बरेली हर साल मौसम बदलने के साथ ही मच्छर होने का खतरा बढ़ जाता हैै। मच्छर होने पर उनसे फैलने वाली बीमारियों का भी डर भी बना रहता हैै। ऐसे में अगर सभी अपनी जिम्मेदारी समझे तो मच्छर के काटने से होने वाली बीमारी जैसे मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया से बचा जा सकता है। स्वास्थ्य विभाग की मानें तो इसके लिए हर व्यक्ति को जागरूक होना होगा। जिससे डेंगू के डंक से बचा जा सके। इसमें स्कूली बच्चों से लेकर हर तबके का व्यक्ति शामिल है, जो अवेयर होकर डेंगू होने व उसके स्पे्रड से बच सकते हैैं। इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना जरूरी है। इन्हीं नियमों का पालन कर डेंगू के प्रभाव को इस साल कम किया जा सका।
ऐसे करें प्लानिंग
-बचाव के लिए हर व्यक्ति को होना होगा जागरूक।
- एक सप्ताह तक कहीं भी पानी न जमा होने दें।
- क्लाइमेट के अनुसार प्लानिंग करें।
- स्कूल और कॉलेज में अवेयरनेस किए जाने की जरूरत।
- डेंगू से बचाव और ट्रांसमिशन को रोका जाना जरूरी।
- किसी भी तरह का बुखार होने पर रहता है डेंगू, चिकनगुनिया और वायरल का खतरा।
- हफ्ते में एक दिन अवश्य चलाए सफाई अभियान।
- कहीं भी समस्या हो तो शिकायत के लिए बने टोल फ्री नंबर।
- हॉस्पिटल में बनाए गए डेंगू वार्ड, किए गए बेड तैयार।
- ज्यादा से ज्यादा सैैंपलिंग हो इसके लिए टीम तैयार।
मानसून में सबसे ज्यादा डर
मानसून में बारिश के कारण जगह-जगह जलभराव की समस्या बनी रहती है। ड्रेनेज सुचारू न होने के कारण जगह-जगह जलभराव की समस्या बनी रहती है। समय पर विभागों की तैयारी हो तो डेंगू से बचाव किया जा सकता है। इस वर्ष डेंगू को लेकर स्वास्थ्य विभाग की ओर से अप्रैल माह में ही तैयारी कर ली गई थी। जिस पर लगातार मॉनिटरिंग की जा रही थी। इसके साथ ही क्षेत्र में फॉगिंग व कीटनाशक दवा का छिड़काव भी किया गया।
सबसे ज्यादा शहरी क्षेत्र को खतरा
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार रूरल एरिया में डेंगू का खतरा कम रहता है। लेकिन, सिटी में इसका ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है। यहां पास-पास घर होने के कारण कई बार गलियों में पानी जमा रहता है। जिसके कारण मॉनिटरिंग नहीं हो पाती है। तंग गलियां होने के चलते कीटनाशक का छिड़काव भी नहीं हो पाता है। जिसे देखते हुए स्वास्थ्य विभाग की ओर से पहले से ही तैयारी कर ली गई थी। जहां संभव हो वहां विभागीय कर्मी और जहां संभव नहीं था वहां वॉलिंटियर्स की नियुक्ति की गई, जो क्षेत्र में जाकर लगातार निगरानी कर रहे थे।
घने एरिया में ज्यादा खतरा
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार सिटी में कई एरिया ऐसे है जहां गलियों में ऐसी जगह पानी जमा रहता है जहां बड़े और छोटे वाहन नहीं पहुंच पाते हैैं। ऐसे में यहां से जलभराव की समस्या होने पर यहां पर निकासी नहीं हो पाती है। यहीं कारण है कि यहां ज्यादा संक्रमित मरीज मिले।
कंट्रोल रूम रहा फायदेमंद
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की माने तो डेंगू का खतरा सबसे ज्यादा बारिश व जलभराव में होता है। ऐसे में सिस्टम को अलर्ट मोड पर करने व बेड, प्लेटलेट््स की सुविधा के लिए टीमों को अलर्ट पर रखा गया। डेंगू से संबंधित उपचार की व्यवस्था, दवाओं की उपलब्धता, सामान्य एवं आईसीयू बेड की स्थिति देखते हुए मानकों के अनुसार व्यवस्था भी बनाए गई। नगर निगम, नगर निकाय, पंचायती राज, जिला पंचायत के अधिकारियों ने अपने-अपने क्षेत्रों में लार्वा नाशक दवा का छिड़काव किया।
रैपिड रेस्पांस टीम भी जरूरी
नगर निगम की ओर से स्वास्थ्य विभाग ने आशा वर्कर को क्षेत्र में मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके साथ ही कई वॉरियर्स की भी नियुक्ति की गई, जो लगातार क्षेत्र में जाकर निगरानी कर रहे थे। ये वारियर्स क्षेत्र का निरीक्षण कर उन स्थानों पर फॉगिंग और कीटनाशक दवा का छिड़काव करते हैैं।
नगर निगम प्लानिंग
- हर वार्ड में एक टीम करें निगरानी।
- लगातार बड़ी व छोटी मशीन से हो फॉंिगग।
-80 अलग-अलग वार्ड में हो नियुक्त।
- सिटी में लार्वा जांच व की गई फॉगिंग।
बेहतर प्लांनिग से थमा डेंगू
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार डेंगू से बचाव के लिए लगातार फॉगिंग व कीटनाशक के छिड़काव का असर रहा कि इस बार 64 डेंगू मामले ही सामने आए। जबकि पिछले साल 1079 डेंगू के मामले सामने आए थे। यहीं कारण रहा कि ब्लड बैंक में इस बार प्लेटलेट्स की डिमांड ज्यादा नहीं रही। इस बार डेंगू के पेशेंट भी हॉस्पिटल में कम भर्ती हुए।
वर्जन-:
लगातार हमारी ओर से सिटी में फॉगिंग व कीटनाशक का छिड़काव किया जा रहा है। इसके लिए अलग-अलग टीम को जिम्मेदारी दी गई है। छोटी व बड़ी मशीन के साथ सिटी में अलग-अलग एरियाज में टीमों को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
डॉ। भानु प्रकाश, नगर स्वास्थ्य अधिकारी
लगातार नगर निगम के साथ स्वास्थ्य विभाग की टीम भी लगातार निगरानी कर रही है। इसी का नतीजा है कि इस वर्ष डेंगू के संक्रमण से बचाव हो सका है। पहले से सावधानी बरती जाए तो डेंगू से बचा जा सकता है।
डॉ। सतेन्द्र सिंह, जिला मलेरिया अधिकारी