने के बाद डायरेक्ट एडमिशन लेने के शासन के फरमान का इंतजार करते हैं। मंजूरी मिलते ही सारे नियमों को धता बताते हुए हर कीमत पर स्टूडेंट्स का एडमिशन ले लेते हैं।

कॉलेज चूज करते समय स्टूडेंट्स उसका प्लेसमेंट रिकॉर्ड देखते हैं। सिटी में ज्यादातर कॉलेज नए हैं। ऐसे में स्टूडेंट्स यहां पर एडमिशन लेने में हिचकिचाते हैं। साथ ही फीस को लेकर भी वे काफी सोचते हैं। पढ़ाई का खर्चा ज्यादा आता है तो वे दूसरे कॉलेजेज को प्रिफर करते हैं।

- प्रो। यतेंद्र कुमार, एकेडमिक कोऑर्डिनेटर, आरयू

यूपी में इंजीनियरिंग कॉलेजेज की बाढ़ सी आ गई है। उनका ध्यान मेनली बिजनेस पर है। पढ़ाई की गुणवत्ता गिरती जा रही है। अधिकांश कॉलेज गेस्ट फैकल्टी पर चल रहे हैं। ऐसे में कॉलेज की इंफ्रास्ट्रक्चर साइडलाइन हो जाती है। ऐसे में स्टूडेंट्स का फोकस गवर्नमेंट और बेस्ट फैकल्टी वाले कॉलेजेज पर होता है। जब पढ़ाई में क्वालिटी ही नहीं होगी तो एक्स्ट्रा कैरिक्यूलर एक्टिविटीज कराकर क्या फायदा।

- प्रो। मनोज सिंह, फॉर्मर हेड, मैकेनिकल, आरयू

कॉलेज चूज करते समय स्टूडेंट्स का ध्यान उसके प्लेसमेंट रिकॉड्र्स, ट्रेनिंग फैसिलिटी, फैकलटी और इंफ्रास्ट्रक्चर पर होता है। स्टूडेंट्स कॉलेज प्रोफाइल से सैटिसफाइ नहीं होते हैं तो उसे नकार देते हैं। कॉलेज चूज करते समय वे कई तरह से क्रॉसचेक करते हैं। मनचाहे ब्रांच की पढ़ाई बेहतर से बेहतर कॉलेज में करना चाहते हैं।

- प्रो। एमएस करुणा, हेड केमिकल इंजीनियरिंग, आरयू