बरेली(हिमांशू अग्निहोत्री)। लडक़ा होकर भी अगर मन में लड़कियों की तरह ही भावना आती है या फिर लडक़ी होकर भी अपने जेंडर को लेकर कंफ्यूज रहते हैं और ऐसे विचार मन में बार-बार आ रहे हैं। तो यह जेंडर डिस्फोरिया का लक्षण भी हो सकता है। शहर में जेंडर डिस्फोरिया के मामले जहां 2020-21 से पहले शून्य रहा करते थे। वहीं अब हर माह इससे प्रभावित औसतन तीन लोग मन कक्ष पहुंच रहे हैैं। वहां इनका काउंसिलिंग के माध्यम से उपचार किया जा रहा है।
क्या है जेंडर डिस्फोरिया
मनोचिकित्सक डॉ। आशीष बताते हैैं कि जेंडर डिस्फोरिया में व्यक्ति जिस जेंडर में पैदा होता है, उसे लगता है कि वह गलत जेंडर में पैदा हुआ। अपोजिट जेंडर में पैदा होना चाहिए था। वह अपने बॉडी में कंफर्ट फील नहीं करता है। उसे लगता है कि मेरे बॉडी में दूसरे जेंडर का पार्ट होना चाहिए था। कई मामलों में अगर लडक़ा है तो उसे लड़कियों की तरह मेकअप करना, ड्रेस पहनना पसंद होता है और लडक़ी है तो उसे लडक़ों की तरह बोलना, उनकी तरह कपड़े पहनना आदि पसंद जैसे होता है। वहीं इसके लिए मना करने पर वह विरोध भी करते हैैं। ऐसे स्थिति में वह कई बार डिप्रेशन में भी चले जाते हैैं। छोटे बच्चे समस्या को लेकर आते हैैं कि उन्हें ऐसी फीलिंग क्यों आ रही है। वहीं ग्यारह से सत्रह वर्ष तक यह फीलिंग डेवलप हो जाती है।
कैसे करते हैैं काउंसलिंग
काउंसलर डॉ। खुशअदा बताती हैैं कि जो डिस्फोरिया से पीडि़त होते हैैं उन्हेंं काउंसलिंग के माध्यम से समझाया जाता है कि वह दूसरों से सिर्फ आकर्षित हो रहे हैैं। लेकिन, जो नेचुरल बॉडी है वहीं रियल होती है। साथ ही पैरेंट्स को भी समझाया जाता है कि बच्चे को सपोर्ट करें, उसके साथ टाइम स्पेंड करें। पैरेंट्स बच्चों को लेकर आते हैैं कहते हैैं कि बच्चों को देखिए, उसकी काउंसलिंग करके देखा जाता है कि बच्चा अभी एक्सप्लोरेशन वाले पार्ट में है कि कंफर्म वाले पार्ट में है। उसके बाद पैरेंट्स को समझाया जाता है। वहीं सीवियर डिस्फोरिया (ट्रांसफॉर्र्मेशन को ही समाधान मानते हैैं) वाले आते हैैं उन्हें जाता है कि क्या-क्या बदलाव आएगा आपकी बॉडी में, मेंटली किस तरह से बदलाव आएगा। साथ ही जरूरी नहीं हैै कि ट्रांसफॉर्मेशन के बाद आपने पहले सोचा है वैसे ही आपकी बॉडी या माइंड रिएक्ट करे।
उच्च वर्गीय खुलकर आते हैैं सामने
केसेस का जिक्र करते हुए डॉ। आशीष बताते हैैं कि पिछले वर्ष जिला अस्पताल के मन कक्ष में तीन ऐसे लोग पहुंचे थे। जोकि अपनी बॉडी को अपोजिट जेंडर में चेंज करवाना चाहते थे। उन्हें काउंसलिंग के माध्यम से समझाया गया, बाद में केजीएमसी रेफर कर दिया गया था। वहां पर पैनल डिसाइड करता है पेशेंट की क्या स्थिति है। वहीं सीवियर डिस्फोरिया से पीडि़त व्यक्ति चेंज करवाने पर ही अधिक जोर देता है। डिस्फोरिया से पीडि़त निम्न व मध्यमवर्गीय, जहां इस समस्या को छिपाते हैैं। वहीं उच्च वर्गीय लोग इसको लेकर खुलकर सामने आते हैैं। जिन्हें काउंसलिंग के माध्यम से सुधारा जाता है।
केस-01
शहर से 11 साल की बच्ची अपनी मां के साथ आई थी। वह कंफ्यूज थी, उसे लडक़ों जैसी फीलिंग होती थी। उसे लडक़ो के परिधान पहनना अच्छा लगता है।
केस-02
मुरादाबाद से 28 साल की उम्र की लडक़ी आई थी, वह काफी परेशान थी। वह हार्मोन थेरेपी के लिए कह रही थी। कहती है उसे लडक़ों की तरह ही रहना पसंद है, वैसी ही फीलिंग आती है।
केस-03
घर वालों को बिना बताए 18 वर्ष का युवक मनकक्ष में आया था। उसे लड़कियों की तरह फीलिंग आती है, पूछ रहा था कि क्या ये नॉर्मल है। उसकी काउंसिलिंग की गई।
केस-04
लखीमपुर खीरी से एक युवक अन्य जिले के एचआईवी क्लीनिक के माध्यम से आया था। उसका कहना था कि उसे अपने जेंडर में कंफर्ट फील नहीं होता है।