Bilingual concept अच्छी पहल
धीरे-धीरे अपनी भाषा में हिंदी के अतिरिक्त और भी भाषाओं के शब्द शामिल हो रहे हैं। भाषा के विकास के लिए यह जरूरी भी है। बाकी भाषाओं को अपनाने की जरूरत है। आज ग्लोबलाइजेशन के दौर में हम जितना बाकी भाषाओं को समझेंगे उतना ही अच्छा रहेगा। आज अंग्रेजी की आवश्यकता है। ऐसे में आई नेक्स्ट का बाइलिंगुअल कॉन्सेप्ट अच्छी पहल है। आई नेक्स्ट इस तरह अपने रीडर्स की सेवा ही कर रहा है।
-प्रो। एसपी गौतम वीसी, आरयू
Language of new generation
बाइलिंगुअल न्यूज पेपर मॉडर्न जेनरेशन की लैंग्वेज को रिप्रेजेंट कर रहे हैं। जमाने के हिसाब से चल रहे हैं। बाइलिंगुअल कॉन्सेप्ट अपर मिडिल क्लास के लिए सही है लेकिन बाकी के 80 परसेंट लोगों को इससे कोई खास फायदा नहीं हो रहा। नई जेनरेशन हिंदी के मूल तत्वों से दूर हो रही है। मॉडर्न एजुकेशन सिस्टम में भी यही नुकसान है। संस्कारों से जुड़ी हिंदी का ज्ञान बच्चों को नहीं मिल पाता है। ऐसे में न्यूज पेपर की रेस्पॉन्सिबिलिटी बढ़ जाती है।
-वसीम बरेलवी शायर
Connecting readers easily
आई नेक्स्ट की लैंग्वेज आम बोल चाल की है, जिसे इजिली हर कोई समझ लेता है। स्वाभाविक सी बात है कि जिसे आप आसानी से समझ लें और जो आपके जैसा हो, उससे जल्दी रिश्ता बन जाता है। साथ ही इसमें खबरों को बहुत ही रोचक तरीके से पेश किया जाता है। मुझे इस अखबार में हर एज ग्र्रुप के लोगों के लिए कुछ न कुछ दिखता है.
-राजेश प्रताप सिंह आईजी, बरेली
आम बोलचाल की भाषा
आई नेक्स्ट के पांच साल पूरा करने पर हार्दिक बधाई। मुझे आई नेक्स्ट की लैंग्वेज पसंद है। यह न्यू जनरेशन के हिसाब के चलने वाला न्यूज पेपर है। हम जिस भाषा में एक दूसरे से कम्युनिकेट करते हैं, यह उसी भाषा का यूज करता है। हमें भी इसीलिए पसंद है। उम्मीद करते हैं कि आने वाले समय में यह न्यू जनरेशन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलेगा।
- राजकुमार डीआईजी
Concept of new thinking
आई नेक्स्ट का कॉन्सेप्ट ही नई सोच के हिसाब से न्यूज कवर करना है। ऐसे में भाषा भी उसी के अकॉर्डिंग होनी चाहिए। जिन इंग्लिश शब्दों का प्रयोग हम रूटीन में करते हैं, उन्हें हिंदी के साथ पढऩा ऑड नहीं लगता। बल्कि उनकी जगह हिंदी के शब्द थोड़ा अजीब से लगते हैं। इस पटरी पर तो आई नेक्स्ट दौड़ रहा है। दूसरा इसमें हर घटना को एक अलग एंगल से पेश किया जाता है।
-अतुल सक्सेना एसपी सिटी
अपनी लगती है इसकी language
आई नेक्स्ट अखबार को यूथ बड़े चाव से पढ़ते हैं, क्योंकि इसकी लैंग्वेज उन्हें अपनी लगती है। आज के समय में हम हिंदी-इंग्लिश मिलाकर बोलते हैं। शायद ही ऐसा किसी के साथ होता हो कि वह घर या बाहर प्योर हिंदी या प्योर इंग्लिश बोलता है। इसे हम आम बोलचाल की भाषा कह सकते हैं। पेपर की लैंग्वेज के चलते मिशनरीज के लोगों को इसे पढऩे में असानी होती है।
-फादर ग्रेगरी पिंसिपल बिशप कोनराड
हर जगह hinglish
हम आम भाषा को जानते हैं। रिक्शे वाला भी फल-फ्रूट जैसे शब्दों का यूज करता है। आई नेक्स्ट ने इस तरह के कॉन्सेप्ट को मैटीरियलाइज किया यह काफी अच्छी बात है। हिंदी में कई ऐसे शब्द हैं जिनका मतलब समझ में नहीं आता। ऐसे में बोलचाल की लैंग्वेज यूज करना ज्यादा सही है। हर उम्र और हर तबके के इंसान को यह लैंग्वेज समझ में आती है। इस पेपर से अपनापन महसूस होता है। एकेडमिक और लिटरेरी लैंग्वेज अपनी जगह सही है लेकिन हर जगह वह लैंग्वेज नहीं चल सकती। आज कहीं भी चले जाओ, टी स्टॉल से लेकर रेलवे प्लेटफॉर्म तक, मैक्सिमम लोगों के हाथ में आई नेक्स्ट नजर आता है। इसकी रीजनेबल कॉस्ट भी एक विशेषता है।
-डॉ। हेमा खन्ना साइकोलॉजिस्ट